Advance Chemistry

Wednesday, December 30, 2020

वेग नियम तथा वेग स्थिरांक (Rate law and rate constant)

वेग नियम तथा वेग स्थिरांक (Rate law and rate constant)

वेग नियम (Rate law )-
वह गणितीय व्यंजक जो अभिकारकों के मोलर सांद्रण पर अभिक्रिया के दर की प्रायोगिक निर्भरता को व्यक्त करता है वेग नियम कहलाता है|
         इस नियम में अभिक्रिया की दर को अभिकारकों की मोलर सांद्रता के गुणनफल के पदों में व्यक्त किया जाता है| सांद्रण पर अभिक्रिया के वेग की वास्तविक निर्भरता व्यक्त करने वाले मान को प्रत्येक सांद्रण पद की घात के रूप में व्यक्त किया जाता है|

यदि एक सामान्य अभिक्रिया,
aA + bB ---> cC + dD 
 की दर A के सांद्रण की घात p तथा B के सांद्रण की घात q पर निर्भर करती है तो, 
   Rate = k [A]p  [B]q 
उपरोक्त समीकरण में प्रयुक्त घातें p तथा q के मान संतुलित समीकरण में प्रयुक्त स्टॉयशियोमीट्रिक नियतांक मानों a तथा b के समान हो भी सकते हैं तथा यह मान उन से भिन्न भी हो सकते हैं|
         कुछ अभिक्रियाओं के वेग नियम निम्न है-
(1) H2 + I2 ---> 2HI 
      Rate = k [H2]  [I2]
 (2) 2NO + O2 ---> 2NO2 
      Rate = k [NO]2  [O2]
(3) NO2 + CO ---> NO + CO2
      Rate = k [NO2]2  [CO]0 
               = k [NO2]2
वेग स्थिरांक (Rate constant)-
अभिक्रिया के वेग नियम में प्रयुक्त स्थिरांक k को वेग स्थिरांक या दर स्थिरांक कहा जाता है| इसे विशिष्ट अभिक्रिया वेग भी कहते हैं|
           माना कि सामान्य अभिक्रिया,
aA + bB ----> product  
 का वेग नियम निम्न है-
       Rate = k [A]p  [B]q 
 जहां, k वेग स्थिरांक है तथा घात p, q क्रमशः अभिकारकों A तथा B के सांद्रण पर अभिक्रिया के वेग की निर्भरता को व्यक्त करते हैं|
 यदि, [A] = 1mol/L
        [B] = 1mol/L
 अतः वेग स्थिरांक को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-
     किसी अभिक्रिया का वेग स्थिरांक उस समय अभिक्रिया के वेग के बराबर होता है जब प्रत्येक अभिकारक का सांद्रण इकाई हो|
 किसी निश्चित ताप पर अभिक्रिया के वेग स्थिरांक का मान निश्चित होता है| ताप बढ़ाए जाने पर इसके मान में वृद्धि होती है| इसका मान अभिकारकों के प्रारंभिक सांद्रणों पर निर्भर नहीं करता है|

 वेग स्थिरांक के मात्रक-
वेग स्थिरांक के मात्रक अभिकारकों के सांद्रण को व्यक्त करने वाले घातों के योगफल पर निर्भर करता है|
    उदाहरण के लिए, माना की सामान्य अभिक्रिया 
aA + bB ----> product  
का वेग नियम नियम है-
      Rate = k [A]p  [B]q 
यदि, p+q = n तो 
 Rate = k [अभिकारकों का सांद्रण ]n 
अतः, 
k= rate /[अभिकारकों का सांद्रण ]n 
  = molL´1s´1/ (molL´1)n 
  = mol1-n Ln-1 s-1



Tuesday, December 29, 2020

अभिक्रिया की दर को प्रभावित करने वाले कारक (Factors which affect the reaction rate)

