(1) प्राप्ति-
यद्यपि इनको दुर्लभ मृदा तत्व समझा जाता है परंतु यह इतनी दुर्लभ नहीं है| यह प्रकृति में सूक्ष्म मात्रा में परंतु बहुतायत में वितरित रहते हैं|
(2) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-
इन तत्वों का सैद्धांतिक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe]4fn5d16s2 प्रकार का होता है| चूँकि 4f उपकोश की उर्जा 5d उपकोश की ऊर्जा के काफी निकट है अतः यह विभेद करना कठिन हो जाता है कि इलेक्ट्रॉन 4f उपकोश में प्रवेश कर रहा है या 5d उपकोश में| यही कारण है कि इनके अनुमानित अभिविन्यास इनके अवलोकित अभिविन्यास से भिन्न होते हैं|अवलोकित अभिविन्यास मुख्यतः [Xe]4fn+16s2 प्रकार के होते हैं|
(3) ऑक्सीकरण अवस्थाएं-
लैंथेनॉयड्स की प्रमुख ऑक्सीकरण अवस्था +3 है इसके अतिरिक्त यह +2 तथा +4 अवस्था भी दर्शाते हैं| जलीय विलयन में +2 एवं +4 की अपेक्षा +3 अवस्था अधिक स्थाई होती है|
(4) चुंबकीय गुण-
इन तत्वों की अधिकांश आयन +3 अवस्था में अनुचुंबकीय प्रकृति के होते हैं तथा एक निश्चित चुंबकीय आघूर्ण प्रदर्शित करते हैं| La3+ तथा Lu3+ में शून्य चुंबकीय गुण पाया जाता है तथा यह अनु चुंबकीय व्यवहार प्रदर्शित नहीं करते हैं|
सामान्यतः अनुचुंबकीय व्यवहार एक या एक से अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण होता है वह परमाणु या आयन जिसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अनुपस्थित होता है प्रतिचुंबकीय कहलाते हैं|
(5) आयनों के रंग-
कुछ अपवादों को छोड़कर लैंथेनॉएड्स के त्रिधनात्मक आयन रंगीन होते हैं| यह जलीय तथा ठोस दोनों अवस्थाओं में रंगीन होते हैं क्योंकि इनके f- कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं|
(6) परमाणु तथा आयनों का आकार (लैंथेनॉयड संकुचन)-
सीरियम से ल्युटीशियम की ओर जाने पर परमाणु तथा आयनों का आकार निरंतर घटता है| यह कमी त्रिधनात्मक आयनों में अधिक नियमित हैं|
जब हम Ce से Lu की ओर गति करते हैं तो परमाणु क्रमांक बढ़ता है तथा अंतिम इलेक्ट्रॉन भीतरी 4f कक्षक में प्रवेश करता है| नाभिकीय आवेश बढ़ने पर एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f इलेक्ट्रॉन द्वारा आवरणी प्रभाव 4f ऑर्बिटल की विशिष्ट आकृतियों के कारण बहुत अधिक प्रभावी नहीं होता है| अतः परमाणु संख्या में वृद्धि होने पर प्रत्येक 4f इलेक्ट्रॉन द्वारा अनुभावित प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है| इसके कारण 4f उपकोश में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन के प्रवेश के साथ आकार में थोड़ी सी कमी आ जाती है| इस प्रकार 4f उपकोश में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन के बढ़ने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि होती है तथा आकार में संकुचन होता है| यह संकुचन निरंतर होता रहता है तथा इस प्रभाव को लैंथेनाइड संकुचन कहा जाता है|
लैंथेनाइड संकुचन के परिणाम-
(a) परमाण्विक एवं आयनिक त्रिज्या-
सामान्यतः समूह में परमाण्विक एवं आयनिक त्रिज्या परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ बढ़ती हैं| यह तथ्य प्रथम एवं द्वितीय संक्रमण श्रेणियों की तुलना करने पर स्पष्ट होता है|
(b) घनत्व-
लैंथेनाइड संकुचन के कारण परमाणु के आकार में कमी होती है फलस्वरुप लंथनॉएड्स के बाद उपस्थित सभी तत्वों में और सामान्य रूप से उनके घनत्व में वृद्धि पाई जाती है|
(c) आयनन विभव-
लैंथेनाइड संकुचन के कारण टंगस्टन तथा उससे आगे के तृतीय पंक्ति तत्वों की आयनन विभव भी प्रभावित होते हैं| लैंथेनाइड संकुचन की अनुपस्थिति में इनके आयनन विभव बहुत कम होने चाहिए थे तथा समूह में नीचे जाने पर इनमें नियमित कमी होने चाहिए थी|
(7) जटिल यौगिकों का निर्माण-
d-ब्लॉक तत्वों की अपेक्षा लैंथेनाइड कम मात्रा में तथा कठिनता से जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं|
(8) मिश्र धातु निर्माण-
लेंथेनॉइड्स अधिक सघन तथा उच्च गलनांक वाली धातु हैं| यह दूसरे धातुओं के साथ विशेषतः आयरन के साथ मिश्र धातु का निर्माण करते हैं| यह मिश्र धातुएं अत्यंत उपयोगी हैं क्योंकि इनमें उपस्थित दुर्लभ मृदा तत्व इस्पात की कार्य क्षमता को बढ़ा देते हैं|
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