उपसहसंयोजन यौगिकों का नामकरण 1957 में प्रतिपादित तथा 1959 में संशोधित I.U.P.A.C. नामांकन पद्धति द्वारा किया जाता है| उपसहसंयोजन यौगिकों की I.U.P.A.C. नामांकन पद्धति निम्न प्रकार है-
उपसहसंयोजक यौगिकों के नामकरण के नियम-
आधुनिक I.U.P.A.C.पद्धति के अनुसार किसी उपसहसंयोजन यौगिकों के नामांकन में निम्न नियम हैं-
(1) आयनों का नामकरण क्रम-
आयनिक संकरो में धनात्मक आयन को सबसे पहले लिखा जाता है और ऋणात्मक आयन को उसके बाद लिखते हैं| नाम का आरंभ छोटे अक्षर से होता है तथा संकर भाग को एक शब्द के रूप में लिखा जाता है| आयनिक संकरों के नाम एक शब्द के रूप में लिखे जाते हैं|
(2) लीगैंडों का नामकरण-
विभिन्न प्रकार के लीगैंडों का नामकरण निम्न है-
(a) उदासीन लीगैंड का नाम और उनकी बातें लिखते हैं| जैसे-
CO कार्बोनिल
CS थायोकार्बोनिल
NO नाइट्रोसिल
NH2CONH2 ऐथिलिन डाई ऐमीन(en)
C5H5N पायरिडीन
H2O एक्वा
NH3 एमाइन
(b) ऋणायनिक लीगैंड के नाम लिखते समय समूह के संगत नाम के साथ पश्चलग्न के रूप में -आइडो(-ido) या -ओ(-o) लगाते हैं| जैसे-
Cl´ क्लोराइडो
Br´ ब्रोमाइडो
I´ आयोडाइडो
F´ फ्लोराइडो
CN´ सायोनाइडो
SO4´´ सल्फेटो
CH3COO´ ऐसिटेटो
S´´ सल्फाइडो
CO3´´ कार्बोनेटो
S2O3´´ थायोसल्फेटो
OH´ हाइड्रोक्साइडो
O´´ ऑक्सो
SCN´ थायोसायनेटो
C2O4´´ ऑक्जेलेटो
SO3´´ सल्फाइटो
NH2´ ऐमीडो
NO3´ नाइट्रेटो
NO2´ नाइट्राईटो-N
ONO´ नाइट्राईटो-O
(c) धनायनिक लीगैंड संकरों में अधिक नहीं मिलतेे हैं| इनका नामकरण समूह के संगत नाम के साथ -ium पश्चलग्न लगाकर करतेे हैं| जैसे -
NO+ नाइट्रोसोनियम
NO2+ नाइट्रोनियम
NH2NH3+ हाईड्राजिनियम
(3) एम्बीडेंट लीगैंड के जुड़ने की विधि-
कुछ मोनोडेंटेट लीगैंड में एक से अधिक दाता परमाणु उपस्थित होते हैं, जो केंद्रीय धातु परमाणु से किसी भी दाता परमाणु द्वारा जुड़ सकते हैं| ऐसे लिगेंड को एम्बीडेंट लिगेंड कहा जाता है| ऐसी स्थिति में लिगेंड का नाम दो प्रकार से लिखा जा सकता है-
(1) एम्बीडेन्ट लीगैंड के नामकरण के लिए उस परमाणु का प्रतीक लिखते हैं जिसके द्वारा लीगैंड केंद्रीय धातु परमाणु से जुड़ सकता है| जैसे- SCN´ एक एम्बीडेंट लीगैंड है तथा यह S और N दोनों से जुड़ सकता है| अतः इसका नाम इसके जुड़ने के आधार पर थायोसायनेटो-S या थायोसायनेटो-N होगा|
(2) एम्बीडेंट लीगैंड का विभिन्न प्रकार से जुड़ना उनको विभिन्न नाम देकर भी समझाया जा सकता है| जैसे- लीगैंड NO2´, N के द्वारा (-NO2´ के रूप में) या O के द्वारा(-ONO´) जुड़ सकता है| क्रमशः N और O से जुड़ने के अनुसार इसे नाइट्रो तथा नाइट्राइटो नाम भी दिए जा सकते हैं|
(4) लीगैंडों की संख्या-
(a) यदि एक ही संकर में दो या अधिक समान प्रकार की लीगैंड उपस्थित हो तो अनुलग्नों डाई, ट्राई, टेट्रा, पेंटा, हेक्सा आदि का प्रयोग उनकी संख्या बताने के लिए किया जाता है|
(b) जब पॉलिडेंटेट लीगैंड के नाम में डाई, ट्राई आदि (जैसे- एथिलीनडाईएमीन, एथिलीनडाईएमीन टेट्राएसिटेट आदि) आंकिक अनुलग्न निहित होते हैं तो लिगेंड की 2,3,4,5,6 आदि संख्याओं को प्रदर्शित करने के लिए क्रमशः बिस, ट्रिस, टेट्राकिस, पेंटाकिस, हेक्साकिस आदि का प्रयोग करते हैं|
(5) लीगैंडो के नामों का क्रम-
जब एक से अधिक लिगेंड संकर में उपस्थित होते हैं तो उनके नाम उन पर स्थित आवेश के अनुसार न होकर वर्णमाला के अक्षरों के क्रम में लिखे जाते हैं| लिगेंड का नाम एक ही शब्द के रूप में लिखा जाता है|
(6) केंद्रीय धातु आयन का नामकरण-
(a) धनायनिक तथा उदासीन संकर-
जब संकर धनायनिक या उदासीन होते हैं तो केंद्रीय धातु परमाणु या आयन को अन्य दूसरे यौगिकों में प्रयुक्त उसके साधारण नाम द्वारा ही वर्णित किया जाता है| केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के नाम के साथ उसकी ऑक्सीकरण संख्या लिखी जाती है| ऑक्सीकरण संख्या को रोमन संख्या में एक कोष्ठक के भीतर लिखते हैं|
(b) ऋणायनिक संकर-
जब संकर ऋणायनिक होता है तो केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के नाम के अंत में ऐट(-ate) पश्चलग्न का प्रयोग करते हैं तथा इसके साथ कोष्ठक में इसकी ऑक्सीकरण संख्या रोमन संख्या में लिखते हैं|
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EXAMPLE -
Sachin
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