अभिक्रिया की दर को प्रभावित करने वाले कारक 
(Factors which affect the reaction rate)
किसी अभिक्रिया की दर निम्न कारकों पर निर्भर करती है-
(1) अभिकारकों की प्रकृति-
रासायनिक अभिक्रिया की दर अभिकारकों की प्रकृति पर निर्भर करती है| जैसे- यदि किसी अभिक्रिया में अभिकारकों की प्रकृति ध्रुवीय या आयनिक है तो वह अभिक्रिया तीव्र गति से होती है जबकि सह संयोजी पदार्थों की अभिक्रियाएं अपेक्षाकृत मंद होती हैं|
(2) अभिकारकों का सांद्रण-
सामान्यतः अभिकारकों की सांद्रता बढ़ाए जाने पर अभिक्रिया का वेग भी बढ़ता है क्योंकि अभिकारकों का सांद्रण बढ़ने पर उनके द्वारा आणविक टक्करों की संभावना भी बढ़ती है जिस कारण अभिक्रिया की दर बढ़ जाती है|
         किसी अभिक्रिया की दर पर अभिकारकों के सांद्रण के परिमाणात्मक संबंध का सबसे पहले गुलबर्ग तथा वागे ने अध्ययन किया तथा उन्होंने एक नियम दिया जिसे द्रव्य अनुपाती क्रिया का नियम कहा जाता है|
         इस नियम के अनुसार स्थिर ताप पर किसी अभिक्रिया की दर अभिकारकों के सक्रिय द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती होती है यदि प्रत्येक सक्रिय द्रव्यमान पद पर संगत स्टॉयशियोमीट्रिक नियतांक की घात स्थित हो|
 सामान्य अभिक्रिया, 
aA + bB + cC  ------>  उत्पाद 
के लिए द्रव्य अनुपाती क्रिया के नियम के अनुसार,
अभिक्रिया की दर { [A]a × [B]b × [C]c
या, 
अभिक्रिया की दर= k [A]a × [B]b × [C]c
जहां k एक स्थिरंक है जिसे वेग स्थिरांक कहा जाता है|

जैसे -
निम्न अभिक्रिया के लिए
2NO + 2H2 ---> N2 + 2H2O 
अभिक्रिया की दर= k [NO]2 × [H2]2
(3) ताप -
सामान्यतः ताप का मान बढ़ाया जाने पर ऊष्माक्षेपी एवं ऊष्माशोषी दोनों प्रकार की अभिक्रियाओं का वेग बढ़ जाता है| अधिकांश समांग अभिक्रिया में 10°C  ताप बढ़ाए जाने पर अभिक्रिया का वेग लगभग दोगुना हो जाता है| अतः ताप का अभिक्रिया की दर पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है|
(4) उत्प्रेरक की उपस्थिति-
 उत्प्रेरक वह पदार्थ हैं जो अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देते हैं तथा वे स्वयं अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं| अभिक्रिया के अंत में इनके रासायनिक संगठन में कोई परिवर्तन नहीं होता है| उत्प्रेरक के द्वारा अभिक्रिया के वेग को बढ़ाने का कारण यह है कि यह न्यून उर्जा अवरोध का एक अन्य मार्ग देता है| ऊर्जा अवरोध में कमी के कारण अधिक संख्या में क्रियाकारी पदार्थ अभिक्रिया में भाग लेते हैं जिस कारण अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है|
(5) सतह क्षेत्रफल-
 यदि कोई अभिकारक ठोस है तो उसका सतह क्षेत्रफल बढ़ाए जाने पर अभिक्रिया की दर बढ़ती है| एक ठोस की तुलना में बारीक महीन या पिसे ठोस का सतह क्षेत्रफल अधिक होता है तथा यह अधिक तीव्र गति से किया करते हैं| जैसे- कोयले के एक बड़े टुकड़े की तुलना में उसका चूर्ण अधिक तेजी से जलता है|

Monday, December 28, 2020

अभिक्रिया की दर के प्रकार (Types of rate of reaction)

अभिक्रिया की दर के प्रकार 
(Types of rate of reaction)
रासायनिक अभिक्रिया के बलगतिकी अध्ययन में प्रायः दो प्रकार की अभिक्रियाओं की दर का प्रयोग किया जाता है|
 (1) औसत दर (Average rate )
(2) तात्क्षणिक दर (Instantaneous rate )

