Advance Chemistry : ठोस अवस्था व ठोसों का सामान्य वर्गीकरण( The solid state and general classification of solids)

Sunday, January 10, 2021

ठोस अवस्था व ठोसों का सामान्य वर्गीकरण( The solid state and general classification of solids)

ठोस अवस्था व ठोसों का सामान्य वर्गीकरण
( The solid state and general classification of solids)

ठोस अवस्था-
( The solid state)-
पदार्थ की वह अवस्था जिसका आयतन व आकार दोनों निश्चित होता है उसे ठोस अवस्था कहा जाता है|
                       या 
ठोस अवस्था पदार्थ की व्यवस्था है जिसमें घटक कण (अणु, परमाणु या आयन) जालक में संवृत संकुलित होते हैं तथा गति करने में असमर्थ रहते हैं| ये कण केवल अपने अक्ष पर कंपन कर सकते हैं|
जैसे - NaCl, डायमंड, गोल्ड आदि 

 ठोसों का सामान्य वर्गीकरण-
(General classification of solids)-
ठोसों को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा गया है -
(1) क्रिस्टलीय ठोस ( Crystalline solids)
(2) अक्रिस्टलीय ठोस ( Amorphous solids)
(1) क्रिस्टलीय ठोस ( Crystalline solids)-
क्रिस्टलीय ठोस में संरचनात्मक इकाई (अणु, परमाणु या आयन) एक निश्चित प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं| इस निश्चित प्रकार की इकाई की लगातार पुनरावृत्ति होती है| इन ठोसों के ज्यामितीय अभिविन्यास निश्चित होते हैं| क्रिस्टलीय ठोसों का गलनांक तीक्ष्ण होता है| क्रिस्टलीय ठोसों की संगलन ऊष्मा निश्चित होती है| इनके फलकों के मध्य निश्चित कोण होते हैं| क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक(anisotropic) प्रकृति के होते हैं अर्थात विभिन्न दिशाओं में इनके भौतिक गुणों के मान भिन्न-भिन्न होते हैं| क्रिस्टलीय ठोस में एक निश्चित प्रकार की संरचनात्मक इकाई की पुनरावृत्ति होती है| यह संरचनात्मक इकाई क्रिस्टल के त्रिआयामी जालक में फैली रहती हैं| इसलिए क्रिस्टलीय ठोस दीर्घ परास व्यवस्था वाले ठोस कहे जाते हैं| 
        NaCl क्रिस्टल में घटक इकाइयां Na+ तथा Cl- होती हैं| क्रिस्टल में ये एकांतर स्थलों पर स्थित रहती हैं| त्रिआयामी संरचना के कारण प्रत्येक Na+ आयन 6 Cl - आयनों द्वारा घिरा रहता है तथा प्रत्येक Cl- आयन 6 Na+ आयनों के द्वारा घिरा रहता है|
क्रिस्टलीय ठोसों के गुण-
इनके कुछ महत्वपूर्ण गुण निम्न हैं -
(1) दीर्घ परास व्यवस्था-
इन ठोसों में घटक कणों की आवर्ती क्रमिक व्यवस्था होती है|  इनमें घटक कणों की एक व्यवस्था होती है जो अधिक नियमित होती है| यही कारण है कि क्रिस्टलीय ठोस में एक दीर्घ परास व्यवस्था मानी जाती है|
(2) ज्यामितीय विन्यास-
घटक कणों के नियमित वितरण के कारण क्रिस्टलीय ठोसों में निश्चित और लाक्षणिक ज्यामितीय विन्यास पाया जाता है|
(3) गलनांक-
इन ठोसों के गलनांक सुनिश्चित होते हैं|
(4) उष्मा का प्रभाव-
गर्म किए जाने पर यह किसी विशेष ताप  पर ही पिघलते हैं |
(5) गलन उष्माएँ-
क्रिस्टलीय ठोसों की गलन उष्मायें निश्चित और लाक्षणिक होती हैं|
(6) चाकू से काटना-
 चाकू से काटने पर ये प्रायः नियमित रूप से कटते हैं|
(7) प्रकृति-
यह ठोस वास्तविक ठोस होते हैं| 

