अणुसूत्र - O3
खोज - वान मेरम ने सन 1785 में विद्युत - विसर्जन मशीनों के पास एक विशेष प्रकार की गंध का अनुभव किया| शॉन बाइन इस विशिष्ट गंध की गैस का नाम ओजोन (Greek : Ozo =मैं सूँघता हूँ) रखा| सोरेट ने इसका अणु सूत्र O3 रखा|
प्राप्ति -
ओजोन बहुत कम मात्रा में साधारण वायु में पाई जाती है| समुद्र तल से लगभग 25 किलोमीटर ऊंचाई पर ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में इसकी सांद्रता बहुत अधिक होती है| वायुमंडल के इस भाग को ओजोन परत कहते हैं|
बनाने की विधियां-
शुष्क ऑक्सीजन गैस में निःशब्द विद्युत विसर्जन प्रवाहित करने पर ओजोन गैस प्राप्त होती है| ओज़ोन बनाने के लिए जिस उपकरण का प्रयोग किया जाता है उसे ओजोनाइजर कहते हैं|
3O2 <-------> 2O3
(1) साइमेन के ओजोनाइजर द्वारा-
इसमें दो सम केंद्रित शीशे की नलियां होती हैं जो एक सिरे पर जुड़ी होती हैं| इन नलियों के दोनों और टिन की पतली चादर मढी होती है| टीन की चादरों को प्रेरण कुंडली से जोड़ दिया जाता है| प्रेरण कुंडली उच्च विभव स्रोत का कार्य करती है| इन नलियों में शुद्ध ऑक्सीजन गैस धीरे-धीरे प्रवाहित की जाती है तथा विद्युत विसर्जन प्रवाहित करने पर ऑक्सीजन, ओज़ोन में बदल जाती है| इस विधि से ओजोन की प्रतिशत मात्रा लगभग 10% होती है|
(2) ब्रॉडी के ओजोनाइजर द्वारा-
यह एक U के आकार की नली होती है| इसका एक भाग पतला तथा दूसरा भाग चौड़ा होता है| चौड़े भाग में एक परखनली लगी होती है| इसे एक चौड़े बर्तन में रखते हैं| परखनली तथा पात्र में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल भरा होता है| पात्र तथा परखनली में एक प्लैटिनम का तार डाल दिया जाता है जिसे प्रेरण कुंडली से जोड़कर एक निःशब्द विद्युत विसर्जन प्रवाहित किया जाता है| शुष्क अक्सीजन प्रवाहित करने पर उपकरण में निःशब्द विद्युत विसर्जन होने के कारण यह ओजोन में बदल जाती है| इस विधि से लगभग 12 से 14% ओजोन प्राप्त होती है|
ओजोन का औद्योगिक निर्माण
साइमेन और हाल्सके के ओज़ोनाइजर द्वारा-
इसमें एक लोहे का बक्सा होता है जिसमें एलुमिनियम की छड़ युक्त कांच के दो बेलन रखे होते हैं| छड़ और बेलन के बीच से शुष्क हवा प्रवाहित की जाती है| लगभग 8000 से 10000 वोल्ट तक के विभवांतर पर विद्युत विसर्जन प्रवाहित करने पर ऑक्सीजन, ओज़ोन में बदल जाती है| उपकरण को ठंडा रखने के लिए इसके बीच के भाग में जल प्रवाहित किया जाता है| लोहे के बक्से को भूयोजित कर दिया जाता है|
भौतिक गुण-
(1) यह सड़ी मछली जैसी गंध वाली गैस है|
(2) गैसीय अवस्था में यह हल्की पीली, द्रव अवस्था में इसका रंग गहरा नीला तथा ठोस अवस्था में इसका रंग बैंगनी होता है|
(3) यह हवा से भारी है|
(4) जल में अल्प मात्रा में विलेय है|
रासायनिक गुण-
(1) अपघटन-
सिल्वर, प्लैटिनम या पैलेडियम की उपस्थिति में यह अपघटित होकर ऑक्सीजन देती है|
2O3 ----> 3O2
(2) ऑक्सीकारक के रूप में-
यह एक प्रबल ऑक्सीकारक है क्योंकि यह सरलता से अपघटित होकर नवजात ऑक्सीजन(O) उत्पन्न करती है|
O3 -----> O2 + O
जैसे -
S + H2O + 3O3 ------> 3O2 + H2SO4
P4 + 6H2O + 10O3 ------> 10O2 + 4H3PO4
2Ag + O3 ----->Ag2O + O2
3SO2 + O3 -----> 3SO3
PbS + 4O3 ------> PbSO4 + 4O2
(3) परॉक्साइडों से क्रिया -
परॉक्साइडों से क्रिया करके यह उन्हें सामान्य ऑक्साइडों में बदल देता है|
BaO2 + O3 ----> BaO + 2O2
H2O2 + O3 ----> H2O + 2O2
(4) विरंजक गुण -
प्रबल ऑक्सीकारक होने के कारण इसमें विरंजक गुण होता है| यह कुछ पदार्थों जैसे- पत्ती, फूल, कपड़े आदि के रंगों को उड़ा देता है|
उपयोग -
(1) इसका उपयोग तेल, मोम, स्टार्च तथा कपड़ों के रंगों का विरंजन करने में किया जाता है|
(2) कीटाणु नाशक के रूप में
(3) जल तथा वायु को शुद्ध करने में
(4) अनेक पदार्थों के ऑक्सीकरण में
(5) सिल्क, कपूर तथा पोटेशियम परमैग्नेट के बनाने में
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