किसी ठोस के क्रिस्टल में परमाणुओं के पूर्ण क्रमिक व्यवस्था से कोई भी विचलन ठोस की अपूर्णता या दोष कहलाता है|ठोसों में उपस्थित अपूर्णता या दोष निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) बिंदु दोष (Point defects)
(2)रेखीय दोष (Linear defects)
(1) बिंदु दोष (Point defects)-
क्रिस्टल में किसी परमाणु या परमाणु समूह के निकट कणों के सामान्य आवर्ती व्यवस्था से विचलित होने के फलस्वरूप उत्पन्न दोषों को बिंदु दोष कहा जाता है बिंदु दोष निम्न तीन प्रकार के होते हैं-
(a) स्टॉयशियोमीट्रिक दोष (stoichiometry defects )
(b) अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष (nonstoichiometry defects)
(c) अशुद्धि दोष (impurity defects)
(a) स्टॉयशियोमीट्रिक दोष (stoichiometry defects)-
जब क्रिस्टल में उपस्थित दोष के कारण क्रिस्टल की स्टॉयशियोमीट्रिक (अर्थात क्रिस्टल में उपस्थित धनायनों तथा ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित नहीं होती है तो दोष को स्टॉयशियोमीट्रिक दोष कहा जाता है|
यह दोष निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) रिक्तिका दोष (vacancy defects)
(ii) अंतराकाशी दोष (interstitial defects )
(iii) शॉटकी दोष (schotki defects)
(iv) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defects)
(i) रिक्तिका दोष (vacancy defects)-
इस प्रकार के दोष में कुछ परमाणु अपने नियत स्थान से हटकर ठोस से निकल जाते हैं और उस जगह एक रिक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है| तो इस प्रकार के दोष को रिक्तिका दोष कहा जाता है| इस प्रकार का दोष सामान्यता ऐसे ठोसों में होता है जिनमें आयन नहीं होते, केवल परमाणु होते हैं|
(ii) अंतराकाशी दोष (interstitial defects )-
इस प्रकार के दोष में ठोसों के कुछ परमाणु अपने नियत स्थान से हटकर अंतराकाशी स्थान में चले जाते हैं तो इस प्रकार के दोष को अंतराकाशी दोष कहा जाता है|
(iii) शॉटकी दोष (schotki defects)-
इस प्रकार के दोष में समान मात्रा में धनायन व ऋण आयन अपने नियत स्थान से हटकर ठोस में से निकल जाते हैं तो इस प्रकार के दोष को शॉटकी दोष कहते हैं| इस प्रकार का दोष सामान्यतःआयनिक यौगिकों में उत्पन्न होता है| समान मात्रा में धन आयन व ऋण आयन के अनुपस्थित रहने से ठोस के आवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परंतु ठोसों का घनत्व कम हो जाता है|
example - NaCl, KCl, KBr आदि
(iv) फ्रेंकेल दोष (Frenkel defects)-
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक आयन (प्रायः धनायन) अपनी जालक स्थिति को त्याग कर एक अंतराकाशी स्थिति को ग्रहण कर लेता है| इस दोष के होने पर भी क्रिस्टल विद्युतीय रूप में उदासीन रहता है क्योंकि क्रिस्टल में धनायनों की संख्या ऋणायनों की संख्या के बराबर ही रहती है| इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
example - ZnS, AgCl, AgBr आदि
(b) अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष (nonstoichiometry defects)-
जब क्रिस्टल में उपस्थित दोष के कारण धनायन तथा ऋण आयन की संख्या का अनुपात (अर्थात क्रिस्टल की स्टॉयशियोमीट्री) परिवर्तित हो जाता है तो दोस्त को अस्टॉयशियोमीट्रिक दोष कहा जाता है|
(i) ऋणायन रिक्तियों के कारण धातु अधिकता दोष-
इस प्रकार का दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक ऋणायन अपनी जालक स्थिति से अनुपस्थित होकर एक छिद्र का निर्माण करता है और छिद्र में एक इलेक्ट्रॉन समावेशित हो जाता है ताकि क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता बनी रहे|
example - KCl, LiCl आदि
(ii) धनायन रिक्तियों के कारण धातु न्यूनता दोष-
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक धनायन (धातु आयन) अपनी सामान्य जालक स्थिति में अनुपस्थित रहता है और उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में स्थित एक निकटवर्ती धातु आयन आवेश को संतुलित करता है ताकि क्रिस्ट्ल की विद्युत उदासीनता बनी रहे|
(c) अशुद्धि दोष (impurity defects)-
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक ठोस के क्रिस्टल में किसी दूसरे पदार्थ के परमाणु, अणु या आयन उपस्थित होते हैं|
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