(2) अक्रिस्टलीय ठोस ( Amorphous solids)-
अक्रिस्टलीय ठोसों में संरचनात्मक इकाईयाँ एक निश्चित व्यवस्था के अंतर्गत व्यवस्थित नहीं होती हैं| इस कारण इस प्रकार के ठोसों की ज्यामितीय आकृति निश्चित नहीं होती है| अक्रिस्टलीय ठोस में एक निश्चित व्यवस्था भी हो सकती है लेकिन यह व्यवस्था बहुत अधिक नियमानुसार नहीं होती है तथा यह कुछ दूरी तक ही फैली मिलती हैं| इससे अधिक दूरी पर अव्यवस्थित क्रम मिलता है| इस प्रकार अक्रिस्टलीय ठोसों में लघु परास व्यवस्था पाई जाती है|  कांच, मोम, रबर, स्टार्च, प्लास्टिक इत्यादि अक्रिस्टलीय ठोसों के उदाहरण हैं|
       अक्रिस्टलीय ठोसों के गलनांक बहुत तीक्ष्ण नहीं होते हैं| अधिक ताप पर यह गलित अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं| इस प्रकार के ठोसों की संगलन ऊष्मा निश्चित नहीं होती है|
       चाकू के द्वारा काटे जाने पर यह नियमित काट प्रदर्शित नहीं करते हैं|अक्रिस्टलीय ठोस प्रकृति में समदैशिक (isotropic ) होते हैं अर्थात सभी दिशाओं में किसी भी गुण के लिए ये  समान मान प्रदर्शित करते हैं| अक्रिस्टलीय ठोसों को अतिशीतलित द्रव ( Super cooled liquid) कहा जाता है क्योंकि इनमें संरचनात्मक इकाई की व्यवस्था द्रव के समान मिलती है| विभिन्न अक्रिस्टलीय ठोसों; जैसे- कांच कुछ सीमा तक द्रव के समान बह सकते हैं| पुराने मकानों की खिड़कियों पर लगे कांच नीचे की ओर मोटे तथा ऊपर की ओर पतले हो जाते हैं क्योंकि गुरुत्व के प्रभाव में खिड़की का कांच धीरे-धीरे नीचे की ओर बहने लगता है जिससे कांच नीचे की ओर अपेक्षाकृत मोटा हो जाता है|

अक्रिस्टलीय ठोसों के गुण-
इनके कुछ महत्वपूर्ण गुण निम्न हैं -
(1) लघु परास व्यवस्था-
इन ठोसों में घटक कणों की आवर्ती क्रमिक व्यवस्था का अभाव होता है| लेकिन फिर भी इनके घटक कणों की एक व्यवस्था हो सकती है जो अधिक नियमित नहीं होती है| यही कारण है कि अक्रिस्टलीय ठोस में एक लघु परास व्यवस्था मानी जाती है|
(2) ज्यामितीय विन्यास-
घटक कणों के अनियमित वितरण के कारण अक्रिस्टलीय ठोसों में न तो निश्चित और ना ही लाक्षणिक ज्यामितीय विन्यास पाया जाता है|
(3) गलनांक-
इन ठोसों के गलनांक सुनिश्चित नहीं होते हैं ये प्रायः एक परास में पिघलते हैं| जैसे- कांच को गर्म करने पर यह मृदु होता है और उसके बाद एक ताप परास में पिघलता है|
(4) उष्मा का प्रभाव-
सामान्य दशा में अक्रिस्टलीय ठोस अपने अक्रिस्टलीय रूप को बनाए रखते हैं| लेकिन गर्म किए जाने पर यह किसी विशेष ताप  पर क्रिस्टलीय रूप ग्रहण कर लेते हैं| प्राचीन इमारतों से प्राप्त कांच की वस्तुएं प्रायः रंगहीन होने के स्थान पर दूधिया दिखाई देती हैं| यह उनमें उपस्थित कांच के आंशिक क्रिस्टलीकरण के कारण होता है|
(5) गलन उष्माएँ-
क्रिस्टलीय ठोसों के विपरीत अक्रिस्टलीय ठोसों की गलन उष्मायें न तो निश्चित और न ही लाक्षणिक होती हैं|
(6) चाकू से काटना-
 इन ठोसों को निश्चित तलों के अनुतटीय नहीं काटा जा सकता| चाकू से काटने पर वे प्रायः अनियमित रूप से कटते हैं|
(7) प्रकृति-
यह ठोस वास्तविक ठोस नहीं होते हैं| इन्हें अतिशीतलित द्रव या छद्म ठोस माना जाता है|

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