Advance Chemistry

Friday, October 2, 2020

कोलॉयडी तंत्रों के प्रकार(Types of Colloidal systems)

कोलॉयडी तंत्रों के प्रकार(Types of Colloidal systems)
कोलाइडी तंत्रों को कई प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-
(A) परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर-
परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर कुल 8  प्रकार के कोलाइडी अवस्थाएं संभव है जो निम्न प्रकार हैं-

(B) परिक्षिप्त प्रावस्था  एवं परिक्षेपण माध्यम के प्रति बंधुता के आधार पर-
इस आधार पर कोलॉयडी तंत्र दो प्रकार के होते हैं-
(1) द्रव स्नेही या द्रवरागी सॉल 
(2) द्रव विरोधी या द्रवविरागी सॉल 

(1) द्रव स्नेही या द्रवरागी सॉल -
द्रव स्नेही शब्द का अर्थ विलायक स्नेही है| वे पदार्थ जिन्हें द्रव अर्थात परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में लाने से कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जा सकता है, उन्हें द्रव स्नेही कोलाइड कहा जाता है|
 जैसे- गोंद, जिलेटिन, एल्ब्यूमिन, स्टार्च  इत्यादि
ये उत्क्रमणीय कोलॉयड भी कहलाते हैं|
(2) द्रव विरोधी या द्रवविरागी सॉल -
वे पदार्थ जो परिक्षेपण माध्यम के लिए स्नेह प्रदर्शित नहीं करते हैं तथा परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में लाने पर तुरंत कोलाइडी विलयन का निर्माण नहीं करते हैं उन्हें द्रव विरोधी कोलाइडी कहा जाता है| 
जैसे- गोल्ड सॉल, प्लैटिनम सॉल 
ये  अनुत्क्रमणीय सॉल भी कहलाते हैं|

(C) कोलाइडी अवस्था में परिक्षिप्त प्रावस्था के आकार एवं रचना के आधार पर-
इस आधार पर कोलाइडी विलयनों को  निम्न तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(1) बहुआणविक कोलॉयड 
(2) वृहतआणविक कोलॉयड  
(3) संगुणित कोलॉयड या मिसेल 

(1) बहुआणविक कोलॉयड -
जब 1 nm  से कम व्यास वाले छोटे अणु  या परमाणु परिक्षेपण माध्यम में परस्पर संयोग करके कोलाइडी आकार के कणों का निर्माण करते हैं तो इसे बहुआणविक  कोलॉयड कहा जाता है|
 जैसे- गोल्ड सॉल,  सल्फर सॉल इत्यादि

(2) वृहतआणविक कोलॉयड -
कुछ पदार्थ इस प्रकार के अणुओं का निर्माण करते हैं जिसके आकार कोलाइडी कणों के आकार के समान होते हैं| इस प्रकार के अणुओं  के अणुभार काफी अधिक होते हैं तथा इन्हें वृहत्अणु  कहा जाता है इस प्रकार के पदार्थों को जब किसी उपयुक्त परिक्षेपण माध्यम में परिक्षिप्त किया जाता है तो प्राप्त विलयन को वृहतआणविक  कोलाइड कहा जाता है|
जैसे - स्टार्च, जिलेटिन आदि का विलयन 

(3) संगुणित कोलॉयड या मिसेल-
जो कोलॉयड निम्न सांद्रता पर सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्य की भांति व्यवहार करते हैं लेकिन उच्च सांद्रता पर कणों के संगुणन  के कारण कोलाइडी गुण प्रदर्शित करते हैं उन्हें संगुणित  कोलॉयड कहा जाता है| इस प्रकार बनने वाले संगुणित  कणों को मिसेल कहा जाता है| 
जैसे- साबुन तथा संश्लेषित डिटर्जेंट का विलयन

