Advance Chemistry

Thursday, March 18, 2021

प्रोटींस की संरचना (Structure of proteins)

प्रोटींस की संरचना (Structure of proteins)
प्रोटीन जटिल नाइट्रोजन युक्त यौगिक हैं| सभी प्रोटींस जल अपघटन पर आवश्यक रूप से अल्फा अमीनो अम्ल के मिश्रण का निर्माण करते हैं| अतः अमीनो अम्ल निश्चित रूप से प्रोटीन की संरचनात्मक इकाई हैं| प्रोटींस, पेप्टाइड लिंकेज द्वारा अल्फा अमीनो अम्ल के संघनन से निर्मित होते हैं|
      एक प्रोटीन में कई प्रकार की अल्फा अमीनो अम्ल इकाइयां उपस्थित हो सकती हैं| अधिकांश प्रोटीन में मुख्य भाग केवल तीन या चार अमीनो अम्ल द्वारा निर्मित होता है जबकि अल्प भाग में 15 या अधिक अमीनो अम्ल उपस्थित हो सकते हैं|
       प्रोटीन की संरचना का अध्ययन संरचनात्मक संघठन के चार स्तरों के रूप में समझा जा सकता है, जिन्हें प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक संरचनाएं कहा जाता है|

[A] प्रोटींस की प्राथमिक संरचना (Primary structure of proteins)-
प्रोटींस की प्राथमिक संरचना आपस में पेप्टाइड लिंकेज द्वारा जुड़े अमीनो अम्ल के क्रम को संदर्भित करती है| प्रोटीन की प्राथमिक संरचना का निर्धारण प्रायः प्रोटीन का क्रमिक जल अपघटन एंजाइम या खनिज अम्लों के साथ करके तथा इस प्रकार उत्पन्न अमीनो अम्ल की पहचान करके किया जाता है| किसी प्रोटीन के अमीनो अम्ल का क्रम उसके कार्य को निर्धारित करता है तथा उसकी जैविक क्रियाशीलता के लिए उत्तरदाई है| किसी एक अमीनो अम्ल के क्रम में परिवर्तन भी संपूर्ण प्रोटीन अणु के गुणों को परिवर्तित कर सकता है|

[B] प्रोटींस की द्वितीयक संरचना (Secondary structure of proteins)-
प्रोटीन अणु में पेप्टाइड श्रृंखलाएं नियमित आकृति में व्यवस्थित रहती हैं| इस आकृति का निर्धारण प्रोटींस की द्वितीयक संरचना प्रदान करता है|
 प्रोटीन के लिए निम्नलिखित दो प्रकार की द्वितीयक संरचनाएं प्रतिपादित की गई हैं-
(1) हैलिक्स संरचना -
पॉलिंग ने 1951 में सुझाव दिया कि प्रोटीन में अमीनो अम्ल श्रृंखलाएं एक सर्पिल आकार में कुंडलित रहती हैं, जिसे हैलिक्स कहते हैं| ऐसा हैलिक्स वामहस्त या दक्षिणहस्त हो सकता है| दक्षिणहस्त हैलिक्स को अल्फा हैलिक्स तथा वामहस्त हैलिक्स को बीटा हैलिक्स कहा जाता है| यह पाया गया है कि अल्फा हैलिक्स अपेक्षाकृत अधिक स्थाई व्यवस्था है|
(2)बीटा प्लीटेड शीट-
1951 में पॉलिंग ने प्रोटीन का दूसरा रूप प्रस्तुत किया जिसे बीटा प्लीटेड सीट कहा गया| इस रूप में पॉलिपेप्टाइड्स श्रृंखलाएं विस्तारित होती हैं तथा आपस में अंतर अणुक हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़ी रहती हैं| दो प्रकार की बीटा प्लीटेड सीट संभव हैं|
(a) समांतर बीटा प्लीटेड शीट 
(b) प्रति समांतर बीटा प्लीटेड शीट

[C] प्रोटींस की तृतीयक संरचना (Tertiary structure of proteins)-
तृतीयक संरचना प्रोटीन अणु की त्रिविमीय आकृति से संबंधित है, जो हैलिक्स के मुड़ने, झुकने और वलन के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है| तृतीयक संरचना हैलिक्स के ऐंठन, मुड़ने तथा वलन के कारण उत्पन्न होती है| तृतीयक संरचना में समस्त अणु का वलन निहित होता है| यह वलन हाइड्रोजन बंधता, आयनिक बंधता, सहसंयोजक बंधता एवं जलविरोधी बंदता युक्त हो सकता है| वलन के आधार पर दो प्रकार की आणविक आकृतियां संभव हैं-
(a) फाइबर संरचना 
(b) ग्लोब्यूलर संरचना
[D] प्रोटींस की चतुष्क संरचना (Quaternary structure of proteins)-
कुछ प्रोटीन दो या दो से अधिक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं द्वारा निर्मित होते हैं जिन्हें सबयूनिट कहते हैं| एक दूसरे के सापेक्ष इन सबयूनिटों की त्रिविमीय व्यवस्था को चतुष्क संरचना कहते हैं|



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Sunday, February 21, 2021

प्रोटीन (Protein)

