Advance Chemistry

Sunday, November 8, 2020

ऐमीन्स(Amines)

       ऐमीन्स(Amines)
ऐमीन्स को अमोनिया के ऐसे व्युत्पन्न माना जा सकता है जिनमें अमोनिया के एक या अधिक हाइड्रोजन परमाणुओं को एल्किल समूह से प्रतिस्थापित किया गया हो| इस प्रकार ऐमीन अमोनिया के एल्किल व्युत्पन्न हैं|
          -H, +R                -H, +R
NH3 -----------> R-NH2 ----------> 
            -H, +R
R2NH ----------> R3N 
जहां R एक एल्किल समूह है|

एेमीन का वर्गीकरण-
(A) अमोनिया अणु से एल्किल समूहों द्वारा विस्थापित H-परमाणु की संख्या के आधार पर-
इस आधार पर ऐमीन प्राथमिक(1°), द्वितीयक(2°) तथा तृतीयक(3°) के रूप में बांटे जा सकते हैं-
(1) प्राथमिक या प्राइमरी(1°) ऐमीन-
जिन कार्बनिक यौगिकों में क्रियात्मक समूह के रूप में -NH2 समूह उपस्थित रहता है उन्हें प्राथमिक या प्राइमरी या 1° ऐमीन कहा जाता है| इनका सामान्य सूत्र R-NH2 है|
जैसे - CH3-NH2,  C2H5-NH2
(2) द्वितीयक या सैकेंडरी(2°) ऐमीन-
जिन कार्बनिक यौगिकों में क्रियात्मक समूह के रूप में -NH- समूह(इमिनो समूह) उपस्थित रहता है उन्हें द्वितीयक या सैकेंडरी या 2° ऐमीन कहा जाता है| इनका सामान्य सूत्र R2NH है|
जैसे - CH3-NH-CH3,  
C2H5-NH-CH3
(3) तृतीयक या टर्शयरी(3°) ऐमीन-
जिन कार्बनिक यौगिकों में क्रियात्मक समूह के रूप में >N- समूह उपस्थित रहता है उन्हें तृतीयक या टर्शयरी या 3° ऐमीन कहा जाता है| इनका सामान्य सूत्र R3N है|
जैसे - (CH3)3N,  (C2H5)3N
चतुर्थक अमोनियम यौगिक-
ये यौगिक अमोनियम लवणों के ऐसे व्युत्पन्न हैं जिनमें अमोनियम आयन(NH4+) के चारों हाइड्रोजन परमाणु को एल्किल या एरिल समूहों द्वारा विस्थापित किया गया होता है| इस प्रकार सामान्य सूत्र R4NX प्रकार के यौगिकों को चतुर्थक अमोनियम यौगिक कहा जाता है|
जैसे - [R4N]X 
(B) नाइट्रोजन परमाणु से जुड़े समूहों  की प्रकृति के आधार पर-
इस आधार पर ऐमीन को एेलिफैटिक ऐमीन तथा एेरोमैटिक ऐमीन में बांटा जा सकता है|
(1) एेलिफैटिक ऐमीन-
जिन ऐमीन में नाइट्रोजन परमाणु एक या अधिक समान या भिन्न प्रकार के एल्किल समूह से जुड़ा रहता है, उन्हें ऐलिफैटिक ऐमीन कहा जाता है| यह प्राथमिक, द्वितीयक या तृतीयक हो सकते हैं|
 जैसे- CH3-NH2,  C2H5-NH2
CH3-NH-CH3,  
C2H5-NH-CH3

(2) एेरोमैटिक ऐमीन-
इन ऐमीनो में एक या अधिक एेरिल समूह भी जुड़े होते हैं| 
ये ऐमीन निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(a) एेरिल एेमीन-
जिन ऐमीन में नाइट्रोजन परमाणु एक या अधिक समान या भिन्न प्रकार के ऐरिल समूहों से जुड़ा रहता है उन्हें एरिल ऐमीन कहा जाता है|
 जैसे- C6H5-NH2
C6H5-NH-C6H5
(b)  एरिलएल्किलऐमीन-
जिन ऐमीन में नाइट्रोजन परमाणु समान या भिन्न प्रकार की एक या अधिक एेरोमैटिक रिंग की पार्श्व श्रृंखलाओं से जुड़ा रहता है उन्हें एरिलएल्किलऐमीन कहा जाता है|
जैसे - C6H5-CH2-NH2
C6H5-CH2-NH-CH2-C6H5

ऐमीन का नामकरण-
(A) एेलिफैटिक ऐमीन का नामकरण-
(1) सामान्य पद्धति-
इस पद्धति में एेलिफैटिक एेमीन का नामकरण एेल्किलऐमीन तथा ऐमीनोएल्केन के रूप में किया जाता है| किसी ऐमीन का सामान्य नाम एक एकल सतत शब्द के रूप में लिखा जाता है|
 नाम को निम्न प्रकार लिखा जाता है-
जैसे -
CH3-NH2  
Methylamine or Aminomethane
CH3-CH2-CH2-NH2
n-propylamine or 1-Aminopropane

(CH3)3-N
Trimethylamine or N,N-dimethylaminomethane

(2) I.U.P.A.C. पद्धति -
इस पद्धति में ऐमीन का नामकरण एेल्कानामीन(Alkanamine)  के रूप में किया जाता है| आईयूपीएसी नाम प्राप्त करने के लिए पितृ एल्केन के अंग्रेजी नाम में से अंतिम 'e' को हटाकर अनुलग्न ऐमीन जोड़ा जाता है|
जैसे -
CH3-NH2  
Methanamine
CH3-CH2-NH2  
Ethanamine