(1) अभिक्रिया की औसत दर
(Average rate of a reaction)-
किसी निश्चित समय अंतराल में प्रति इकाई समय में किसी भी क्रियाकारी पदार्थ या किसी भी उत्पाद के सांद्रण परिवर्तन को अभिक्रिया की औसत दर कहा जाता है|
        क्रियाकारी पदार्थ या उत्पाद के सांद्रण में होने वाले परिवर्तन को इस परिवर्तन में लगे समय अंतराल से भाग करके अभिक्रिया की औसत दर ज्ञात की जा सकती है|अतः 

अभिक्रिया की औसत दर = क्रियाकारी पदार्थ या उत्पाद के सांद्रण में परिवर्तन/परिवर्तन में लगा समय अंतराल

एक अभिक्रिया A -----> B 
के लिए दर को निम्न दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
(a) A के सांद्रण में कमी के रूप में- अभिक्रिया की औसत दर = A के सांद्रण में कमी / परिवर्तन में लगा समय अंतराल 
या, 
अभिक्रिया की औसत दर =-∆[A] /∆t
(b) B के सांद्रण में वृद्धि के रूप में- 
अभिक्रिया की औसत दर = B के सांद्रण में वृद्धि / परिवर्तन में लगा समय अंतराल 
या, 
अभिक्रिया की औसत दर =∆[B] /∆t

जैसे - अभिक्रिया, 
PCl5 ---> PCl3 + Cl2 के लिए 
अभिक्रिया की औसत दर =-∆[PCl5] /∆t = ∆[PCl3] /∆t = ∆[Cl2] /∆t 

इसी प्रकार अभिक्रिया, 
2N2O5 ---> 4NO2 + O2 के लिए 

अभिक्रिया की औसत दर =-1/2∆[N2O5] /∆t = 1/4∆[NO2] /∆t = ∆[O2] /∆t 

(2) अभिक्रिया की तात्क्षणिक दर
(Instantaneous rate of a reaction)-
किसी निश्चित क्षण पर अभिकारक या उत्पाद की सांद्रता में होने वाले परिवर्तन की दर को उस अभिक्रिया की तात्क्षणिक दर कहा जाता है|
       तात्क्षणिक दर के निर्धारण में समय अंतराल ∆t का मान बहुत छोटा लिया जाता है जिससे समय अंतराल में होने वाले दर परिवर्तन में परिवर्तन का मान न्यूनतम हो| गणित में इस मान को ∆ के स्थान पर d से व्यक्त करते हैं|
तात्क्षणिक दर = (औसत दर)∆t->0
अभिक्रिया, A---> B के लिए 
तात्क्षणिक दर = -d[A] /dt = d[B] /dt
उदाहरण के लिए अभिक्रिया, 
H2 + Cl2 ----> 2HCl के लिए
तात्क्षणिक दर = -d[H2] /dt = -d[Cl2] /dt = 1/2 d[HCl]/dt

Question -
एक बंद बर्तन में गैसीय प्रावस्था में रासायनिक अभिक्रिया 2A <==> 4B + C  संपन्न होती है| 10 सेकंड में B की सांद्रता में होने वाली वृद्धि 5×10´3mol/L है| निम्न की गणना कीजिए- (1) B के संभवन की दर 
(2) A के लुप्त होने की दर
Solution -
अभिक्रिया 2A <==> 4B + C  के लिए 
अभिक्रिया की दर =-1/2∆[A] /∆t = 1/4∆[B] /∆t = ∆[C] /∆t 
प्रश्नानुसार, ∆[B] =  5×10´3mol/L तथा ∆t = 10s 

(1) B के संभवन की दर = ∆[B] /∆t = 5×10´3 / 10 = 5×10´4 mol/L/s 

(2) A के लुप्त होने की दर =-∆[A] /∆t = 2/4∆[B] /∆t = 1/2×5×10´4 = 2.5×10´4 mol/L/s 