         प्रोटीन (Protein)
प्रोटींस उच्च अणुभार वाले अत्यधिक जटिल नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक हैं| ये वास्तव में 100 या अधिक ऐमीनो अम्ल इकाई युक्त पॉलिपेप्टाइड्स हैं| हालांकि पॉलिपेप्टाइड्स एवं प्रोटींस के मध्य सीमांकन की कोई स्पष्ट रेखा नहीं है| प्रायः 10 हजार से अधिक अणुभार युक्त पॉलिपेप्टाइड्स को प्रोटींस कहा जाता है| इस प्रकार प्रोटींस को आपस में पेप्टाइड बंधों द्वारा जुड़े ऐमीनो अम्लों के लंबे बहुलक माना जा सकता है|
 प्रोटींस सभी सजीव कोशिकाओं एवं प्रोटोप्लाज्म के घटक हैं तथा जंतु एवं वनस्पति ऊतकों के लिए आधारभूत पदार्थ की तरह कार्य करते हैं|

प्रोटींस का वर्गीकरण- 
प्रोटींस का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है| उनमें से अणु संरचना के आधार पर वर्गीकरण निम्नलिखित है- अणु संरचना के आधार पर वर्गीकरण-  
 अणु संरचना के आधार पर प्रोटींस को निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है-
(1) फाइब्रस प्रोटींस 
(2) ग्लोब्यूलर प्रोटींस 

(1) फाइब्रस प्रोटींस- 


(2) ग्लोब्यूलर प्रोटींस-



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पेप्टाइड्स व पेप्टाइड बंध (Peptides and peptide bond)

पेप्टाइड्स व पेप्टाइड बंध (Peptides and peptide bond)
दो या अधिक, समान या भिन्न प्रकार के अल्फा ऐमीनो अम्लों के संघनन द्वारा उत्पन्न यौगिकों को पेप्टाइड्स कहते हैं|
        दो समान या भिन्न प्रकार के अल्फा ऐमीनो अम्ल के संघनन द्वारा प्राप्त पेप्टाइड्स को डाईपेप्टाइड्स कहते हैं तथा तीन अल्फा ऐमीनो अम्ल के संघनन द्वारा प्राप्त पेप्टाइड्स को ट्राईपेप्टाइड्स कहते हैं| अल्फा ऐमीनो अम्ल अणुओं (समान या भिन्न ) की अधिक संख्या के संघनन द्वारा प्राप्त पेप्टाइड्स को पॉलिपेप्टाइड्स कहा जाता है|
पेप्टाइड बंध (Peptide bond)-
    जब दो अल्फा ऐमीनो अम्ल आपस में संयोग करते हैं तो एक  ऐमीनो  अम्ल का -COOH समूह दूसरे ऐमीनो अम्ल के       -NH2 समूह के साथ संघनित होकर जल का एक अणु निकालता है| इसके परिणामस्वरूप -CO-NH- प्रकार के एक नए बंध का निर्माण होता है| इस प्रकार निर्मित नए बंध को पेप्टाइड बंध या पेप्टाइड लिंकेज कहते हैं तथा संघनित उत्पाद को डाईपेप्टाइड कहा जाता है|
         पॉलिपेप्टाइड्स वास्तव में पॉलीऐमाइड हैं जिनमें एक सिरे पर मुक्त   -NH2 समूह तथा दूसरे सिरे पर मुक्त     -COOH समूह उपस्थित होता है|
          परिपाटी के अनुसार किसी पॉलिपेप्टाइड की संरचना इस प्रकार लिखी जाती है कि मुक्त ऐमीनो              (-NH2) समूह युक्त ऐमीनो अम्ल पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के बाईं ओर तथा मुक्त कार्बोक्सिल (-COOH) समूह मुक्त ऐमीनो अम्ल श्रृंखला के दायी ओर स्थित रहे| -NH2 समूह जिस कार्बन परमाणु से जुड़ा होता है उसे N-terminal कार्बन तथा -COOH समूह युक्त कार्बन परमाणु को C-टर्मिनल कार्बन परमाणु कहा जाता है|


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ऐमीनो अम्ल (Amino acids)

ऐमीनो अम्ल (Amino acids)
ऐमीनो अम्ल प्रोटीन की आधारभूत इकाई हैं| इनके अणुओं में ऐमीनो(-NH2) एवं कार्बोक्सिलिक समूह (-COOH) दोनों उपस्थित होते हैं| प्रोटींस में उपस्थित ऐमीनो अम्ल, अल्फा- ऐमीनो अम्ल (ऐमीनो अम्ल जिनमें कार्बोक्सिलिक समूह एवं एमिनो समूह दोनों एक ही कार्बन परमाणु अर्थात अल्फा कार्बन परमाणु पर जुड़े रहते हैं) होते हैं| अल्फा अमीनो अम्ल का सामान्य सूत्र निम्न है-
 ऐमीनो अम्लों की संरचना (Structure of Amino acids)-
ऐमीनो अम्ल में दोनों एकअम्लीय कार्बोक्सिल (-COOH) समूह एवं एकक्षारीय एमिनो (-NH2) समूह विद्यमान होते हैं| उदासीन विलयन में कार्बोक्सिल एवं एमिनो समूह दोनों अायनित अवस्था में रहते हैं| कार्बोक्सिल समूह एक प्रोटॉन खोकर कार्बोक्सिलेट आयन (-COO´) बनाता है तथा एमिनो अम्ल एक प्रोटॉन ग्रहण करके -NH3+ आयन का निर्माण करता है| इस प्रकार उदासीन जलीय विलयन में एमिनो अम्ल द्विध्रुवीय संरचना बनाते हैं जिसे ज़्विटर आयन कहते हैं| यह संरचना निम्न है-
अम्लीय विलयन में एक ऐमीनो अम्ल धनायन की भांति विद्यमान रहता है और वैद्युत क्षेत्र के प्रभाव में कैथोड की ओर गति करता है| दूसरी ओर क्षारीय विलयन में यह ऋणायन के रूप में विद्यमान रहता है तथा विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में एनोड की ओर गति करता है|
ऐमीनो अम्लों के D-एवं L-अभिविन्यास (D-and L- configuration of Amino acids)- 
सभी ऐमीनो अम्ल दो त्रिविम समावयविक रूप अर्थात D-तथा L- रूप में विद्यमान रहते हैं| यह दोनों रूप एक दूसरे के दर्पण प्रतिबिंब होते हैं|
      प्रकृति में पाए जाने वाले सभी ऐमीनो अम्ल L-अभिविन्यास युक्त होते हैं| अतः प्रोटीन में केवल L- ऐमीनो अम्ल ही पाए जाते हैं|