 CH3-CH2-CH2-NH2
Propan-1-amine 

(B) एेरोमैटिक ऐमीन का नामकरण-
सामान्य पद्धति
सामान्य पद्धति में एेरोमेटिक ऐमीन का नामकरण ऐरिलऐमीन के रूप में किया जाता है| उपस्थित ऐरिल समूह के नाम में अनुलग्न ऐमीन(amine) जोड़कर यह नाम प्राप्त किया जाता है|
 सरलतम ऐरोमैटिक ऐमीन फेनिलएेमीन C6H5NH2 है| सामान्य रूप से इसे ऐनिलीन कहा जाता है| अन्य सरल ऐरिलऐमीन को प्रायः एेनिलीन के व्युत्पन्नों के रूप में नामित किया जाता है| जैसे-
I.U.P.A.C.पद्धति-
I.U.P.A.C.पद्धति में सरलतम ऐरिलऐमीन C6H5NH2 को बेंजीनामीन(Benzenamine) के रूप में व्यक्त किया जाता है| अन्य ऐरिलऐमिन को बैंजीनामीन के व्युत्पन्नों के रूप में नामित किया जाता है| रिंग पर उपस्थित अन्य प्रतिस्थापन्नो की  स्थितियों को उपयुक्त अंको द्वारा निरूपित किया जाता है| जैसे-
जैसे-

 ऐरिलऐल्किलऐमीन को एेलिफेटिक ऐमीन के व्युत्पन्नों के रूप में नामित किया जाता है| ऐरिल समूह की स्थिति को एक उपयुक्त अंक द्वारा निरूपित किया जाता है 

समूह 18 के तत्व: उत्कृष्ट गैसें (Group 18 Elements: The nobel gases)

समूह 18 के तत्व: उत्कृष्ट गैसें  (Group 18 Elements: The nobel gases)
 आवर्त सारणी के समूह 18 (शून्य समूह ) में हीलियम( He), नियोन(Ne), ऑर्गन (Ar), क्रिप्टन (Kr), जिनोन(Xe), रेडॉन (Rn), तथा ओगानेसन(Og) हैं|
     यह सभी एक परमाण्विक गैसे हैं तथा सामान्य परिस्थितियों में रासायनिक रूप से क्रियाशील नहीं है| अतः इन गैसों को पहले निष्क्रिय गैसें कहा जाता था| सन 1962 में तथा इसके पश्चात यह ज्ञात किया गया कि इन तत्वों में भी अल्प मात्रा में रासायनिक सक्रियता होती है| अतः आजकल इन गैसों को उत्कृष्ट गैसे कहा जाता है| यह गैसे वायुमंडल में बहुत थोड़ी मात्रा में ही पाई जाती हैं| अतः इन्हे दुर्लभ गैसें भी कहा जाता है|
समूह 18 के तत्वों के सामान्य लक्षण-
(A) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-
इनमें उपस्थित सभी ऑर्बिटल पूर्ण होते हैं| हीलियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 है जबकि अन्य सभी उत्कृष्ट गैसों के सामान्य अभिविन्यास ns2 np6 होते हैं|

(B) भौतिक गुण- 

(1) भौतिक अवस्था-
सभी उत्कृष्ट गैसे रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन हैं| ये सभी एकपरमाण्विक गैसे हैं|
(2) परमाणु त्रिज्या-
इनकी परमाणु त्रिज्याएँ वास्तव में  वांडरवाल्स त्रिज्याएं हैं तथा समूह 17 के संगत तत्व की परमाणु त्रिज्या से अधिक होती हैं| समूह में आगे बढ़ने पर परमाणु त्रिज्या में वृद्धि होती है|
(3) गलनांक तथा क्वथनांक-
इनके गलनांक तथा क्वथनांक समान अणुभार के अन्य पदार्थों की तुलना में काफी कम होते हैं| समूह में आगे बढ़ने पर गलनांक तथा क्वथनांक में नियमित वृद्धि होती हैं|
(4) आयनन ऊर्जा-
इनकी आयनन ऊर्जाओं के मान काफी अधिक होते हैं क्योंकि इनके परमाणु कक्षक में इलेक्ट्रॉन पूर्ण होते हैं| प्रत्येक उत्कृष्ट गैस की आयनन ऊर्जा अपने आवर्त में सबसे अधिक होती है| समूह में आगे बढ़ने पर आयनन ऊर्जा घटती है|
(5) जल में विलेयता -
उत्कृष्ट गैसें जल में अल्प मात्रा में ही विलेय हैं|
(6) इलेक्ट्रॉन लब्धि एंथैल्पी-
इनके कक्षको में इलेक्ट्रॉन पूर्ण होने के कारण इनकी इलेक्ट्रॉन लब्धि एंथैल्पी के मान बहुत अधिक धनात्मक होते हैं|

उत्कृष्ट गैसों का रसायन-
इन गैसों के संयोजी कोशों में इलेक्ट्रॉन पूर्ण होने के कारण यह गैसे लगभग अक्रिय होती हैं|
       लेकिन सन 1962 में नील बार्टलेट के अनुसंधान से यह पता चला कि अक्रिय गैसों में से कुछ गैसे रासायनिक रूप से क्रियाशील होती हैं| नील बार्टलेट की खोज के पश्चात जेनॉन के अनेक यौगिकों के निर्माण में सफलता प्राप्त की गई| क्रिप्टन के कुछ थोड़े से यौगिकों को ही अब तक प्राप्त किया जा सका है| रेडॉन के भी कुछ यौगिक प्राप्त किए गए हैं| लेकिन अब तक हिलियम, नियॉन तथा ऑर्गन के वास्तविक रासायनिक यौगिकों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है|
जेनॉन के यौगिक-
              675K, Ni
Xe + F2 --------------> XeF2