--------------------------------------------------

साबुन के विलयन में मिसेल का निर्माण-
सामान्यतः प्रयोग में लाए जाने वाले साबुन उच्च वसीय अम्ल जैसे- पामिटिक अम्ल(C15H31COOH), स्टीएरिक अम्ल(C17H35COOH),आदि के सोडियम या पोटैशियम लवण होते हैं| 
सर्वाधिक उपयोग में लाया जाने वाला साबुन सोडियम स्टीएरेट है|
      सामान्यतः साबुन को RCOONa के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है जहां R  लंबी श्रृंखला वाले एल्किल समूह को व्यक्त करता है|
           साबुन को जब पानी में घोला जाता है तो वह आयनिकृत होकर   RCOO´ तथा Na+ का निर्माण करता है| RCOO´ आयन के दो भाग, लंबी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला R  तथा पोलर समूह -COO´  होते हैं| हाइड्रोकार्बन श्रृंखला R जल विरोधी होता है, जबकि -COO´ समूह जल स्नेही होता है|
          साबुन के हाइड्रोकार्बन R  वाले सिरे को पूँछ तथा उसके -COO´ समूह को सिर कहा जाता है| साबुन का पूँछ जल विरोधी जबकि उसका सिर द्रव स्नेही  होता है|
        अतः RCOO´ स्वयं को इस प्रकार विन्यासित करता है कि इसका -COO´  सिरा जल में डूबा रहे तथा समूह R जल से दूर रहे| विभिन्न RCOO´ आयनों के       -COO´ समूह समान आवेश के होने के कारण एक-दूसरे से दूर रहने की प्रवृत्ति रखते हैं| जबकि R समूह एक दूसरे के समीप आकर एक गुच्छे के रूप में एकत्रित हो जाते हैं| इस कारण ही एक मिसेल का निर्माण होता है|
      इस प्रकार साबुन का एक मिसेल एक ऐसा  ऋण आवेशित कोलाइडी कण है जिसमें ऋण आवेशित -COO  समूह सतह पर गोलाकार  रूप में व्यवस्थित रहते हैं जबकि हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाएं केंद्र की ओर केंद्रित रहती हैं|

साबुन की प्रक्षालन क्रिया (Cleansing action of soap)-
साबुन का उपयोग प्रायः गंदे वस्त्रों की सफाई के लिए किया जाता है| धूल तथा तैलीय पदार्थों के एकत्रित होने के कारण वस्त्र गंदे हो जाते हैं| जल के द्वारा तैलीय पदार्थों को अलग नहीं किया जा सकता है| जबकि साबुन के एनायन(RCOO´) में उपस्थित हाइड्रोकार्बन अवशेष R  इस कार्य को संपादित कर सकते हैं| जब किसी गंदे वस्त्र को साबुन के घोल में डुबोया जाता है तो RCOO´ के हाइड्रोकार्बन अवशेष R, तैलीय गंदगी को घोलकर एक मिसेल का निर्माण करते हैं| वस्त्र को जब पानी में धोया जाता है तो मिसेल जिसमें तैलीय गंदगी होती है, पानी के साथ घुलकर अलग हो जाती है| साबुन की प्रक्षालन क्रिया को निम्न चित्र में दर्शाया गया है|


Wednesday, September 30, 2020

कोलॉयडी अवस्था( The colloidal state)

कोलॉयडी अवस्था( The colloidal state)
पदार्थ की कोलॉयडी अवस्था वह अवस्था है जिसमें पदार्थ के कणों का आकार 1nm से 1000nm के मध्य होता है| वह तंत्र जिसमें इस आकार के कण परिक्षिप्त रहते हैं, उसे कोलाइडी तंत्र कहा जाता है|
जैसे - जिलेटिन, गोंद आदि जल में कोलॉयडी विलयनों का निर्माण करते हैं|
परिक्षिप्त प्रावस्था-
कोलाइडी तंत्र में उपस्थित हुआ पदार्थ जो कोलाइडी रूप में स्थित रहता है परिक्षिप्त अवस्था का निर्माण करता है| अतः कोलाइडी कणों का निर्माण करने वाली प्रावस्था को परिक्षिप्त प्रावस्था कहा जाता है| जैसे- जल में फैरिक हाइड्रोक्साइड के कोलाइडी विलयन में फैरिक हाइड्रोक्साइड परिक्षिप्त प्रावस्था होता है|
परिक्षेपण माध्यम-
वह विलायक माध्यम जिसमें कोलॉयडी कण वितरित रहते हैं परिक्षेपण माध्यम कहा जाता है| जैसे- जल में फेरिक हाइड्रोक्साइड के कोलाइडी विलयन में जल परिक्षेपण माध्यम है|
--------------------------------------------------