ऐमीनो अम्ल का नामकरण (Nomenclature of Amino acids)-
 ऐमीनो अम्ल सामान्यतः अपने साधारण नामों द्वारा जाने जाते हैं| इनका नामकरण आईयूपीएसी(I.U.P.A.C.) पद्धति द्वारा भी किया जा सकता है|
 जैसे- सरलतम ऐमीनो अम्ल, NH2CH2COOH को ग्लाइसिन कहा जाता है| इसका I.U.P.A.C. नाम 2-aminoethanoic acid होता है| सुविधा के लिए प्रत्येक ऐमीनो अम्ल को एक मानक संक्षिप्त शब्द या कोड दिया गया है, जो प्रायः अम्ल के साधारण नाम के प्रथम तीन अक्षर होते हैं|
 जैसे- ग्लाइसिन(glycine) को gly  तथा एेलेनीन को ala कोड दिए गए हैं|
 कभी-कभी एक अक्षर संकेत का भी प्रयोग किया जाता है| जैसे- ग्लाइसिन को G तथा एेलेनीन को A से प्रदर्शित करते हैं|

ऐमीनो अम्ल का वर्गीकरण(Classification of Amino acids)-
(I) -NH2 व -COOH समूह की सापेक्ष संख्या के आधार पर -
इस आधार पर इन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है-
 (i) उदासीन ऐमीनो अम्ल (Neutral Amino acids) -
एक -NH2 समूह एवं एक -COOH  समूह युक्त ऐमीनो अम्ल को उदासीन ऐमीनो अम्ल कहा जाता है|
 जैसे- ग्लाइसिन, वैलीन, एेलेनीन आदि 
(ii) अम्लीय ऐमीनो अम्ल (Acidic Amino acids)-
 दो -COOH समूह एवं एक -NH2 समूह युक्त ऐमीनो अम्ल को अम्लीय ऐमीनो अम्ल कहा जाता है|
 जैसे- एस्पार्टिक अम्ल, ग्लुटैमिक अम्ल आदि 
(iii) क्षारीय ऐमीनो अम्ल (Basic Amino acids) -
दो -NH2 समूह एवं एक -COOH समूह युक्त ऐमीनो अम्ल को क्षारीय ऐमीनो अम्ल कहा जाता है|
 जैसे- लाइसीन, अार्जिनिन आदि|
(II) शरीर की आवश्यकता के आधार पर-
प्रोटींस में सामान्यतः 20 ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं, जिनमें से 10 आवश्यक ऐमीनो अम्ल होते हैं जबकि 10 अनावश्यक ऐमीनो अम्ल होते हैं|
(i) आवश्यक अमीनो अम्ल (Essential Amino acids)-
वे ऐमीनो अम्ल जो मानव शरीर में संश्लेषित नहीं होते हैं तथा जिनकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी आवश्यक होती है आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं| इनकी संख्या 10 होती है|

(ii) अनावश्यक अमीनो अम्ल (Non-essential Amino acids)-
वे ऐमीनो अम्ल जो मानव शरीर में संश्लेषित होते हैं तथा जिनकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी आवश्यक नही होती है अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं| इनकी संख्या भी 10 होती है|



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Thursday, February 11, 2021

फ्रक्टोज (Fructose)

        फ्रक्टोज (Fructose)
फ्रक्टोज एक मोनोसैकेराइड है तथा कीटोज श्रेणी का सदस्य है| यह एक कीटोहैक्सोज है और इसका अणुसूत्र ग्लूकोज के समान ही C6H12O6 है| इसे फल शर्करा भी कहा जाता है|

प्रकृति में प्राप्ति -
यह प्रकृति में मुक्त तथा संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है| सभी मीठे फलों एवं शहद में यह मुक्त अवस्था में ग्लूकोज के साथ पाया जाता है| इसी कारण इसे फल शर्करा भी कहा जाता है|

फ्रक्टोज के निर्माण की विधियाँ  (Methods of preparation of Fructose)-

(1) प्रयोगशाला विधि -
प्रयोगशाला में फ्रक्टोज को सुक्रोज या इक्षु शर्करा के तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के द्वारा जल अपघटन से प्राप्त किया जा सकता है|
C12H22O11+ H2O ----> C6H12O6 + C6H12O6

(2) औद्योगिक विधि -
व्यापारिक स्तर पर फ्रक्टोज  को इन्युलिन के जल अपघटन द्वारा प्राप्त किया जाता है| इन्युलिन डहेलिया के पुष्पों में पाया जाता है| इन्युलिन को तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर यह जल अपघटित होकर फ्रक्टोज देता है|
(C6H10O5)n + nH2O ------> nC6H12O6