                     675K
Xe + 2F2 --------------> XeF4

                 500-575K
Xe + 3F2 -----------------> XeF6

XeF6 + H2O --------------> XeOF4 + 2HF

XeF6 + 3H2O --------------> XeO3 + 6HF




Tuesday, November 3, 2020

अंतर हैलोजन यौगिक( Interhalogen compounds )

अंतर हैलोजन यौगिक
(Interhalogen compounds )
हैलोजन परस्पर आपस में क्रिया कर सामान्य सूत्र XYn प्रकार के अनेक महत्वपूर्ण योगिकों का निर्माण करते हैं जिन्हें अंतर हैलोजन यौगिक या भिन्न हैलोजन यौगिक कहा जाता है| सूत्र XYn में X तथा Y भिन्न हैलोजन परमाणु हैं तथा n एक पूर्णांक है जिसका मान 1,3,5,7 होता है|
अंतर हैलोजन यौगिकों का वर्गीकरण-
अंतर हैलोजन यौगिकों के सामान्य सूत्र XYn  में X सदैव आकार में बड़ा हैलोजन परमाणु तथा Y एक  छोटा हैलोजन परमाणु होता है| हैलोजन परमाणु X की ऑक्सीकरण अवस्था n के मान पर निर्भर करती है तथा +1, +3, +5 या +7 हो सकती है लेकिन हैलोजन परमाणु Y की ऑक्सीकरण अवस्था सदैव - 1 ही होती है|
 n के मान के आधार पर अंतर हैलोजन यौगिकों को निम्न चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
(1) XY1 प्रकार के अंतर हैलोजन यौगिक 
(2) XY3 प्रकार के अंतर हैलोजन यौगिक 
(3) XY5 प्रकार के अंतर हैलोजन यौगिक 
(4) XY7 प्रकार के अंतर हैलोजन यौगिक
बनाने की विधि-
अंतर हैलोजन यौगिकों को बनाने के लिए अलग-अलग हैलोजनों को उचित परिस्थितियों में क्रिया कराकर प्राप्त किया जा सकता है|
               437K 
Cl2 + F2 ----------> 2ClF 
                 573K 
Cl2 + 3F2 --------> 2ClF3 

I2 + Cl2 ----> 2ICl 
I2 + 3Cl2 ----> 2ICl3 
अंतर हैलोजन यौगिकों के सामान्य लक्षण-
(1) यह सहसंयोजकीय  प्रकृति के होते हैं|
(2) यह सभी यौगिक वाष्पशील होते हैं इनमें से अधिकतर अस्थिर हैं लेकिन कोई भी विस्फोटक नहीं है|
(3) इनकी प्रकृति प्रतिचुंबकीय होती है|
(4) जल से क्रिया करके जल अपघटित हो जाते हैं|
2IF5 + 5H2O -----> 10HF + I2O5
(5) यह प्रबल ऑक्सीकारकों की तरह व्यवहार करते हैं और अन्य तत्वों से क्रिया करके हैलाइडों का मिश्रण बनाते हैं|
अंतर हैलोजन यौगिकों के उपयोग-
(1) XY प्रकार के अंतर हैलोजन यौगिक हैलोजनीकारकों के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं|
(2) ClF3 तथा BrF3 का उपयोग फ्लोरीनीकारक के रूप में किया जाता है|
(3) ClF3 तथा BrF3 का उपयोग प्रोपेलेंट्स में ऑक्सीकारकों के रूप में किया जाता है|
(4) इनका उपयोग पॉलीहैलाइड्स के निर्माण में भी किया जाता है|

हाइड्रोजन क्लोराइड गैस तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

हाइड्रोजन क्लोराइड गैस तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

[A] हाइड्रोजन क्लोराइड गैस-
बनाने की विधियां-
हाइड्रोजन क्लोराइड गैस को निम्न अभिक्रियाओं द्वारा प्राप्त किया जा सकता है-
                Sunlight 
H2 + Cl2 --------------> 2HCl 

KCl + H2SO4 ------> KHSO4 + HCl 
BaCl2 + H2SO4 ------> BaSO4 + 2HCl 
प्रयोगशाला विधि-
NaCl + H2SO4 ------> NaHSO4 + HCl 
भौतिक गुण-
यह एक रंगहीन, तीक्ष्ण गंध युक्त गैस है तथा जल में विलेय है| यह संक्षारक प्रकृति की होती है और सूँघने पर नाक, गला तथा फेफड़ों में जलन उत्पन्न करती है|
 मुक्त H+ आयनों की अनुपस्थिति के कारण शुष्क हाइड्रोजन क्लोराइड गैस अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित नहीं करती है और इसका लिटमस पेपर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
[B] हाइड्रोक्लोरिक अम्ल-
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल वास्तव में हाइड्रोजन क्लोराइड गैस का एक जलीय विलयन होता है|
रासायनिक गुण-
(1) अम्लीय गुण-
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रबल एक शासकीय अम्ल है क्योंकि यह जलीय माध्यम में एक हाइड्रोजन आयन(H+) देता है|
HCl + H2O <==> H3O+  +  Cl´
(2) धातुओं से क्रिया-
सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन से उपर स्थित धातुओं से क्रिया कर यह  हाइड्रोजन गैस देता है|
Mg + 2HCl ----> MgCl2 + H2
Zn + 2HCl ----> ZnCl2 + H2
(3) ऑक्साइडों तथा हाइड्रोक्साइडों से क्रिया-
यह धात्विक ऑक्साइडों तथा हाइड्रोक्साइडों  से क्रिया कर संगत लवण तथा जल देता है|
CuO + 2HCl -----> CuCl2 + H2O 
MgO + 2HCl -----> MgCl2 + H2O
NaOH + HCl -----> NaCl + H2O
Ca(OH)2 + 2HCl -----> CaCl2 + 2H2O
(4) कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट से क्रिया -
 यह धात्विक कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट से क्रिया कर संगत क्लोराइड बनाता है एवं CO2 गैस निकालता है|
Na2CO3 + 2HCl -----> 2NaCl + H2O + CO2

