क्लोरीन(Chlorine) क्लोरीन की खोज शैले ने सन 1774 में की | डेवी ने सन 1810 में यह सिद्ध किया कि यह एक तत्व है और इसका नाम क्लोरीन( Greek : Chloros= greenish yellow) रखा गया |
क्लोरीन बनाने की सामान्य विधियाँ-
(1) HCl के ऑक्सीकरण द्वारा -
किसी ऑक्सीकारक पदार्थ द्वारा HCl को ऑक्सीकृत करने पर क्लोरीन गैस प्राप्त हो जाती है जैसे-
MnO2 + 4HCl -----> MnCl2 + 2H2O + Cl2
2KMnO4 + 16HCl -----> 2KCl + 2MnCl2 + 8H2O + 5Cl2
K2Cr2O7 + 14HCl -----> 2KCl + 2CrCl3 + 7H2O + 3Cl2
(2) सोडियम क्लोराइड द्वारा-
जब सोडियम क्लोराइड को MnO2 और सांद्र H2SO4 के साथ गर्म करते हैं तो क्लोरीन गैस प्राप्त होती है|
2NaCl + MnO2 + 3H2SO4 -----> 2NaHSO4 + MnSO4 + 2H2O + Cl2
(3) क्लोरीन बनाने की प्रयोगशाला विधि-
एक फ्लास्क में MnO2 लेकर उसमें थिसिल कीप सहायता से सांद्र HCl अम्ल डाला जाता है| मिश्रण को गर्म करने पर क्लोरीन गैस निकलती है| इसे जल तथा सांद्र H2SO4 में क्रमशः बारी-बारी से प्रवाहित करने के बाद एक गैस जार में एकत्र कर लिया जाता है|
MnO2 + 4HCl -----> MnCl2 + 2H2O + Cl2
(4) क्लोरीन के औद्योगिक निर्माण की विधि-
(a) डीकन की विधि-
इस विधि में हाइड्रोजन क्लोराइड गैस(HCl) को उत्प्रेरक की उपस्थिति में वायु की ऑक्सीजन(O2) द्वारा ऑक्सीकृत करके क्लोरीन गैस(Cl2) बनाई जाती है इस क्रिया में क्यूप्रिक क्लोराइड (CuCl2) उत्प्रेरक के रूप में लिया जाता है|
इस विधि में ऑक्सीकारक स्तंभ का ताप 450°C होता है तथा इसमें क्यूप्रिक क्लोराइड उत्प्रेरक के रूप में रखा रहता है|
(b) वैद्युत अपघटनी विधि-
क्लोरीन गैस के निर्माण की आधुनिक विधि है इस विधि में सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन ब्रायन या पिघले हुए सोडियम क्लोराइड का वैद्युत अपघटन किया जाता है जिससे एनोड पर क्लोरीन गैस प्राप्त होती है| इसके लिए प्रायः नेल्सन सेल का प्रयोग किया जाता है|
NaCl <==> Na+ + Cl´
(कैथोड पर)
2H2O + 2e´ ----> H2(g) + 2OH´
Na+ + OH´ <==> NaOH
(एनोड पर )
2Cl´ -----> Cl2(g) + 2e´
क्लोरीन गैस के भौतिक गुण-
(1) यह एक हरे-पीले रंग की तीक्ष्ण गंध युक्त तथा विषैली गैस है|
(2) यह जल में विलेय है| इसके जलीय विलयन को क्लोरीन जल कहते हैं|
(3) यह वायु तथा ऑक्सीजन से भारी है|
(4) यह 238.4K पर द्रव अवस्था में तथा 172.4K पर ठोस अवस्था में बदल जाती है|
क्लोरीन गैस के रासायनिक गुण-
(1) ज्वलनशीलता-
यह गैस स्वयं नहीं जलती है परंतु कुछ पदार्थों को जलने में सहायता देती है| जैसे- सल्फर को
(2) अधातुओं के साथ क्रिया-
यह अधिकांश अधातुओं के साथ क्रिया करके उनके क्लोराइड बनाती है|
2P + 3Cl2 ---> 2PCl3
2P + 5Cl2 ---> 2PCl5