फ्रक्टोज की संरचना -
 यह एक मोनोसैकेराइड है तथा कीटोज श्रेणी का सदस्य है| यह एक कीटोहैक्सोज है और इसका अणुसूत्र C6H12O6 होता है |
 फ्रक्टोज भी ग्लूकोज की तरह एक चक्रीय संरचना बनाता है| इसकी भी संरचना पाइरेनोज संरचना होती है |
भौतिक गुण -
(1) प्रकृति में उपलब्ध मुक्त फ्रक्टोज B-D-फ्रक्टोपायरानोज होता है |
(2) यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है इसका गलनांक 375.4 K है|
(3)  यह जल में अत्यधिक विलय है लेकिन एल्कोहल में अल्प विलेय है |
(4) इसका जलीय विलयन वामध्रुवण घूर्णक (laevorotatory) होता है |

रासायनिक गुण -
(1) ऑक्सीकरण -
यह प्रबल ऑक्सीकारक जैसे नाइट्रिक अम्ल आदि से ऑक्सीकृत हो जाता है तथा ग्लाइकोलिक अम्ल एवं टार्टरिक अम्ल का मिश्रण प्राप्त होता है|
(2) अपचायक गुण -
यह अमोनिकल सिल्वर नाइट्रेट को अपचयित कर रजत दर्पण बनाता है एवं फेहलिंग विलयन को अपचयित कर क्युप्रस ऑक्साइड का लाल अवक्षेप देता है|
(3) अपचयन -
यह सोडियम अमलगम तथा जल से क्रिया कर आंशिक रूप से अपचयित होकर D-सॉर्बिटोल तथा D-मैनीटोल का एक मिश्रण देता है|
(4) HCN से क्रिया -
यह HCN से क्रिया कर निम्न दो ऐपिमेरिक सायनोहाईड्रिन्स का निर्माण करता है|
(5) किण्वन-
यीस्ट से प्राप्त एंजाइम जायमेज से किण्वन पर यह एथिल एल्कोहॉल व CO2 बनाता है |

Tuesday, February 9, 2021

ग्लूकोज (Glucose)

        ग्लूकोज (Glucose)
प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ग्लूकोस -D-ग्लूकोज होता है| यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस(m.p. 419K) है| यह जल में अत्यधिक विलेय है परंतु इथर में अविलेय है| ग्लूकोज का जलीय विलयन दक्षिण घूर्णक है| इस कारण इसे डेक्सट्रोज भी कहते हैं| यह पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है|

ग्लूकोज का निर्माण -
(1) सुक्रोज (गन्ने की चीनी )से -
सुक्रोज के एल्कोहलिक विलयन को तनु HCl या H2SO4 के साथ गर्म करने पर यह जल अपघटित होकर ग्लूकोज व फ्रक्टोज की समअणुक मात्रा बनाता है|
C12H22O11 + H2O ------> C6H12O6 + C6H12O6
(2) स्टार्च से -
व्यवसायिक रूप से ग्लूकोज को स्टार्च के जल अपघटन द्वारा प्राप्त किया जाता है|
(C6H10O5)n + nH2O -------> nC6H12O6
ग्लूकोज की संरचना -
ग्लूकोस एक एल्डोहैक्सोज है| इसकी संरचना का अध्ययन निम्न तीन भागों में किया जा सकता है-
(a) ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना-
ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना निम्न प्राप्त की गई है-
 ग्लूकोज की उपरोक्त संरचना निम्नलिखित साक्ष्यों पर आधारित है-
(i) अणुसूत्र -     C6H12O6
(ii) 6 कार्बन परमाणुओं की सीधी श्रृंखला की उपस्थिति -
ग्लूकोज को HI के साथ लंबे समय तक गर्म करने पर यह n- हैक्सेन बनाता है| इससे यह प्रमाणित होता है कि सभी 6 कार्बन परमाणु सीधी श्रृंखला में जुड़े होते हैं|
(iii) कार्बोनिल (>C=O) समूह की उपस्थिति -
ग्लूकोस हाइड्रॉक्सिल ऐमीन के साथ क्रिया करके एक ऑक्साइम बनाता है तथा हाइड्रोजन सायनाइड के एक अणु के योग द्वारा सायनोहाड्रिन बनाता है| यह कार्बोनिल समूह की उपस्थिति को प्रमाणित करता है|
(iv) एल्डिहाइड (-CHO) समूह की उपस्थिति -
ग्लूकोस ब्रोमीन जल जैसे दुर्बल ऑक्सीकारक द्वारा भी सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत होकर ग्लूकॉनिक अम्ल बनाता है| यह प्रमाणित करता है कि ग्लूकोज में एक एल्डिहाइड समूह भी है|
(v) 5 हाइड्रॉक्सिल (-OH) समूह की उपस्थिति -
जब ग्लूकोज का एसिटिक ऐनहाइड्राइड के साथ ऐसीटीलीकरण किया जाता है तो ग्लूकोज पेंटाएसिटेट प्राप्त होता है| इससे स्पष्ट होता है कि ग्लूकोज में पांच -OH समूह उपस्थित हैं|
(vi) 1°एल्कोहॉलिक (-CH2OH) समूह की उपस्थिति -
नाइट्रिक अम्ल के साथ ऑक्सीकरण पर ग्लूकोस व ग्लुकोनिक अम्ल दोनों एक ही डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं, जिसे सैकेरिक अम्ल कहते हैं| इससे स्पष्ट होता है कि ग्लूकोज में एक प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह उपस्थित है|
(b) ग्लूकोज का विन्यास -
ग्लूकोज का विन्यास उसमें उपस्थित -OH समूह की उचित त्रिविमीय व्यवस्था प्रदर्शित करता है| फिशर ने ग्लूकोज के गुणों के आधार पर इसका विन्यास दिया जो निम्न है-
(c) ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना-
ग्लूकोज कई गुणों में हेमीएसिटल से समानता प्रदर्शित करता है| यह अनुमान लगाया गया कि ग्लूकोज में अंतराअणुक हेमिऐसिटल का निर्माण होता है एवं इसकी संरचना चक्रीय है| हेमिऐसिटल के निर्माण में -CHO समूह, -OH समूह से C5 (अर्थात पांचवे कार्बन परमाणु पर) संयोग करता है| जिससे एक 6 सदस्य चक्रीय संरचना निर्मित होती है| इसके कारण C1 (अर्थात प्रथम कार्बन परमाणु) असममित हो जाता है तथा इसके चारों ओर H एवं OH की दो सम्भाव्य व्यवस्थाएं संभव हो जाती हैं| इस प्रकार दो त्रिविम समावयवियों की प्राप्ति होती है| इन्हें अल्फा-d-glucose एवं बीटा-D- ग्लूकोज कहा जाता है|
पायरानोज संरचनाएं -
ग्लूकोज के दोनों समावयवियों में पायरॉन के समान 6 सदस्यीय रिंग उपस्थित होती है | अतः इन्हे पायरानोज संरचना द्वारा सुविधापूर्वक प्रदर्शित किया जा सकता है| यह संरचनाएं हैवर्थ द्वारा प्रतिपादित की गई थी| अतः इन्हे हैवर्थ प्रक्षेपण सूत्र भी कहा जाता है| D- ग्लूकोज की पायरानोज संरचनाएं निम्न हैं -
ग्लूकोज के गुण -
(1) ऑक्सीकरण -
जब ग्लूकोज को मंद ऑक्सीकारक पदार्थ जैसे- ब्रोमीन जल द्वारा ऑक्सीकृत किया जाता है तो -CHO समूह -COOH समूह में बदल जाता है तथा ग्लूकॉनिक अम्ल बनता है|
 परंतु यदि ग्लूकोज को प्रबल ऑक्सीकारक पदार्थ जैसे सांद्र HNO3 द्वारा ऑक्सीकृत किया जाता है तो -CHO एवं -CH2OH समूह ऑक्सीकृत होकर सैकेरिक अम्ल बनाता है|
(2) अपचायक क्रिया -
ग्लूकोज सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत हो जाता है| अतः यह एक अपचायक पदार्थ का कार्य करता है और टॉलन अभिकर्मक एवं फेहलिंग विलयन को अपचयित कर देता है|
(3) अपचयन -
जब ग्लूकोज की सोडियम एमलगम तथा जल के साथ क्रिया कराई जाती है तो यह अपचयित होकर एक हैक्साहाइड्रिक ऐल्कोहल D-सॉर्बिटोल बनाता है|
 HI एवं लाल फास्फोरस के साथ प्रबल अपचयन पर यह n- हैक्सेन का निर्माण करता है|
(4) हाइड्रॉक्सिलऐमीन से क्रिया-
यह हाइड्रॉक्सिलऐमीन से क्रिया करके ऑक्जाइम देता है, जिसे D- ग्लूकोज ऑक्जाइम कहते हैं |
(5) HCN की योग क्रिया -
ग्लूकोज, HCN  से क्रिया करके सायनोहाइड्रिन या ग्लुकोनाइट्राइल देता है|