NaHCO3 + 2HCl -----> NaCl + H2O + CO2
(5) सल्फाइट तथा बाईसल्फाइट से क्रिया-
यह धात्विक सल्फाइट तथा बाईसल्फाइट से क्रिया कर SO2 गैस बनाती है तथा संगत लवण देती है|
Na2SO3 + 2HCl -----> 2NaCl + H2O + SO2

NaHSO3 + HCl -----> NaCl + H2O + SO2
(6) नाइट्रेट से क्रिया-
यह सिल्वर नाइट्रेट से क्रिया कर सिल्वर क्लोराइड का सफेद अवक्षेप देता है|
AgNO3 + HCl -----> AgCl + HNO3

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के उपयोग-
(1) चर्म उद्योग तथा सोल्डरिंग कार्य में
(2) ग्लूकोज के निर्माण में इसका उपयोग स्टार्च को जल अपघटन में किया जाता है
(3) इस्पात उद्योग में इस्पात के पिकलिंग में
(4) हड्डियों से सरेस के निष्कर्षण में
(5) अम्ल राज(HCl+HNO3) के निर्माण में
(6) प्रयोगशाला अभिकर्मक के रूप में


फ्लोरीन का असंगत व्यवहार

फ्लोरीन का असंगत व्यवहार
समूह 17 का प्रथम सदस्य अर्थात फ्लोरीन अनेक गुणों में अपने समूह के अन्य सदस्यों से भिन्न व्यवहार प्रदर्शित करता है| फ्लोरीन के इस असंगत व्यवहार के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(1) इसके परमाणु आकार का कम होना
(2) विद्युत ऋणात्मकता का अधिक होना 
(3) संयोजी कक्ष में रिक्त d-ऑर्बिटलों की अनुपस्थिति|
फ्लोरीन तथा समूह के अन्य सदस्यों के व्यवहार में मुख्य अंतर निम्न है-
(1) क्रियाशीलता -
फ्लोरीन अपने समूह के अन्य तत्वों की तुलना में काफी अधिक क्रियाशील होता है|
(2) ऑक्सीकरण अवस्था-
फ्लोरीन अपने सभी यौगिकों में केवल -1 ऑक्सीकरण अवस्था ही प्रदर्शित करता है| जबकि समूह के अन्य सदस्य - 1 अवस्था के अतिरिक्त +1,+3,+ 5 तथा +7 अवस्थाएं भी प्रदर्शित करते हैं|
(3) इलेक्ट्रॉन लब्धि एंथैल्पी-
क्लोरीन से अधिक विद्युत ऋणात्मक होने के बाद भी फ्लोरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एंथैल्पी का मान क्लोरीन की तुलना में कम ऋणात्मक होता है|
(4) हाइड्रोजन बंधों का निर्माण-
कम परमाणु आकार तथा अधिक विद्युत ऋणात्मकता के कारण फ्लोरीन अपने हाइड्राइडों में हाइड्रोजन बंधों का निर्माण करती है| समूह के अन्य तत्व है हाईड्राइडों में हाइड्रोजन बंधों का निर्माण नहीं कर पाते हैं|

Sunday, November 1, 2020

क्लोरीन(Chlorine)

         क्लोरीन(Chlorine) 
क्लोरीन की खोज शैले ने सन 1774 में की | डेवी ने सन 1810 में यह सिद्ध किया कि यह एक तत्व है और इसका नाम क्लोरीन( Greek : Chloros= greenish yellow) रखा गया |

क्लोरीन बनाने की सामान्य विधियाँ-
(1) HCl के ऑक्सीकरण द्वारा -
किसी ऑक्सीकारक पदार्थ द्वारा HCl को ऑक्सीकृत  करने पर क्लोरीन गैस प्राप्त हो जाती है जैसे-
MnO2 + 4HCl -----> MnCl2 + 2H2O + Cl2 

2KMnO4 + 16HCl -----> 2KCl + 2MnCl2 + 8H2O + 5Cl2 

K2Cr2O7 + 14HCl -----> 2KCl + 2CrCl3 + 7H2O + 3Cl2 

(2) सोडियम क्लोराइड द्वारा-
जब सोडियम क्लोराइड को MnO2 और सांद्र H2SO4 के साथ गर्म करते हैं तो क्लोरीन गैस प्राप्त होती है|
2NaCl + MnO2 + 3H2SO4 -----> 2NaHSO4 + MnSO4 + 2H2O + Cl2

