Advance Chemistry : गैल्वेनिक सेल( Galvanic cell)

Sunday, December 20, 2020

गैल्वेनिक सेल( Galvanic cell)

गैल्वेनिक सेल ( Galvanic cell)
गैल्वेनिक सेल उस युक्ति को कहा जाता है जिसमें रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है| गैल्वेनिक सेल का निर्माण सर्वप्रथम एलिसांद्रो वोल्टा ने सन 1796 में किया था| इसलिए गैल्वेनिक सेलों को वोल्टाइक सेल भी कहा जाता है| एक गैल्वेनिक सेल स्वयं में संपन्न एक रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरुप विद्युत धारा उत्पन्न करता है| वोल्टा सेल,  डैनियल सेल, लेक्लांशे सेल, शुष्क सेल आदि इस प्रकार के सेलों के कुछ उदाहरण हैं |

एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण -
एक गैल्वेनिक सेल में विद्युत ऊर्जा की उत्पत्ति सदैव एक रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरुप ही होती है| अतः एक उपयुक्त ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड को एक उपयुक्त अपचयन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़कर एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण किया जा सकता है| दोनों इलेक्ट्रोडों में निहित विलयनों को या तो एक सरंध्र डायाफ्राम के माध्यम से या एक लवण सेतु के माध्यम से परस्पर विद्युत संपर्क में लाया जा सकता है| वाह्य परिपथ में दोनों इलेक्ट्रोडों को एक ऐसी युक्ति से जोड़ दिया जाता है जो विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर सकें|
         ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड पर संपन्न होने वाली ऑक्सीकरण क्रिया के फलस्वरुप इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं| यदि इन इलेक्ट्रॉनों को वहां से न हटाया जाए तो वे इलेक्ट्रोड पर एकत्रित होकर उसे ऋणात्मक विभव प्रदान करते हैं| अपचयन इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया के कारण एक धनात्मक विभव उत्पन्न होता है| जब दोनों इलेक्ट्रोडों को आंतरिक तथा बाह्य परिपथ में जोड़ा जाता है तो इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ में ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड से अपचयन इलेक्ट्रोड की ओर गति करने लगते हैं| इलेक्ट्रॉनों का यह प्रवाह दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य स्थित विभवांतर के कारण होता है| इस प्रकार एक विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है| वह इलेक्ट्रोड जिस पर ऑक्सीकरण प्रक्रिया संपन्न होती है एनोड कहलाता है तथा जिस इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया संपन्न होती है उसे कैथोड कहा जाता है| यह ध्यान देने योग्य बात है कि एक गैल्वेनिक सेल में एनोड की ध्रुवता ऋणात्मक तथा कैथोड की ध्रुवता धनात्मक होती है|
 जैसे-
 यदि एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड Zn/Zn2+ को एक अपचयन इलेक्ट्रोड Cu2+/Cu  के साथ जोड़ दिया जाए तो एक डेनियल सेल प्राप्त होता है|
       ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड(एनोड )  पर Zn परमाणु  Zn2+ आयनों के रूप में (Zn ----> Zn2+   +  2e´) विलयन में प्रवाहित होते हैं जबकि अपचयन इलेक्ट्रोड (कैथोड) पर Cu2+ आयन  Cu परमाणु में परिवर्तित होते हैं (Cu2+  + 2e´ -----> Cu) |
    विभवांतर के कारण Zn छड़ पर मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन धन आवेश युक्त Cu छड़  की ओर गति करते हैं और इस प्रकार बाह्य परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है|
 लवण सेतु तथा इसकी कार्यप्रणाली-
लवण सेतु U  के आकार की एक कांच की नली होती है जिसमें किसी निष्क्रिय विद्युत अपघट्य जैसे- KCl, KNO3, K2SO4 आदि का सांद्र विलयन या इनमें से किसी विद्युत अपघट्य का एगर-एगर तथा जिलेटिन में बना अर्द्ध ठोस विलयन भरा होता है| यहाँ निष्क्रिय विद्युत अपघटन से तात्पर्य एक ऐसे विद्युत अपघट्य से है जो न तो सेल में निहित रेडॉक्स अभिक्रिया में भाग लेता है और न ही दोनों इलेक्ट्रोड में उपस्थित विलयनों से क्रिया करता हो|
    लवण सेतु मुख्य रूप से निम्न दो कार्यों को संपन्न करता है-
(1) यह एक अर्द्ध सेल से दूसरे अर्द्ध सेल में आयनों के परिगमन को सुगम बनाकर विद्युत परिपथ को पूर्ण करता है|
(2)  यह दोनों अर्द्ध सेलों में उपस्थित विलयनों की विद्युतीय उदासीनता को अक्षुण्ण बनाए रखता है|