Monday, February 8, 2021

मोनोसैकेराइड्स(Monosaccharides)

मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides)

मोनोसैकेराइड्स सरलतम कार्बोहाइड्रेट्स हैं तथा इन्हें अधिक सरल अणुओं की प्राप्ति के लिए जल अपघटित नहीं किया जा सकता है| यह पॉलीहाइड्रोक्सी एल्डिहाइड या पॉलीहाइड्रोक्सी कीटोंस होते हैं तथा इनका सामान्य सूत्र (CH2O)n है, जहां n=3-7 है| प्रकृति में लगभग 20 मोनोसैकेराइड्स पाए जाते हैं|
मोनोसैकेराइड्स का वर्गीकरण (Classification of Monosaccharides)-
क्रियात्मक समूह की प्रकृति के आधार पर मोनोसैकेराइड्स निम्न दो श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं-
(i) एल्डोज (Aldoses)-
एल्डिहाइड (-CHO) समूह युक्त मोनोसैकेराइड्स को एल्डोज कहा जाता है | एल्डिहाइड समूह सदैव अंतिम कार्बन परमाणु पर उपस्थित होता है
(ii) कीटोज (Ketoses)-
कीटो (>C=O) समूह युक्त मोनोसैकेराइड्स  को कीटोज कहा जाता है| प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कीटोज में कीटों समूह सदैव श्रृंखला के द्वितीय कार्बन परमाणु पर उपस्थित होता है|
उपस्थित कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर मोनोसैकेराइड्स को पुनः ट्रायोज (3 कार्बन परमाणु युक्त), टेट्रोज (4 कार्बन परमाणु युक्त), पैंटोज (5 कार्बन परमाणु युक्त), हैक्सोज (6 कार्बन परमाणु युक्त), हैप्टोस (7 कार्बन परमाणु युक्त) में बांटा जा सकता है|
    क्रियात्मक समूह (एल्डिहाइड या कीटोन) की प्रकृति को संगत नाम में एल्डो या कीटो पूर्वलग्न लगा कर दर्शाया जाता है|
 जैसे- 6 कार्बन परमाणु युक्त एल्डोस को एल्डोहेक्सोज तथा 6 कार्बन युक्त कीटोज को कीटोहैक्सोज के रूप में लिखा जाता है|