(3) क्लोरीन बनाने की प्रयोगशाला विधि-
एक फ्लास्क में MnO2 लेकर उसमें थिसिल कीप सहायता से सांद्र HCl अम्ल डाला जाता है| मिश्रण को गर्म करने पर क्लोरीन गैस निकलती है| इसे जल तथा सांद्र H2SO4 में क्रमशः बारी-बारी से प्रवाहित करने के बाद एक गैस जार में एकत्र कर लिया जाता है|
MnO2 + 4HCl -----> MnCl2 + 2H2O + Cl2 
(4) क्लोरीन के औद्योगिक निर्माण की विधि-
(a) डीकन की विधि-
इस विधि में हाइड्रोजन क्लोराइड गैस(HCl) को उत्प्रेरक की उपस्थिति में वायु की ऑक्सीजन(O2) द्वारा ऑक्सीकृत करके क्लोरीन गैस(Cl2) बनाई जाती है इस क्रिया में क्यूप्रिक क्लोराइड (CuCl2) उत्प्रेरक के रूप में लिया जाता है|
 इस विधि में ऑक्सीकारक स्तंभ का ताप 450°C होता है तथा इसमें क्यूप्रिक क्लोराइड उत्प्रेरक के रूप में रखा रहता है|

(b) वैद्युत अपघटनी विधि-
क्लोरीन गैस के निर्माण की आधुनिक विधि है इस विधि में सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन ब्रायन या पिघले हुए सोडियम क्लोराइड का वैद्युत अपघटन किया जाता है जिससे एनोड पर क्लोरीन गैस प्राप्त होती है| इसके लिए प्रायः नेल्सन सेल का प्रयोग किया जाता है|
NaCl <==> Na+  +  Cl´
(कैथोड पर)
2H2O + 2e´ ----> H2(g) + 2OH´ 
Na+  +  OH´ <==> NaOH 
(एनोड पर )
2Cl´ -----> Cl2(g) + 2e´

क्लोरीन गैस के भौतिक गुण-
(1) यह एक हरे-पीले रंग की तीक्ष्ण गंध युक्त तथा विषैली गैस है|
(2) यह जल में विलेय है| इसके जलीय विलयन को क्लोरीन जल कहते हैं|
(3) यह वायु तथा ऑक्सीजन से भारी है|
(4) यह 238.4K पर द्रव अवस्था में तथा 172.4K पर ठोस अवस्था में बदल जाती है|
क्लोरीन गैस के रासायनिक गुण-
(1) ज्वलनशीलता-
यह गैस स्वयं नहीं जलती है परंतु कुछ पदार्थों को जलने में सहायता देती है| जैसे- सल्फर को
(2) अधातुओं के साथ क्रिया-
यह अधिकांश अधातुओं के साथ क्रिया करके उनके क्लोराइड बनाती है|
2P + 3Cl2 ---> 2PCl3

2P + 5Cl2 ---> 2PCl5

H2 + Cl2 ---> 2HCl
(3) धातुओं के साथ क्रिया-
लगभग सभी धातु क्लोरीन के साथ क्रिया करके अपने क्लोराइड लवण बनाते हैं|
2Al + 3Cl2 ---> 2AlCl3
Cu + Cl2 ---> CuCl2
2Na + Cl2 ---> 2NaCl
Zn + Cl2 ---> ZnCl2
Mg + Cl2 ---> MgCl2
(4) सोडियम हाइड्रोक्साइड के साथ क्रिया-
ठंडे तथा तनु सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन में प्रवाहित करने पर यह सोडियम हाइपोक्लोराइट(NaOCl)बनाती है|
Cl2 + 2NaOH ----> NaCl + NaOCl + H2O 
गर्म तथा सांद्र सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन में प्रवाहित करने पर यह सोडियम क्लोरेट (NaClO3) बनाती है|
Cl2 + 6NaOH ----> 5NaCl + NaClO3 + 3H2O 
(5) बुझे हुए चूने के साथ क्रिया-
शुष्क बुझे हुए चूने पर प्रवाहित करने पर यह विरंजक चूर्ण (कैलशियम क्लोरो हाइपोक्लोराइट) बनाती है|
Cl2 + Ca(OH)2 ----> CaOCl2 + H2O 
(6) अमोनिया के साथ क्रिया-
यह अमोनिया के साथ क्रिया करके अमोनियम क्लोराइड तथा नाइट्रोजन गैस बनाती है|
3Cl2 + 8NH3 ----> 6NH4Cl + N2 
 यदि क्लोरीन की अधिक मात्रा की क्रिया अमोनिया की कम मात्रा से कराई जाती है तो नाइट्रोजन ट्राई क्लोराइड बनता है जो एक अति विस्फोटक पदार्थ है|
3Cl2 + NH3 ----> NCl3 + 3HCl
(7) ऑक्सीकारक गुण-
क्लोरीन एक प्रबल ऑक्सीकारक है तथा यह विभिन्न पदार्थों को ऑक्सीकृत कर देती है|
2KBr + Cl2 ----> 2KCl + Br2
2KI + Cl2 ----> 2KCl + I2
H2S + Cl2 ----> 2HCl + S 
2FeCl2 + Cl2 ----> 2FeCl3
(8) प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
क्लोरीन विभिन्न कार्बनिक यौगिकों के साथ प्रतिस्थापन अभिक्रिया प्रदर्शित करता है|
                  Sunlight 
CH4 + Cl2 --------------> CH3Cl + HCl 
(9) विरंजक तथा जीवाणुनाशक गुण-
प्रबल ऑक्सीकारक होने के कारण यह एक तीव्र विरंजक तथा जीवाणुनाशक होता है| यह  गीले फूल, पत्तियों आदि का रंग उड़ा देता है|
H2O + Cl2 ----> 2HCl + O 

