(A) भौतिक गुण-
(1) भौतिक अवस्था, रंग तथा गंध-
निम्न ऐमीन सामान्य ताप पर रंगहीन गैसे हैं जबकि उच्च ऐमीन रंगहीन द्रव हैं| निम्न ऐमीन की अमोनिया के समान प्रबल गंध होती है| उच्च ऐमीन की गंध मछली की गंध के समान होती है|
एेरोमेटिक ऐमीन सामान्य रूप से या तो रंगहीन द्रव या ठोस होते हैं इनकी गंध विशिष्ट होती है|
(2) विलेयता-
तीनों प्रकार के ऐमीन जल के साथ हाइड्रोजन बंध बनाने में सक्षम होते हैं| जल के साथ हाइड्रोजन बंध निर्माण के कारण कम अणुभार वाले एेलिफेटिक ऐमीन जल में अत्यधिक विलेय हैं|
एेरोमेटिक ऐमीन जल में कम विलेय होते हैं| उच्च ऐरोमैटिक ऐमीन जल में लगभग अविलेय होते हैं|
(3) क्वथनांक-
ऐमीन के क्वथनांक तुलनीय अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन के क्वथनांकों से अधिक लेकिन तुलनीय अणुभार वाले एल्कोहल तथा कार्बोक्सिलिक अम्ल के क्वथनांकों से कम होते हैं|
अंतरआणविक हाइड्रोजन बंधों के निर्माण के कारण प्राथमिक तथा द्वितीयक ऐमीन संयोजित अणुओं के रूप में रहते हैं| यही कारण है कि इनके क्वथनांक तुलनीय अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन से अधिक होते हैं|
(B) रासायनिक गुण-
(1) ऐमीन की भास्मिक प्रकृति-
अमोनिया की तरह सभी ऐमीनों के नाइट्रोजन परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म होने के कारण यह सभी भास्मिक प्रकृति के होते हैं, अर्थात लुईस क्षार होते हैं|
RNH2 + H2O <==> RNH3 + OH´
(2) अम्लों से क्रिया-
लवण बनते हैं|
C2H5NH2 + HCl ----> C2H5NH3Cl
(3) एल्किल हैलाइड से क्रिया (एेल्कलीकरण)-
जब ऐलिफेटिक ऐमीन की किसी एल्किल हैलाइड से क्रिया की जाती है तो एमीन में N-परमाणु से जुड़े H-परमाणु एक-एक कर एल्किल समूह से प्रतिस्थापित हो जाते हैं| इस प्रकार एक प्राथमिक ऐमीन(1°), पहले एक द्वितीय ऐमीन(2°) में पुनः एक तृतीयक ऐमीन(3°) में और अंत में एक चतुर्थक लवण में बदल जाता है|
+RX / -HX
R-NH2 --------------> R2NH
+RX / -HX
R2NH --------------> R3N
+RX / -HX
R3N --------------> R4NX
(4) ऐसिलीकरण -
प्राथमिक तथा द्वितीयक ऐमीन अम्ल क्लोराइड तथा अम्ल ऐनहाइड्राइड से क्रिया कर N-प्रतिस्थापित ऐमाइड का निर्माण करते हैं| यह अभिक्रिया ऐसिलीकरण कहलाती है|
CH3COCl + CH3NH2 ------> CH3CONHCH3 + HCl
CH3COCl + CH3CH2NH2 ------> CH3CONHCH2CH3 + HCl
(5) बेंजोयल क्लोराइड से क्रिया(बेंजोयलीकरण )-
किसी अणु में बेंजोयल समूह(C6H5CO-) को प्रविष्ट कराने की प्रक्रिया बेंजोयलीकरण कहलाती है|
एलिफेटिक तथा ऐरोमैटिक दोनों प्रकार के ऐमीन का बैंजोयलीकरण पिरीडीन तथा जलीय NaOH की उपस्थिति में बेंजोयल क्लोराइड की क्रिया द्वारा किया जा सकता है|
C6H5COCl + CH3NH2 ------> C6H5CONHCH3 + HCl
(6) नाइट्रस अम्ल से क्रिया -
तीनों प्रकार की ऐमीन नाइट्रस अम्ल से किया करते हैं लेकिन अभिक्रियाओं की प्रकृति भिन्न होती हैं|
(a) प्राथमिक ऐमीन- पहले डाइएजोनियम लवण बनता है, फिर बाद में नाइट्रोजन व ऐल्कोहल बनता है|
CH3NH2 + HNO2 + HCl ----->
H2O
CH3N2Cl --------> CH3OH + N2 + HCl
C6H5NH2 + HNO2 + HCl -----> C6H5N2Cl
(b) द्वितीयक ऐमीन- N-नाइट्रोसामीन बनता है|
R2NH + HNO2 ----> R2N-N=O + H2O
(c) तृतीयक ऐमीन- ट्राईएल्किलअमोनियम लवण बनता है| यह लवण गर्म करने पर नाइट्रोसामीन तथा अल्कोहल बनता है|
R3N + HNO2 ----> (R3NH)NO2 -----> R2N-N=O + ROH
(7) कार्बिल ऐमीन अभिक्रिया(आइसोसायनाइड परीक्षण)-
यह अभिक्रिया प्राथमिक ऐलिफेटिक तथा प्राथमिक ऐरोमेटिक ऐमीन द्वारा दर्शाई जाती है|
जब किसी ऐलिफेटिक या ऐरोमेटिक प्राथमिक ऐमीन को क्लोरोफॉर्म तथा ऐल्कोहलीय KOH के साथ गर्म किया जाता है, तो एक अत्यंत अप्रिय तीक्ष्ण गंध युक्त आइसोसायनाइड (कार्बिलऐमीन) प्राप्त होता है|
RNH2 + CHCl3 + 3KOH ----> RNC + 3KCl + 3H2O
(8) ऐरोमेटिक ऐमीन की बेंजीन रिंग के कारण अभिक्रियाएं-
(इलेक्ट्रोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाएं)-
ऐरोमेटिक ऐमीन में उपस्थित ऐमीनो (-NH2) समूह एक इलेक्ट्रॉन निर्गत करने वाला समूह है और रिंग की ऑर्थ्रो(o-) तथा पैरा(p-) स्थितियों पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है| जिस कारण ऑर्थो और पैरा स्थितियों पर इलेक्ट्रॉन स्नेही( इलेक्ट्रोफिलिक) प्रतिस्थापन अभिक्रिया होती हैं|
(a) हैलोजनीकरण-
ऐनिलीन की क्रिया ब्रोमीन जल से करने पर 2,4,6- ट्राइब्रोमोऐनिलीन का एक सफेद अवक्षेप प्राप्त होता है|
(b) नाइट्रीकरण-
(c) सल्फोनीकरण-
ऐमीन के उपयोग-
(1) कम अणुभार वाले ऐलिफेटिक ऐमीन, जैसे- डाईएथिल एमीन, ट्राईएथिल एमीन आदि का उपयोग प्रयोगशाला में तथा उद्योगों में विलायकों के रूप में किया जाता है|
(2) औषधियों के उत्पादन में
(3) ऐरोमेटिक ऐमीन जैसे- ऐनिलीन आदि का उपयोग रंजक, ड्रग्स, बहुलक आदि के उत्पादन में किया जाता है| रबड़ उद्योग में भी इसका उपयोग किया जाता है|
(4) चतुर्थक लवणों का उपयोग प्रक्षालको (डिटर्जेंट) के रूप में किया जाता है|
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