मोनोसैकेराइड्स की विवृत श्रृंखला संरचनाएं -
(1) ट्रायोज (Trioses)-
यह सबसे सरलतम कार्बोहाइड्रेट्स हैं तथा इनका सामान्य सूत्र से C3H6O3 है| सरलतम एल्डोट्रायोज ग्लिसरैल्डीहाइड है तथा सरलतम कीटोट्रायोज डाईहाइड्रोक्सीएसीटोन है|
ग्लिसरैल्डीहाइड में एक असममित कार्बन परमाणु उपस्थित होता है| जब फिशर प्रक्षेपण में -OH समूह -CH2OH  समूह के निकट कार्बन परमाणु पर दाएं और स्थित होता है(D-ग्लिसरैल्डीहाइड के समान) तो उस मोनोसैकेराइड्स को D-अभिविन्यास कहा जाता है दूसरी ओर यदि अणु के फिशर प्रक्षेपण में -CH2OH समूह के निकट कार्बन परमाणु पर -OH समूह बायीं ओर स्थित होता है (L- ग्लिसरैल्डीहाइड के समान) तो उसे L अभिविन्यास कहा जाता है|
(2) टेट्रोज (Tetroses)-
 इनका सामान्य सूत्र से C4H8O4 है| 
(3) पेन्टोज (Pentoses)-
इनका सामान्य सूत्र से C5H10O5 है| 
(4) हैक्सोज (Hexoses)-
इनका सामान्य सूत्र से C6H12O6 है| 


Sunday, January 31, 2021

कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)

कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिक हैं तथा इन्हें जैव अणुओं  का सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ग माना जा सकता है| यह प्रकृति में प्रचुरता में पाए जाते हैं| ग्लूकोज, फ्रक्टोज, स्टार्च, सुक्रोज, सेल्यूलोज आदि प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कुछ कार्बोहाइड्रेट्स हैं|
         कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन द्वारा बने होते हैं| अधिकांश कार्बोहाइड्रेट्स में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन जल के समान ही 2:1 अनुपात में उपस्थित होते हैं| अतः इन्हें सामान्य सूत्र Cx(H2O)y  के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है जहां x एवं y पूर्णांक हैं| पहले उपरोक्त तथ्य के आधार पर ऐसा मत था कि ये यौगिक कार्बन के हाइड्रेट्स हैं| अतः इन्हे कार्बोहाइड्रेट्स नाम दिया गया| कुछ समय पश्चात यह ज्ञात हुआ कि इन यौगिकों में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन जल अणुओं के रूप में उपस्थित नहीं हैं| इसके अतिरिक्त इस वर्ग के अनेक यौगिकों जैसे- रैमनोज (C6H12O5), डीऑक्सीराइबोज(C5H10O4), आदि  में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का अनुपात 2:1 नहीं होता है तथा इन्हे कार्बन के हाइड्रेट के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है| इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन के हाइड्रेट्स नहीं हैं| वास्तव में कार्बोहाइड्रेट में ऑक्सीजन एल्डिहाइड (-CHO),कीटो (>C=O) या हाइड्रॉक्सिल(-OH) समूहों के रूप में उपस्थित रहता है| 
      वर्तमान में कार्बोहाइड्रेट्स को निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं-
   कार्बोहाइड्रेट्स पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड या पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन  या वे वृहत बहुलक अणु हैं जो जलअपघटन पर पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड एवं   पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन उत्पन्न करते हैं|

कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण (Classification of Carbohydrates )-

[A] जल अपघटन पर व्यवहार के आधार पर वर्गीकरण-
इस आधार पर कार्बोहाइड्रेट्स को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(1) मोनोसैकेराइड्स (monosaccharides)-
ये वे पॉली हाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड या पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोंस होते हैं जो जल अपघटन द्वारा पुनः सरल कार्बोहाइड्रेट्स में अपघटित नहीं होते हैं|
    इस प्रकार यह सरलतम कार्बोहाइड्रेट्स हैं एवं जलअपघटित नहीं किए जा सकते| इनका सामान्य सूत्र (CH2O)n  है जहां n= 3-7 है|   
    मोनोसैकेराइड्स के कुछ सामान्य उदाहरण ग्लूकोज (C6H12O6), फ्रक्टोज (C6H12O6), गैलेक्टोज (C6H12O6), राइबोज (C6H12O5),  आदि हैं|
(2)ऑलिगोसैकेराइड्स (oligosaccharides)-
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो जल अपघटन पर एक निश्चित संख्या में (2-10) मोनोसैकेराइड अणुओं का निर्माण करते हैं ओलिगोसैकेराइड्स कहलाते हैं| 
          एक ओलिगोसैकेराइड अणु मोनोसैकेराइड इकाइयों की एक निश्चित संख्या (2-10) द्वारा निर्मित होते हैं| जब उनका जल अपघटन किया जाता है तो यह विखंडित होकर इन इकाइयों का निर्माण करता है| जल अपघटन पर निर्मित मोनोसैकेराइड इकाइयों की संख्या के आधार पर इन्हें पुनः निम्न भागों में बांटा जा सकता है-
(i) डाईसैकेराइड्स (Disaccharides)-
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो जल अपघटन पर समान या भिन्न प्रकार की मोनोसैकेराइड्स की दो इकाइयों का निर्माण करते हैं डाईसैकेराइड कहलाते हैं| जैसे- सुक्रोज़( C12H22O11), माल्टोज(C12H22O11),लैक्टोज (C12H22O11) आदि 

C12H22O11+ H2O ------> C6H12O6 + C6H12O6

(ii) ट्राईसैकेराइड्स (Trisaccharides)-
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो जल अपघटन पर समान या भिन्न प्रकार की मोनोसैकेराइड्स की तीन इकाइयों का निर्माण करते हैं ट्राईसैकेराइड कहलाते हैं| जैसे- रैफिनोज़( C18H32O16)