H2 + Cl2 ---> 2HCl
(3) धातुओं के साथ क्रिया-
लगभग सभी धातु क्लोरीन के साथ क्रिया करके अपने क्लोराइड लवण बनाते हैं|
2Al + 3Cl2 ---> 2AlCl3
Cu + Cl2 ---> CuCl2
2Na + Cl2 ---> 2NaCl
Zn + Cl2 ---> ZnCl2
(4) सोडियम हाइड्रोक्साइड के साथ क्रिया-
ठंडे तथा तनु सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन में प्रवाहित करने पर यह सोडियम हाइपोक्लोराइट(NaOCl)बनाती है|
Cl2 + 2NaOH ----> NaCl + NaOCl + H2O
गर्म तथा सांद्र सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन में प्रवाहित करने पर यह सोडियम क्लोरेट (NaClO3) बनाती है|
Cl2 + 6NaOH ----> 5NaCl + NaClO3 + 3H2O
(5) बुझे हुए चूने के साथ क्रिया-
शुष्क बुझे हुए चूने पर प्रवाहित करने पर यह विरंजक चूर्ण (कैलशियम क्लोरो हाइपोक्लोराइट) बनाती है|
Cl2 + Ca(OH)2 ----> CaOCl2 + H2O
(6) अमोनिया के साथ क्रिया-
यह अमोनिया के साथ क्रिया करके अमोनियम क्लोराइड तथा नाइट्रोजन गैस बनाती है|
3Cl2 + 8NH3 ----> 6NH4Cl + N2
यदि क्लोरीन की अधिक मात्रा की क्रिया अमोनिया की कम मात्रा से कराई जाती है तो नाइट्रोजन ट्राई क्लोराइड बनता है जो एक अति विस्फोटक पदार्थ है|
3Cl2 + NH3 ----> NCl3 + 3HCl
(7) ऑक्सीकारक गुण-
क्लोरीन एक प्रबल ऑक्सीकारक है तथा यह विभिन्न पदार्थों को ऑक्सीकृत कर देती है|
2KBr + Cl2 ----> 2KCl + Br2
2KI + Cl2 ----> 2KCl + I2
H2S + Cl2 ----> 2HCl + S
2FeCl2 + Cl2 ----> 2FeCl3
(8) प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
क्लोरीन विभिन्न कार्बनिक यौगिकों के साथ प्रतिस्थापन अभिक्रिया प्रदर्शित करता है|
Sunlight
CH4 + Cl2 --------------> CH3Cl + HCl
(9) विरंजक तथा जीवाणुनाशक गुण-
प्रबल ऑक्सीकारक होने के कारण यह एक तीव्र विरंजक तथा जीवाणुनाशक होता है| यह गीले फूल, पत्तियों आदि का रंग उड़ा देता है|
H2O + Cl2 ----> 2HCl + O
रंगीन पदार्थ + O -----> रंगहीन पदार्थ
क्लोरीन के उपयोग-
(1) इसका उपयोग विरंजक चूर्ण, ब्रोमीन, क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, फॉस्जीन आदि यौगिकों के बनाने में किया जाता है|
(2) इसका उपयोग जीवाणुनाशक के रूप में पेयजल के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है|
(3) क्लोरीन गैस तथा क्लोरीन जल का उपयोग प्रयोगशाला में एक अभिकर्मक के रूप में किया जाता है|
(4) इसका उपयोग धातु निष्कर्षण तथा शोधन में किया जाता है|
(5) इसका उपयोग रंजक तथा विस्फोटक पदार्थ बनाने में किया जाता है|
(6) इसका उपयोग अत्यंत विषैली गैसें जैसे फॉस्जीन, मस्टर्ड गैस तथा अश्रु गैस बनाने में किया जाता है|
(7) इसका उपयोग विरंजक के रूप में कागज, कपड़ों आदि का रंग उड़ाने में किया जाता है|