रंगीन पदार्थ + O -----> रंगहीन पदार्थ

क्लोरीन के उपयोग-
(1) इसका उपयोग विरंजक चूर्ण, ब्रोमीन, क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, फॉस्जीन आदि यौगिकों के बनाने में किया जाता है|
(2) इसका उपयोग जीवाणुनाशक के रूप में पेयजल के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है|
(3) क्लोरीन गैस तथा क्लोरीन जल का उपयोग प्रयोगशाला में एक अभिकर्मक के रूप में किया जाता है|
(4) इसका उपयोग धातु निष्कर्षण तथा शोधन में किया जाता है|
(5) इसका उपयोग रंजक तथा विस्फोटक पदार्थ बनाने में किया जाता है|
(6) इसका उपयोग अत्यंत विषैली गैसें जैसे फॉस्जीन, मस्टर्ड गैस तथा अश्रु गैस बनाने में किया जाता है|
(7) इसका उपयोग विरंजक के रूप में कागज, कपड़ों आदि का रंग उड़ाने में किया जाता है|

Saturday, October 31, 2020

समूह 17 के तत्व (हैलोजन परिवार)

समूह 17 के तत्व (हैलोजन परिवार)
आवर्त सारणी के समूह 17 में फ्लोरीन(F), क्लोरीन(Cl), ब्रोमीन(Br), आयोडीन(I) तथा एस्टैटिन(At) को रखा गया है| इन्हें सामूहिक रूप से हैलोजन अर्थात ´लवणों का निर्माण करने वाले´ कहा जाता है|

समूह 17 के तत्वों के सामान्य लक्षण-
(A) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-
इन तत्वों के संयोजी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2 np5 प्रकार का होता है|
(B) भौतिक गुण-
(1) भौतिक अवस्था- कमरे के ताप पर फ्लोरीन तथा क्लोरीन गैस, ब्रोमीन द्रव तथा आयोडीन ठोस होता है|
(2) परमाणु तथा आयनिक त्रिज्या-
प्रत्येक हैलोजन परमाणु की परमाणु त्रिज्या अपने आवर्त में स्थित अन्य सभी परमाणु की परमाणु त्रिज्या की तुलना में सबसे कम होती है| समूह में आगे बढ़ने पर परमाणु तथा आयनिक त्रिज्या में क्रमशः वृद्धि होती है| हैलाइड आयन की त्रिज्या संगत हैलोजन परमाणु की त्रिज्या से अधिक होती है|
(3) गलनांक और क्वथनांक-
हैलोजनों के गलनांक व क्वथनांक कम होते हैं| समूह में आगे बढ़ने पर इनमें क्रमशः वृद्धि होती है|
(4) आयनन ऊर्जा-
हैलोजनों की आयनन ऊर्जा का मान काफी अधिक होता है क्योंकि इनका परमाणु बहुत छोटा तथा उच्च नाभिकीय आवेश होता है| समूह में आगे बढ़ने पर आयनन ऊर्जाओं के मान कम होते जाते हैं|
(5) विद्युत ऋणात्मकता-
हैलोजन अत्यधिक विद्युत ऋणात्मक तत्व हैं| वास्तव में प्रत्येक हैलोजन अपने आवर्त का सबसे अधिक विद्युत ऋणात्मक तत्व है| समूह में आगे बढ़ने पर विद्युत ऋणात्मकता कम होती जाती है| समूह में विद्युत ऋणात्मकता  निम्न क्रम में घटती है- 
F > Cl > Br > I 
(6) ऑक्सीकरण अवस्थाएं-
फ्लोरीन अपने सभी यौगिकों में केवल -1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है| अन्य हैलोजन - 1 अवस्था के अतिरिक्त +1, +3, +5, +7 अवस्थाएं भी प्रदर्शित करते हैं|
(7) रंग-
फ्लोरीन(F) हल्का पीला, क्लोरीन(Cl) हरा-पीला, ब्रोमीन(Br) लाल तथा आयोडीन(I)बैगनी होता है|

(C)  हैलोजनों के रासायनिक गुण-
(1) हैलाइड्स-
हैलोजन आवर्त सारणी में उपस्थित लगभग सभी तत्वों से संयोग कर एक बड़ी संख्या में द्विक यौगिकों का निर्माण करते हैं जिन्हें हैलाइड्स कहते हैं| धात्विक तथा अधात्विक हैलाइड के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्न है-
2Na + Cl2 ----> 2NaCl 
H2 + Cl2 ----> 2HCl 

(2) ऑक्साइडस-
फ्लोरिन केवल दो ऑक्साइडों OF2 तथा O2F2 का निर्माण करता है| अन्य तत्व अनेक ऑक्साइडों का निर्माण करते हैं जिनमें इनकी ऑक्सीकरण अवस्थायें +1 से +7 के बीच होती है|
(3) ऑक्सीकारक प्रवृत्ति-
अधिक विद्युत ऋणात्मकता  के कारण हैलोजन परमाणु प्रबल ऑक्सीकारकों की तरह व्यवहार करते हैं|


सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4)

     सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4)
यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण रसायन है | इसे प्रायः रसायनों का राजा कहते हैं|
औद्योगिक उत्पादन -
व्यापारिक स्तर पर सल्फ्यूरिक अम्ल का उत्पादन संपर्क विधि या लैड कक्ष विधि से किया जाता है|
संपर्क विधि-
इस विधि में सल्फ्यूरिक अम्ल का उत्पादन करने के लिए पहले सल्फर डाइऑक्साइड का वायु द्वारा सल्फर ट्राइऑक्साइड में उत्प्रेरणीय ऑक्सीकरण किया जाता है|
2SO2 + O2 <-----> 2SO3
उपरोक्त विधि से प्राप्त सल्फर डाइऑक्साइड को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल में घोलकर ओलियम( H2S2O7)  प्राप्त किया जाता है| इस ओलियम में उपयुक्त मात्रा में जल मिलाकर इच्छित सांद्रण के सल्फ्यूरिक अम्ल को प्राप्त किया जा सकता है|
H2SO4 + SO3 -----> H2S2O7
H2S2O7 + H2O ----> 2H2SO4
सल्फ्यूरिक अम्ल के गुण 
(A) भौतिक गुण-
(1) शुद्ध सल्फ्यूरिक अम्ल एक रंगहीन गाढ़ा तैलीय द्रव है|
(2) यह जल में विलेय है| इसको जल में मिलाने से ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया होती है|
(3) इस का क्वथनांक 611K होता है
(4) नम वायु में यह धूम उत्सर्जित करता है|
(5) त्वचा के संपर्क में आने पर यह त्वचा को जलाकर घाव उत्पन्न करता है|
(B) रासायनिक गुण-
(1) वियोजन-
शुद्ध जल रहित सल्फ्यूरिक अम्ल को उबालने पर यह वियोजित होकर सल्फर ट्राईऑक्साइड तथा जल देता है|
H2SO4 <------> SO3 + H2O 
(2) अम्लीय प्रकृति-
यह एक द्विभास्मिक अम्ल है तथा क्षारों से क्रिया कर दो प्रकार के लवण बनाता है|
NaOH + H2SO4 -----> NaHSO4 + H2O 

2NaOH + H2SO4 -----> Na2SO4 + 2H2O 
(3) निर्जलीकारक के रूप में-
यह अनेक यौगिकों से जल के अणुओं को निष्कासित करने में सक्षम होता है|
                     Conc.H2SO4
C12H22O11 ------------------> 12C + 11H2O 

                 Conc.H2SO4
C2H5OH  ------------------> C2H4 + H2O 
(4) ऑक्सीकारक गुण-
यह एक ऑक्सीकारक का कार्य करता है क्योंकि यह आसानी से नवजात ऑक्सीजन दे सकता है|
H2SO4 ------> H2O + SO2 + O 
--------------------------------------------------

Cu + 2H2SO4 -----> CuSO4 + 2H2O + SO2

C + 2H2SO4 -----> CO2 + 2H2O + 2SO2

P4 + 10H2SO4 -----> 4H3PO4 + 4H2O + 10SO2
(5) लवणों से क्रिया-
लवणों से क्रिया करके यह सामान्यतः संगत अम्लों का निर्माण करता है|
NaCl + H2SO4 -----> NaHSO4 + HCl 

KNO3 + H2SO4 -----> KHSO4 + HNO3


सल्फ्यूरिक अम्ल के उपयोग-
(1) प्रयोगशाला अभिकर्मक के रूप में
(2) अनेक रासायनिक खादों के उत्पादन में
(3) अनेक रंगो, विस्फोटकों एवं औषधियों के निर्माण में
(4) अनेक प्रकार के रसायनों के उत्पादन में
(5) अनेक अम्लों के उत्पादन में
(6) पेंट्स, प्लास्टिक आदि के उत्पादन में
(7) कागज तथा कपड़ा उद्योग में
(8) चमड़ा उद्योग में
(9) धातुओं के निष्कर्षण में
(10) बैटरीयों में
(11) पेट्रोलियम उद्योग में
 (12) एक निर्जलीकारक के रूप में


Thursday, October 29, 2020

सल्फर डाइऑक्साइड(SO2)

    सल्फर डाइऑक्साइड(SO2)
बनाने की विधियां 
(1) कार्बन, सल्फर, कॉपर आदि पर सांद्र H2SO4 की क्रिया द्वारा-
कार्बन, सल्फर, कॉपर आदि पर गर्म तथा सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया करने पर सल्फर डाइऑक्साइड प्राप्त होती हैं|
C + 2H2SO4 -----> CO2 + 2SO2 + 2H2O

S + 2H2SO4 ----->  3SO2 + 2H2O

Cu + 2H2SO4 -----> CuSO4 + SO2 + 2H2O

(2) प्रयोगशाला विधि-
प्रयोगशाला में सल्फर डाइऑक्साइड को तांबे की छीलन पर गर्म तथा सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया से प्राप्त किया जा सकता है|
Cu + 2H2SO4 -----> CuSO4 + SO2 + 2H2O
विधि- इस विधि में थिसिल कीप तथा निकास नली युक्त एक गोल पेंदी के फ्लास्क मेंं तांबे की छीलन ली जाती है| थिसिल कीप से सांद्र H2SO4 को फ्लास्क मेंं गिराया जाताा है और फ्लास्क  को गर्म किया जाताा है| प्राप्त SO2 गैस  को एक जार में एकत्र कर लेते हैं|

(3) औद्योगिक उत्पादन-
औद्योगिक स्तर पर इसे सल्फर, आयरन पायराइटीज(FeS2), जिंक ब्लेंडी(ZnS) आदि के दहन द्वारा प्राप्त किया जाता है|