C18H32O16+ H2O ------> C6H12O6 + C6H12O6 + C6H12O6

(iii) टेट्रासैकेराइड्स (Tetrasaccharides)-
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो जल अपघटन पर समान या भिन्न प्रकार की मोनोसैकेराइड्स की चार इकाइयों का निर्माण करते हैं टेट्रासैकेराइड कहलाते हैं| जैसे- स्टैकाईरोज ( C24H42O21)  
C24H42O21+ H2O ------> C6H12O6 + C6H12O6 + 2C6H12O6
(3) पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides)-
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो जल अपघटन पर अत्यधिक संख्या में मोनोसैकेराइड्स अणुओ का निर्माण करते हैं पॉलीसैकेराइड्स कहलाते हैं| पॉलिसैकेराइड्स वास्तव में उच्च अणुभार वाले बहुलक होते हैं| एक पॉलिसैकेराइड अणु बहुत सी मोनोसैकेराइड्स इकाईयों द्वारा निर्मित होता है| जब अणु का जल अपघटन किया जाता है तो घटक इकाइयां अलग हो जाती हैं| इस प्रकार यह जल अपघटन पर अत्यधिक संख्या में  मोनोसैकेराइड्स इकाइयों का निर्माण करते हैं| पॉलिसैकेराइड का सामान्य सूत्र (C6H10O5)n है जहां n= 100-3000 है|
   पॉलिसैकेराइड के कुछ सामान्य उदाहरण स्टार्च, सेल्यूलोज, ग्लाइकोजन आदि हैं|

[B] स्वाद के आधार पर -
(1) शर्करा -
मीठे स्वाद वाले कार्बोहाइड्रेट्स को शर्करा कहा जाता है| सभी मोनोसैकेराइड्स डाईसैकेराइड्स इस श्रेणी से संबंधित हैं| ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सुक्रोज, लेक्टोज आदि शर्कराओं के कुछ सामान्य उदाहरण हैं|

(2) अशर्करा-
वे कार्बोहाइड्रेट जो स्वाद में मीठे नहीं होते हैं, अशर्करा कहलाते हैं| स्वाद रहित पॉलीसैकेराइड्स इस श्रेणी से संबंधित हैं|  स्टार्च, सेल्युलोस आदि अशर्कराओं के सामान्य उदाहरण हैं|
[C] अपचायक क्षमता के आधार पर -
(1) अपचायक शर्करा -
वे कार्बोहाइड्रेट जो टॉलन अभिकर्मक एवं फेहलिंग विलयन को अपचयित करने में सक्षम होते हैं, उन्हें अपचायक शर्करा कहा जाता है| सुक्रोज को छोड़कर सभी      मोनोसैकेराइड्स एवं डाईसैकेराइड्स अपचायक शर्करायें हैं|
(2) अनअपचायक शर्करा -
वे कार्बोहाइड्रेट्स जो टॉलन अभिकर्मक एवं फेहलिंग विलयन को अपचयित करने में असमर्थ होते हैं, अनअपचायक शर्करा कहलाते हैं| सुक्रोज एक अनअपचायक शर्करा है|



Thursday, January 21, 2021

ठोसों में अपूर्णता (दोष) [Imperfections (defects) in solids]

ठोसों में अपूर्णता (दोष) [Imperfections (defects) in solids]
किसी ठोस के क्रिस्टल में परमाणुओं के पूर्ण क्रमिक व्यवस्था से कोई भी विचलन ठोस की अपूर्णता या दोष कहलाता है|ठोसों में उपस्थित अपूर्णता या दोष निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) बिंदु दोष (Point defects)
(2)रेखीय दोष (Linear defects)

(1) बिंदु दोष (Point defects)-
क्रिस्टल में किसी परमाणु या परमाणु समूह के निकट कणों के सामान्य आवर्ती व्यवस्था से विचलित होने के फलस्वरूप उत्पन्न दोषों को बिंदु दोष कहा जाता है बिंदु दोष निम्न तीन प्रकार के होते हैं- 
(a) स्टॉयशियोमीट्रिक दोष (stoichiometry defects )
(b) अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष (nonstoichiometry defects)
(c) अशुद्धि दोष (impurity defects)

(a) स्टॉयशियोमीट्रिक दोष (stoichiometry defects)-
जब क्रिस्टल में उपस्थित दोष के कारण क्रिस्टल की स्टॉयशियोमीट्रिक (अर्थात क्रिस्टल में उपस्थित धनायनों तथा ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित नहीं होती है तो दोष को स्टॉयशियोमीट्रिक दोष कहा जाता है|
 यह दोष निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) रिक्तिका दोष (vacancy defects)
(ii) अंतराकाशी दोष (interstitial defects )
(iii) शॉटकी दोष (schotki defects)
(iv) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defects)

