(Bonding in Co-ordination compounds)
(A) संयोजकता आबंध सिद्धांत -(Valence bond theory, VBT)-
इस सिद्धांत का प्रतिपादन लाइनस पॉलिंग ने किया था| अतः इसे पॉलिंग का सिद्धांत भी कहते हैं| इस सिद्धांत की मुख्य अवधारणाएं निम्न है-
(1) केंद्रीय धातु परमाणु या आयन में कई रिक्त ऑर्बिटल उपस्थित होते हैं जिनमें लिगेंड द्वारा दिए गए इलेक्ट्रॉन समावेशित होते हैं| प्रत्येक मोनोडेंटेड लीगैंड केंद्रीय धातु परमाणु या आयन को इलेक्ट्रॉनों का एक युग्म दान करता है|
(2) केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के रिक्त परमाण्विक ऑर्बिटल आवश्यकतानुसार संकरण में भाग लेते हैं|
(3) जब लिगेंड केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के संपर्क में आता है तो केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के रिक्त संकरित ऑर्बिटल लीगेंड के इलेक्ट्रॉनों के एकाकी युग्म युक्त ऑर्बिटलों के साथ अतिव्यापन करते हैं तथा प्रबल लिगेंड धातु उप-सहसंयोजक बंधों का निर्माण करते हैं|
(4) संकर निर्माण प्रक्रिया में हुंड के अधिकतम बहुलता के नियम का पालन किया जाता है| परंतु प्रबल लिगेंड के प्रभाव के कारण इलेक्ट्रॉन हुंड के नियम के विरुद्ध युग्मित हो सकते हैं|
(5) केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के अनाबंधी इलेक्ट्रॉन अप्रभावित रहते हैं तथा रासायनिक बंध निर्माण में भाग नहीं लेते हैं|
(6) यदि किसी संकर में एक या अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो तो वह संकर अनुचुंबकीय प्रकृति का होता है| यदि संकर में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं तो संकर की प्रकृति प्रतिचुंबकीय होती है|
संयोजकता आबंध सिद्धांत के आधार पर कुछ उप-सहसंयोजन यौगिकों की संरचना तथा आकृति-
(1) अष्टफलकीय संकर-
अष्टफलकीय संकरों का निर्माण d2sp3 या sp3d2 संकरण द्वारा होता है|
जैसे-
हैक्सासायनोफेरेट(||) आयन, [Fe(CN)6]4-
इस संकर में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है| अतः इस अवस्था में Fe2+ के सभी 3d ऑर्बिटल भरे हुए हैं| CN´ आयन प्रबल लीगेंड है| जब 6 CN´ लीगेंड Fe2+ के निकट आते हैं तो 3d इलेक्ट्रॉन हुंड के अधिकतम बहुलता सिद्धांत के विरुद्ध युग्मित होने लगते हैं| अतः दो 3d ऑर्बिटल रिक्त हो जाते हैं| 6 CN´ लिगेंड प्रदान किए गए 12 इलेक्ट्रॉनों को समावेशित करने के लिए केंद्रीय Fe2+ आयन के पास 6 रिक्त परमाण्विक ऑर्बिटलों की आवश्यकता होती है| अतः Fe2+ के दो 3d, एक 4s तथा तीन 4p ऑर्बिटल मिलकर d2sp3 संकरण करते हैं और CN- द्वारा दिए गए 12 इलेक्ट्रॉनों को समावेशित कर लेते हैं|
(2) चतुष्फलकीय संकर-
ये संकर sp3 संकरण द्वारा बनते हैं|
जैसे -
निकिल कार्बोनिल, [Ni(CO)4]
इस संकर में निकिल की ऑक्सीकरण अवस्था 0 है| प्रबल CO लीगैंडो की उपस्थिति में इलेक्ट्रॉन 4s इलेक्ट्रान 3d ऑर्बिटल में प्रवेश करने के लिए बाध्य हो जाते हैं| जिसके कारण sp3 संकरण हो पाता है|
(3) वर्गसमतलीय संकर-
वर्गसमतलीय संकर dsp2 संकरण द्वारा निर्मित होते हैं|
जैसे - टेट्रासायनाइडोनिकिलेट(||) आयन, [Ni(CN)4]2-
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