S + O2 -----> SO2

4FeS2 + 11O2 ----> 2Fe2O3 + 8SO2 

2ZnS + 3O2 ----> 2ZnO + 2SO2 

सल्फर डाइऑक्साइड के गुण- 
(A) भौतिक गुण- 
(1) एक रंगहीन गैस
(2) तीव्र गंध युक्त
(3) वायु से 2.2 गुना अधिक भारी
(4) यह एक विषैली गैस है और श्वसन समस्याएं उत्पन्न करती है|
(5) यह जल में काफी अधिक विलेय है| जल में घुलकर यह  सल्फ्यूरस अम्ल(H2SO3) बनाती है|
(B) रासायनिक गुण-
(1) दहनशीलता-
 यह न तो ज्वलनशील है और न ही जलने में सहायक है लेकिन जलतेेेे हुए मैग्नीशियम तथा पोटेशियम इसमें जलते रहते हैं|
2Mg  + SO2 ----> 2MgO + S
4K + 3SO2 ----> K2S2O3 + K2SO3
(2) ऊष्मीय वियोजन-
 तेजी से गर्म किए जाने पर यह सल्फर तथा सल्फर ट्राई ऑक्साइड में टूट जाता है|
3SO2 ------> S + 2SO3 

(3) अम्लीय प्रकृति-
 यह एक अम्लीय आक्साइड हैै तथा जल  में घुलकर सल्फ्यूरस अम्ल बनाता है|
SO2 + H2O ----->  H2SO3 
(4) क्षारों से क्रिया-
 यह क्षारों से क्रिया कर दो प्रकार के लवण, हाइड्रोजन सल्फाइटो का निर्माण करती है जैसे-
NaOH +  SO2 ----> NaHSO3 
2NaOH +  SO2 ----> Na2SO3 + H2O  

(5) कार्बोनेटों से क्रिया-
 यह कार्बोनेटो से क्रिया कर कार्बन डाइऑक्साइड बनाती है|
Na2CO3 +  2SO2 + H2O ----> 2NaHSO3 + CO2

(6) अपचायक प्रकृति-
 नमी की उपस्थिति में यह नवजात हाइड्रोजन उत्पन्न करती हैं और इस प्रकार एक अपचायक  की तरह व्यवहार करती है|
2KMnO4 +  5SO2 + 2H2O  ----> K2SO4 + 2MnSO4 + 2H2SO4 

K2Cr2O7 +  3SO2 + H2SO4  ----> K2SO4 + Cr2(SO4)3 + H2O

(7) विरंजक गुण-
 नमी की उपस्थिति में यह  एक विरंजक की तरह व्यवहार करती है तथा रंगीन पुष्पों, पत्तियों तथा कपड़ों आदि को रंगहीन बना सकती है|
(8) ऑक्सीकारक गुण-
  यह  एक ऑक्सीकारक की तरह भी व्यवहार करती है|
2H2S + SO2 -------> 3S + 2H2O 
3Fe + SO2 -----> 2FeO + FeS 
3Sn + SO2 -----> 2SnO + SnS 
(9) असंतृप्त प्रकृति-
यह एक असंतृप्त यौगिक की तरह व्यवहार करती हैं तथा ऑक्सीजन, क्लोरीन आदि से क्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाती है|
2SO2 + O2 -----> 2SO3
SO2 + Cl2 -----> SO2Cl2

उपयोग -
(1) सल्फ्यूरिक अम्ल के औद्योगिक उत्पादन में
(2) सल्फाइटो के निर्माण में
(3) ऊन, रेशम आदि के विरंजन में
(4) चीनी के शुद्धिकरण में
(5) एक कीटाणुनाशक के रूप में
(6) एक शीतलक के रूप में

Tuesday, October 27, 2020

सल्फर के अपररूप( Allotropic forms of Sulphur )

सल्फर के अपररूप( Allotropic forms of Sulphur )
सल्फर के प्रमुख अपररूप निम्न हैं-
(1) विषम लंबाक्ष या रोम्बिक सल्फर-
यह सल्फर का सर्वाधिक सामान्य तथा सर्वाधिक स्थिर रूप है| इसे अल्फा सल्फर भी कहा जाता है| यह पीले रंग का ठोस पदार्थ है| इसका गलनांक 385.8 K है|यह जल में विलेय है| यह सल्फर कमरे के ताप पर स्थिर है| कमरे के ताप पर इसका अणुसूत्र S8 प्राप्त किया गया है| इसके अणु में उपस्थित 8 सल्फर परमाणु एक पुकर्ड रिंग के रूप में जुड़े रहते हैं|
(2) एकनताक्ष या मोनोक्लिनिक सल्फर-
इसे बीटा सल्फर भी कहा जाता है| इसे प्राप्त करने के लिए सल्फर को एक प्याली में पिघलाया जाता है और पिघले सल्फर को पपड़ी जमने तक ठंडा किया जाता है| अब सतह पर स्थित पपड़ी में एक सुई से छेद कर द्रव को बाहर निकाल दिया जाता है| पपड़ी हटाने पर एकनताक्ष  सल्फर के पारदर्शी क्रिस्टल प्राप्त होते हैं|
(3) प्लास्टिक सल्फर-
इसे गामा सल्फर भी कहा जाता है| इसे उबलती सल्फर को ठंडे जल में गिरा कर प्राप्त किया जा सकता है|यह रबड़ की भांति एक मृदु अक्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है| इसका गलनांक निश्चित नहीं है| यह न तो जल में और ना ही कार्बन डाईसल्फाइड में विलेय है|