(i) रिक्तिका दोष (vacancy defects)-
इस प्रकार के दोष में कुछ परमाणु अपने नियत स्थान से हटकर ठोस से निकल जाते हैं और उस जगह एक रिक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है| तो इस प्रकार के दोष को रिक्तिका दोष कहा जाता है| इस प्रकार का दोष सामान्यता ऐसे ठोसों में होता है जिनमें आयन नहीं होते, केवल परमाणु होते हैं|
(ii) अंतराकाशी दोष (interstitial defects )-
इस प्रकार के दोष में ठोसों के कुछ परमाणु अपने नियत स्थान से हटकर अंतराकाशी स्थान में चले जाते हैं तो इस प्रकार के दोष को अंतराकाशी दोष कहा जाता है|
(iii) शॉटकी दोष (schotki defects)-
इस प्रकार के दोष में समान मात्रा में धनायन व ऋण आयन अपने नियत स्थान से हटकर ठोस में से निकल जाते हैं तो इस प्रकार के दोष को शॉटकी दोष कहते हैं| इस प्रकार का दोष सामान्यतःआयनिक यौगिकों में उत्पन्न होता है| समान मात्रा में धन आयन व ऋण आयन के अनुपस्थित रहने से ठोस के आवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परंतु ठोसों का घनत्व कम हो जाता है|
example - NaCl, KCl, KBr आदि 
(iv) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defects)-
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक आयन (प्रायः धनायन) अपनी जालक स्थिति को त्याग कर एक अंतराकाशी स्थिति को ग्रहण कर लेता है| इस दोष के होने पर भी क्रिस्टल विद्युतीय रूप में उदासीन रहता है क्योंकि क्रिस्टल में धनायनों की संख्या ऋणायनों की संख्या के बराबर ही रहती है| इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
example - ZnS, AgCl, AgBr आदि 
(b) अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष (nonstoichiometry defects)-
जब क्रिस्टल में उपस्थित दोष के कारण धनायन तथा ऋण आयन की संख्या का अनुपात (अर्थात क्रिस्टल की स्टॉयशियोमीट्री) परिवर्तित हो जाता है तो दोस्त को अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष कहा जाता है|
(i)  ऋणायन रिक्तियों के कारण धातु अधिकता दोष- 
इस प्रकार का दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक ऋणायन अपनी जालक स्थिति से अनुपस्थित होकर एक छिद्र का निर्माण करता है और छिद्र में एक इलेक्ट्रॉन समावेशित हो जाता है ताकि क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता बनी रहे|
example - KCl, LiCl आदि 
(ii)  धनायन रिक्तियों के कारण धातु न्यूनता दोष- 
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक धनायन (धातु आयन) अपनी सामान्य जालक स्थिति में अनुपस्थित रहता है और उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में स्थित एक निकटवर्ती धातु आयन आवेश को संतुलित करता है ताकि क्रिस्ट्ल की विद्युत उदासीनता बनी रहे|

(c) अशुद्धि दोष (impurity defects)-
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक ठोस के क्रिस्टल में किसी दूसरे पदार्थ के परमाणु, अणु या आयन उपस्थित होते हैं|

Thursday, January 14, 2021

इकाई सैलों के प्रकार (Types of unit cell)

इकाई सेल के प्रकार (Types of unit cell) -
विभिन्न प्रकार के क्रिस्टलों में उपस्थित इकाई सैल निम्न चार प्रकार के होते हैं-
(1) मौलिक सैल (primitive or basic cell)
(2) फलक केंद्रित इकाई सैल (face centred unit cell)
(3) अन्तः केंद्रित इकाई सैल (body centred unit cell)
(4) किनारा केंद्रित या अन्तःकेंद्रित इकाई सैल (side centred or end centred unit cell)

(1) मौलिक सैल (primitive or basic cell)-
वह इकाई सैल जिसमें घटक कण केवल उसके कोनों पर उपस्थित होते हैं, मौलिक इकाई सैल या सरल इकाई सैल कहा जाता है|
   मौलिक इकाई सैल युक्त क्रिस्टल जालक को सरल क्रिस्टल जालक कहा जाता है|
 सात क्रिस्टल तंत्र-
 एक फ्रेंच वैज्ञानिक ऑगस्ट ब्रेविस ने सन 1850 में यह देखा कि क्रिस्टलो में केवल 7 प्रकार के मौलिक इकाई सैल होते हैं| इन्हें ब्रेविस जालक या ब्रेविस इकाई सैल कहते हैं| प्रत्येक तंत्र को किनारों की लंबाई को a, b तथा c  तथा कोणों के परिमाप alpha, beta तथा gamma  के द्वारा अलग अलग किया जा सकता है| यह तंत्र निम्न है-
(1) घनीय तंत्र(cubic system)
(2) चतुष्कोणीय तंत्र(tetragonal system)
(3) ऑर्थोरोम्बिक तंत्र(orthorhombic system)
(4) त्रिकोणीय तंत्र(trigonal or rhombohedral system)
(5) मोनोक्लिनिक तंत्र(monoclinic system)
(6) षटकोणीय तंत्र(hexagonal system)
(7) ट्राईक्लीनिक तंत्र(triclinic system)
(2) फलक केंद्रित इकाई सैल (face centred unit cell)-
वे इकाई सैल जिनमें घटक कण उसके कोनो के साथ साथ प्रत्येक फलक के केंद्र पर भी स्थित होते हैं, फलक केंद्रित इकाई सैल कहलाते हैं|
(3) अन्तः केंद्रित इकाई सैल (body centred unit cell)-
वह इकाई सैल जिसमें कोनो के अतिरिक्त एक घटक कण केंद्र पर भी स्थित होता है, अंतः केंद्रित इकाई सैल कहलाते हैं|
(4) किनारा केंद्रित या अन्तःकेंद्रित इकाई सैल (side centred or end centred unit cell)-
वे इकाई सैल जिनमें घटक कण उसके कोनो के साथ-साथ फलकों के केवल एक सेट के केंद्र पर भी स्थित होते हैं, उन्हें किनारा केंद्रित या अन्तःकेंद्रित इकाई सैल कहा जाता है| इस प्रकार की इकाई सैल केवल विषमलंबाक्ष तथा एकनताक्ष तंत्रों में ही मिलते हैं|