Sunday, December 27, 2020

रासायनिक बलगतिकी और अभिक्रिया की दर (अभिक्रिया का वेग) (Chemical kinetics and reaction rate)

रासायनिक बलगतिकी और अभिक्रिया की  दर (अभिक्रिया का वेग) 
(Chemical kinetics and reaction rate)

रासायनिक बलगतिकी   
(Chemical kinetics)- 
रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसमें रासायनिक अभिक्रिया की दर तथा उनकी क्रियाविधि का अध्ययन किया जाता है रासायनिक बलगतिकी कहलाती है|

अभिक्रिया की  दर (अभिक्रिया का वेग) 
(Reaction rate)-
इकाई समय में किसी भी क्रियाकारी पदार्थ या किसी भी उत्पाद के सांद्रण में होने वाले परिवर्तन को अभिक्रिया का वेग या रासायनिक अभिक्रिया की दर कहा जाता है|
अभिक्रिया का वेग(अभिकारक की दर) = क्रियाकारी पदार्थ या उत्पाद के सांद्रण में परिवर्तन / परिवर्तन में लगा समय

अभिक्रिया की दर के मात्रक-
किसी रासायनिक अभिक्रिया की दर की इकाई molL-1s-1 या molL-1min-1 होती है | 
     किसी अभिक्रिया में यदि क्रियाकारी पदार्थ तथा उत्पाद गैसीय अवस्था में है तो अभिक्रिया के वेग को atms-1 या atm min-1 इकाई में व्यक्त किया जा सकता है|

अभिक्रिया के वेग के आधार पर अभिक्रियाओं के प्रकार-
(1) तात्क्षणिक अभिक्रिया-
वे रासायनिक अभिक्रिया जो बहुत ही जल्दी होती हैं उन्हें तात्क्षणिक अभिक्रियाएं कहा जाता है| इनको होने में लगभग 10´6 से 10`14 सेकंड का समय लगता है|
       इस प्रकार की अभिक्रियाओं को आयनिक अभिक्रियाएं या द्रुत अभिक्रियाएं भी कहा जाता है|
जैसे -
AgNO3 + NaCl ----> AgCl + NaNO3 
(2) मंद अभिक्रिया-
वे रासायनिक अभिक्रिया जो बहुत ही मंद गति से होती हैं उन्हें मंद अभिक्रियाएं कहा जाता है| इनको होने में कुछ महीनों का समय लगता है|
जैसे - लोहे पर जंग लगना 
(3) मध्यम गति अभिक्रिया-
वे रासायनिक अभिक्रिया जो न तो बहुत ही जल्दी होती हैं और न ही बहुत मंद गति से होती हैं उन्हें मध्यम गति अभिक्रियाएं कहा जाता है| 
इनको होने में कुछ मिनट या कुछ सेकंड का समय लगता है|
       इस प्रकार की अभिक्रियाओं को आणविक अभिक्रियाएं भी कहा जाता है|
जैसे -
PCl5 ----> PCl3 + Cl2


नर्स्ट समीकरण (Nernst Equation )

नर्स्ट समीकरण 
(Nernst Equation )
जब एक इलेक्ट्रोड निकाय मानक अवस्था (अर्थात आयनों का सांद्रण=1mol/L, T=298K तथा गैस का दाब=1atm) में स्थित होता है तो इसके मानक इलेक्ट्रोड विभव का मान सीधे विद्युतरासायनिक श्रेणी से प्राप्त किया जा सकता है| लेकिन यदि इलेक्ट्रोड निकाय मानक अवस्था में स्थित नहीं है (अर्थात इसका ताप 298K से भिन्न है,  आयनों का सांद्रण 1mol/L नहीं है तथा गैस का दाम 1atm  से भिन्न है) तो इसके इलेक्ट्रोड विभव को सीधे विद्युत रासायनिक श्रेणी से प्राप्त नहीं किया जा सकता है| इस प्रकार की स्थिति में इलेक्ट्रोड निकाय के इलेक्ट्रोड विभव के मान की गणना एक महत्वपूर्ण समीकरण की सहायता से की जाती है इस समीकरण को नर्स्ट समीकरण कहा जाता है|
       नर्स्ट समीकरण इलेक्ट्रोड विभव तथा इलेक्ट्रोड निकाय के ताप एवं निहित स्पीशीज के सांद्रण के मध्य एक संबंध स्थापित करती है| एक अपचयन इलेक्ट्रोड के लिए नर्स्ट समीकरण को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