अर्द्ध सेल की धारणा-
एक गैल्वेनिक सेल को एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड तथा एक अपचयन इलेक्ट्रोड को जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है| प्रत्येक इलेक्ट्रोड निकाय को एक अर्द्ध सेल कहा जाता है| इस प्रकार एक गैल्वेनिक सेल दो अर्द्ध सेलों से मिलकर बना होता है|
      जिस अर्द्ध सेल में ऑक्सीकरण क्रिया संपन्न होती है उसे ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल या एनोडिक अर्द्ध सेल कहा जाता है तथा जिसमें अपचयन अभिक्रिया संपन्न होती है उसे अपचयन अर्द्ध सेल या कैथोडिक अर्द्ध सेल कहा जाता है|
जैसे -
Zn -----> Zn2+  +  2e´ (ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल )

Cu2+  +  2e´ ---->  Cu (अपचयन अर्द्ध सेल )

एक गैल्वेनिक सेल का निरूपण -
IUPAC के अनुसार एक गैल्वेनिक सेल को निरूपित करने के लिए निम्न परिपाटी का प्रयोग किया जाता है-
(1) एक अर्द्ध सेल को इलेक्ट्रोड की भांति कार्य कर रही धातु के संकेत तथा धातु के संपर्क में स्थित विद्युत अपघट्य के आयन के संकेत के मध्य एक उर्ध्व रेखा खींचकर निरूपित किया जाता है| उर्ध्व रेखा प्रावस्था सीमा को निरूपित करती है| ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल को निरूपित करते समय अपचयित अवस्था को बाईं ओर तथा अपचयन अर्द्ध सेल को निरूपित करते समय अपचयित अवस्था को निम्न प्रकार से दायीं ओर लिखा जाता है-
M/Mn+(aq)              Mn+(aq)/M ( Anode)                   (Cathode )   
जैसे -
Zn/Zn2+(aq)         Cu2+(aq)/Cu  (Anode)                   (Cathode ) 

(2) विलयन के मोलर सांद्रण को आयन के सूत्र के पश्चात कोष्ठक में व्यक्त किया जाता है| 
जैसे-  
Zn/Zn2+(c1)         Cu2+(c2)/Cu  

(3) एक गैल्वेनिक सेल को निरूपित करते समय ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड (एनोड) को सदैव बायीं ओर तथा अपचयन इलेक्ट्रोड (कैथोड) को सदैव दायीं ओर लिखा जाता है| दोनों इलेक्ट्रोडों में उपस्थित विलयनों के सीधे संपर्क (एक सरंध्र डायाफ्राम के माध्यम से) को एक उर्ध्व रेखा(|) से तथा दोनों विलयनों के लवण सेतु के माध्यम से संपर्क को दो समानांतर उर्ध्व रेखाओं (||)से निरूपित करते हैं|
 जैसे-
विलयन का सीधा सम्पर्क 
Zn/Zn2+(c1)   |   Cu2+(c2)/Cu  (Anode)                (Cathode ) 
लवण सेतु द्वारा सम्पर्क 
Zn/Zn2+(c1)  ||   Cu2+(c2)/Cu  (Anode)                (Cathode ) 

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