E=E°-RT/nF loge[अपचयित अवस्था]/[ऑक्सीकृत अवस्था]

जहाँ, 
E= इलेक्ट्रोड निकाय का अपचयन विभव 
E°= उसी इलेक्ट्रोड निकाय का मानक अपचयन विभव 
R= गैस स्थिरांक = 8.314J/Kmol 
T= इलेक्ट्रोड निकाय का ताप 
F= एक  फैराडे = 96500 कूलम्ब 
n= इलेक्ट्रोड पर संपन्न अपचयन प्रक्रिया में ऑक्सीकृत अवस्था के 1 मोल द्वारा अपचयित अवस्था में परिवर्तित होने के लिए ग्रहण किए गए इलेक्ट्रॉनों के मोलों की संख्या
[अपचयित अवस्था] = अपचयित होने वाले पदार्थ का सांद्रण 
[ऑक्सीकृत अवस्था] = अपचयन से प्राप्त पदार्थ का सांद्रण 

जैसे -अभिक्रिया 
Mn+(aq) + ne´ ----> M(s) के लिए 
EMn+/M = E°Mn+/M - RT/nF loge [M(s)] / [Mn+(aq)]

चूँकि एक ठोस के सांद्रण को इकाई माना जाता है अर्थात  [M(s)] = 1
अतः, 
Question - निम्न अभिक्रिया के लिए E.M.F.  की गणना कीजिये 
Mg/Mg2+(0.001M) // Cu2+(0.0001)/Cu 
(दिया है = E° = 2.71V)
Solution -  


Saturday, December 26, 2020

विद्युतरासायनिक श्रेणी (Electrochemical series)

विद्युतरासायनिक श्रेणी (Electrochemical series)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड द्वारा किसी भी इलेक्ट्रोड निकाय का मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन किया जा सकता है| विभिन्न इलेक्ट्रोड निकायों के मानक इलेक्ट्रोड विभव (अर्थात मानक अपचयन विभव) के इस प्रकार मापित मानो को एक बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है| इस प्रकार प्राप्त व्यवस्था एक अत्यंत महत्वपूर्ण श्रेणी का निर्माण करती है जिसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है| इस प्रकार विद्युत रासायनिक श्रेणी विभिन्न इलेक्ट्रोड निकायों के मानक अपचयन विभव के बढ़ते क्रम में व्यवस्था है| कुछ महत्वपूर्ण इलेक्ट्रोड निकायों तथा उनकी अर्द्ध सेल अभिक्रिया युक्त विद्युत रासायनिक श्रेणी निम्न है-
विद्युतरासायनिक श्रेणी की महत्वपूर्ण विशेषताएं-
(1) हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़े जाने पर मानक अपचयन विभव के ऋणात्मक मान युक्त इलेक्ट्रोड निकाय एनोड का तथा धनात्मक मान युक्त निकाय कैथोड का कार्य करते हैं|
(2) श्रेणी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने की प्रवृति अर्थात अपचयित होने की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है|
(3) श्रेणी में नीचे से ऊपर की ओर जाने पर इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की प्रवृति अर्थात ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है|
(4) श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित पदार्थों की अपचयित रूप हाइड्रोजन से अधिक प्रबल अपचायक हैं जबकि हाइड्रोजन के नीचे स्थित पदार्थों के अपचयित रूप हाइड्रोजन की तुलना में दुर्बल अपचायक हैं| इस प्रकार किसी भी पदार्थ का अपचयित रूप श्रेणी में अपने से नीचे स्थित किसी भी पदार्थ के ऑक्सीकृत रूप को अपचयित कर सकता है|

विद्युतरासायनिक श्रेणी के अनुप्रयोग-
(1) धातुओं की क्रियाशीलता का पता लगाने में
(2) एक रेडॉक्स अभिक्रिया के होने की संभावना का पता लगाने में
(3) लवण विलयनों से धातुओं का विस्थापन का पता लगाने में
(4) धातुओं द्वारा तनु अम्लों से हाइड्रोजन का विस्थापन
(5) धातुओं के विद्युत धनात्मक लक्षण तथा उनके ऑक्साइडों का उष्मीय स्थायित्व जानने में
(6) मानक सेल विभव(E°cell) की गणना करने में

मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन (Measurement of standard electrode potential)

मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन (Measurement of standard electrode potential)
किसी एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव को मापने के लिए उसे एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़कर एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण किया जाता है और दोनों इलेक्ट्रोडो के मध्य के विभांतर को मापा जाता है| चूँकि मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड का इलेक्ट्रोड विभव 0 माना जाता है| अतः मापा गया विभवांतर ही प्रयुक्त एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव के संख्यात्मक मान के बराबर होता है|
         विभवांतर को बाह्य परिपथ में जुड़े वोल्टमीटर या विभवमापी से माप लिया जाता है| मापा गया मान ही प्रयुक्त अर्द्ध सेल के विभव के संख्यात्मक मान के बराबर होता है, क्योंकि परिपाटी के अनुसार मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के विभव को 0 माना जाता है|
     उपरोक्त विधि से मापे गए इलेक्ट्रोड के चिन्ह (+या -) को विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा सुनिश्चित कर निर्धारित किया जा सकता है| एक गैलवेनिक सेल में इलेक्ट्रॉन एनोड (ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड) से कैथोड (अपचयन इलेक्ट्रोड) की ओर गति करते हैं| विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत मानी जाती है| मानक अवस्था में एक गेलवेनिक सेल का एनोड तथा कैथोड के मध्य स्थित विभवांतर को E°cell से निरूपित किया जाता है तथा इसे निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
    E°cell = E°cathode - E°anode 
 जहां E°cathode तथा E°anode क्रमशः कैथोड तथा एनोड के मानक अपचयन विभव हैं|
जैसे -
Zn2+/Zn इलेक्ट्रोड के मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
जब 1mol/L सांद्रण के Zn2+ आयन  विलयन में आंशिक रूप से डूबी एक Zn छड़ से निर्मित इलेक्ट्रोड को एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़ा जाता है तो विद्युत धारा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड से Zn  इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होती है तथा वोल्टमीटर 0.76 V के विभवांतर को इंगित करता है| स्पष्ट है कि इस सैल में  इलेक्ट्रॉन Zn इलेक्ट्रोड से हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं| अतः इस सेल में जिंक इलेक्ट्रोड एनोड है तथा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड कैथोड है| अतः, 
  E°cell = E°cathode - E°anode 
या, 0. 76 = E°H+/1/2H2 - E°Zn2+/Zn 
या, 0.76 = 0 - E°Zn2+/Zn 
या, E°Zn2+/Zn = -0. 76
इस प्रकार Zn2+/Zn इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव ऋणात्मक है तथा इसका मान -0.76V  है|

Cu2+/Cu इलेक्ट्रोड के मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
जब 1mol/L सांद्रण के Cu2+ आयन  विलयन में आंशिक रूप से डूबी एक Cu  छड़ से निर्मित इलेक्ट्रोड को एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़ा जाता है तो विद्युत धारा कॉपर इलेक्ट्रोड से हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होती है तथा वोल्टमीटर 0.34 V के विभवांतर को इंगित करता है| स्पष्ट है कि इस सैल में  इलेक्ट्रॉन H इलेक्ट्रोड से Cu  इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं| अतः इस सेल में H इलेक्ट्रोड एनोड है तथा Cu  इलेक्ट्रोड कैथोड है| अतः, 
  E°cell = E°cathode - E°anode 
या, 0.34 = E°Cu2+/Cu -E°H+/1/2H2 
या, 0.34 = E°Cu2+/Cu - 0 
या, E°Cu2+/Cu = +0.34
इस प्रकार Cu2+/Cu इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव धनात्मक है तथा इसका मान +0.34V  है|



मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (Standard Hydrogen Electrode)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (Standard Hydrogen Electrode)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को प्राप्त करने के लिए शुद्ध हाइड्रोजन गैस को 1 वायुमंडलीय दाब पर 1mol/L  सांद्रण के एक H+ आयन विलयन में प्लैटिनीकृत प्लैटिनम पर्णिका के संपर्क में प्रवाहित किया जाता है| एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को निम्न प्रकार से निरूपित किया जाता है-
Pt,H2(g)(1atm) / H+(1mol/L)
 मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड एक एनोड तथा एक कैथोड दोनों की भांति व्यवहार कर सकता है| संबंधित अर्द्ध सेल अभिक्रियाएं निम्न हैं-
 जब इलेक्ट्रोड एनोड की भांति कार्य करता है, 
1/2 H2(g)----> H+(aq) + e´
       E°1/2 H2/H+
जब इलेक्ट्रोड कैथोड की भांति कार्य करता है, 
H+(aq) + e´----> 1/2 H2(g)
       E°H+/1/2 H2
परिपाटी के अनुसार एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के विभव को 0 माना जाता है| इस प्रकार, 
E°1/2 H2/H+ = E°H+/1/2 H2 = 0

एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड में एक छोटी प्लैटिनम पर्णिका का प्रयोग किया जाता है| हाइड्रोजन गैस को अवशोषित करने के लिए इस पर प्लैटिनम ब्लैक की एक परत चढ़ा दी जाती है| यह पर्णिका एक प्लैटिनम के तार से जुड़ी रहती है जिसके दूसरे सिरे को एक कांच की नली में सील कर दिया जाता है| कांच की नली में थोड़ा सा पारा भर दिया जाता है| तांबे के एक तार के एक सिरे को पारे में डूबा दिया जाता है| इस तार के दूसरे सिरे का उपयोग विद्युत संपर्क के लिए किया जाता है| कांच की नली को एक अन्य कांच की नली में स्थिर कर दिया जाता है| यह नली तली में खुली होती है| इस संपूर्ण निकाय को एक बड़े कांच के बीकर में रखें 1M HCl  विलयन में रखा जाता है| बाह्य नली से हाइड्रोजन गैस को 1 वायुमंडलीय दाब पर प्रवाहित किया जाता है, जो विलयन में बुलबुलों के रूप में विसरित होती रहती है| इस गैस का एक भाग प्लैटिनिकृत इलेक्ट्रोड द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है| शेष गैस नली के निम्न भाग में बने छिद्रों से बाहर निकल जाती है|
     मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को संक्षेप में SHE ( Standard hydrogen electrode) या NHE (Normal hydrogen electrode)  के रूप में व्यक्त किया जाता है|

Wednesday, December 23, 2020

मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential)

मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential) 
किसी इलेक्ट्रोड विभव को उस समय मानक इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है जबकि निम्न शर्तों का पूर्ण रुप से पालन हो-
(1)  इलेक्ट्रोड निकाय का ताप 298 K  (25°C) हो|
(2) इलेक्ट्रोड निकाय में उपस्थित विलयन का सांद्रण एक मोल प्रति लीटर(1mol/L) हो|
(3) यदि इलेक्ट्रोड निकाय में किसी गैस का प्रयोग किया गया है तो उसका दाब एक वायुमंडल (1atm) हो|
         मानक इलेक्ट्रोड विभव को E° से निरूपित किया जाता है| जब मानक अवस्थाओं में एक इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा विभव उत्पन्न होता है तो उसे मानक ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है तथा इसे E°oxi या E°M/Mn+ से निरूपित किया जाता है| इसी प्रकार मानक अवस्थाओं में अपचयन की प्रक्रिया से उत्पन्न विभव को मानक अपचयन विभव कहा जाता है तथा इसे E°red या E°Mn+/M  से निरूपित किया जाता है| एक इलेक्ट्रोड विशेष के लिए इन दोनों प्रकार के विभव के संख्यात्मक मान समान होते हैं लेकिन उनके चिन्ह विपरीत होते हैं अर्थात 
E°M/Mn+ =   -E°Mn+/M
जैसे, E°Zn/Zn2+ =   -E°Zn2+/Zn 
I.U.P.A.C. के अनुसार पद मानक विभव का प्रयोग अपचयन अभिक्रियाओं के लिए किया जाना चाहिए| इसलिए पद मानक विभव या मानक इलेक्ट्रोड विभव का प्रयोग मानक अपचयन विभव को इंगित करने के लिए किया जाता है|
मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
एक एकल इलेक्ट्रोड पर या तो कोई ऑक्सीकरण या अपचयन अभिक्रिया संपन्न होती है जो उसे विभव प्रदान करती है| चूँकि ऑक्सीकरण तथा अपचयन अभिक्रियाएं एक दूसरे के पूरक है| अतः किसी एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव का निरपेक्ष मान मापना संभव नहीं है| लेकिन दो इलेक्ट्रोडो के मध्य स्थित विभवांतर को आसानी से मापा जा सकता है| अतः किसी एकल इलेक्ट्रोड के विभव को केवल एक मानक संदर्भ इलेक्ट्रोड के सापेक्ष ही मापा जा सकता है| मानक संदर्भ इलेक्ट्रोड के रूप में मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है और उसके सापेक्ष ही अन्य इलेक्ट्रोडो के इलेक्ट्रोड विभव को मापा जाता है|

Sunday, December 20, 2020

इलेक्ट्रोड विभव (Electrode potential )

इलेक्ट्रोड विभव (Electrode potential )
एक विलयन में उपस्थित स्वयं के आयनों के संपर्क में स्थित एक इलेक्ट्रोड की इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की या इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने की प्रवृत्ति को उस इलेक्ट्रोड का इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है|
       जब एक धातु को उसके स्वयं के आयनों के संपर्क में रखा जाता है तो उसमें प्रायः इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की या ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है| माना कि एक धातु M अपने आयनों Mn+ के संपर्क में है| इस प्रकरण में निम्न तीन संभावनाएं हो सकती हैं-
संभावना 1- एक धातु आयन, Mn+ इलेक्ट्रोड से टकराये और किसी में कोई परिवर्तन न हो, अर्थात इलेक्ट्रोड पर न तो ऑक्सीकरण और न ही अपचयन अभिक्रियाएं संपन्न होती हैंं तो उस पर कोई विभव उत्पन्न नहीं होता है| उस इलेक्ट्रोड को शून्य इलेक्ट्रोड या नल इलेक्ट्रोड कहा जाता है| 
संभावना 2 - इलेक्ट्रोड पर उपस्थित एक धातु परमाणु n इलेक्ट्रॉनों को त्यागकर Mn+ आयन के रूप में विलयन में चला जाए अर्थात धातु परमाणु ऑक्सीकृत हो जाए|
M(s) ----> Mn+(aq) + ne´
इस प्रकरण में इलेक्ट्रोड पर एक ऋणात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है| इस प्रकार उत्पन्न विभव को ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है तथा इलेक्ट्रोड निकाय को एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड कहा जाता है|
ऑक्सीकरण विभव को Eoxi या EM/Mn+ से प्रदर्शित किया जाता है|
 संभावना 3 - एक धातु आयन इलेक्ट्रोड से टकराकर उससे n इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करें तथा एक उदासीन धातु परमाणु M  में परिवर्तित हो जाए अर्थात धातु आयन अपचयित हो जाए|
Mn+(aq) + ne´------> M(s)
       इस प्रकरण में इलेक्ट्रोड पर एक धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है| इस प्रकार उत्पन्न विभव को अपचयन विभव कहा जाता है तथा इलेक्ट्रोड निकाय को एक अपचयन इलेक्ट्रोड कहा जाता है|
        अपचयन विभव को Ered या EMn+/M से प्रदर्शित किया जाता है|