विलेय कणों के आकार के आधार पर तंत्रों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(1) वास्तविक विलयन-
वास्तविक विलयन उन समांग तंत्रों को कहा जाता है जिनमें उपस्थित कणों का आकार 1nm से कम होता है| इनके कण दृश्य नहीं होते हैं तथा इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से भी नहीं देखा जा सकता है| वास्तविक विलयन में विलेय के कणों का आकार बहुत कम होने के कारण यह सामान्य फिल्टर पेपर या जंतु झिल्ली द्वारा फिल्टर नहीं किये जा सकते हैं|
 जैसे- सोडियम क्लोराइड, शर्करा, यूरिया इत्यादि जल में वास्तविक विलयन का निर्माण करते हैं|
(2) कोलॉयडी विलयन-
कोलॉयडी विलयन विषमांग तंत्र होते हैं| इनमें उपस्थित कणों के आकार 1nm से 1000 nm के मध्य होते हैं| कोलॉयडी तंत्र में उपस्थित कणों का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है| इन्हें कोलॉयडी कण कहा जाता है| यद्यपि कोलॉयडी कणों का आकार बड़ा होता है लेकिन इन्हें नेत्रों के द्वारा देखा जाना संभव नहीं है| इन्हें अतिसूक्ष्मदर्शी के द्वारा ही देखा जा सकता है| सामान्य फिल्टर पेपर के छिद्रों  से होकर यह आसानी से गुजर जाते हैं, लेकिन जंतु झिल्ली के छिद्रों से होकर यह गमन नहीं कर पाते हैं|
जैसे - जिलेटिन, गोंद इत्यादि जल में कोलॉयडी विलयनों का निर्माण करते हैं|
(3) निलंबन-
निलंबन विषमांग तंत्र होते हैं| इनमें कणों का आकार 1000 nm से अधिक होता है| इन तंत्र में कणों को नेत्रों तथा सूक्ष्मदर्शी दोनों के द्वारा देखा जा सकता है| निलंबन साधारण फिल्टर पेपर तथा जंतु झिल्ली दोनों में से किसी के छिद्रों से होकर गमन नहीं करते हैं|
जैसे - मिट्टी के कणों को जल में डालकर हिलाने पर निलंबन तंत्र प्राप्त होता है|

--------------------------------------------------
वास्तविक विलयन, कोलाइडी विलयन व निलंबन के मुख्य लक्षण-

वास्तविक विलयन-
(1) कणों का आकार- 1nm से कम 
(2) प्रकृति-  समांग 
(3) कणों की दृश्यता-  अदृश्य 
(4) प्रकटता-  पारदर्शी 
(5) छननता-  सामान्य फिल्टर पेपर तथा जंतु झिल्लियों से गमनीय 
(6) गुरुत्व के प्रभाव से कणों का नीचे बैठना-   कण नीचे नहीं बैठते हैं
(7) टिंडल प्रभाव-  टिंडल प्रभाव प्रदर्शित नहीं करते हैं

कोलॉयडी  विलयन-
(1) कणों का आकार- 1nm से 1000 nm के बीच  
(2) प्रकृति-  विषमांग 
(3) कणों की दृश्यता-  अति सूक्ष्मदर्शी के द्वारा दृश्य 
(4) प्रकटता-  प्रायः पारदर्शी, लेकिन पारभासकता भी प्रदर्शित कर सकते हैं
(5) छननता-  सामान्य फिल्टर पेपर  से गमनीय लेकिन जंतु झिल्लियों से अगमनीय 
(6) गुरुत्व के प्रभाव से कणों का नीचे बैठना-   कण नीचे नहीं बैठते हैं
(7) टिंडल प्रभाव-  टिंडल प्रभाव प्रदर्शित  करते हैं

निलंबन -
(1) कणों का आकार- 1000 nm से अधिक 
(2) प्रकृति-    विषमांग 
(3) कणों की दृश्यता-  नेत्र  या सूक्ष्मदर्शी के द्वारा दृश्य 
(4) प्रकटता-  अपारदर्शी 
(5) छननता-  सामान्य फिल्टर पेपर तथा जंतु झिल्लियों से अगमनीय 
(6) गुरुत्व के प्रभाव से कणों का नीचे बैठना-   कण नीचे बैठते हैं
(7) टिंडल प्रभाव-  टिंडल प्रभाव प्रदर्शित करते हैं

Monday, September 28, 2020

अधिशोषण के प्रकार(Types of Adsorption)

अधिशोषण के प्रकार(Types of Adsorption)
गैस अणुओं  को अधिशोषक सतह से आबद्ध करने वाले बलों की प्रकृति के आधार पर गैसों के ठोस सतहों पर अधिशोषण को निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है-
(A) भौतिक अधिशोषण(Physical adsorption)-
यदि अधिशोषण प्रक्रिया में निहित अणुओं को सतह से आबद्ध करने वाले बल दुर्बल वांडर वाल बल हैं तो अधिशोषण को भौतिक अधिशोषण या वांडर वाल अधिशोषण कहा जाता है|
       भौतिक अधिशोषण के प्रमुख लक्षण निम्न हैं-
 (1) अविशिष्ट प्रकृति-
 भौतिक अधिशोषण की प्रकृति विशिष्ट नहीं होती है|
(2) उत्क्रमणीय प्रकृति-
 इस प्रकार का अधिशोषण प्रायः उत्क्रमणीय होता है|
(3) अधिशोषण की ऊष्मा-
 इस प्रकार के अधिशोषण में अधिशोषण ऊष्मा का मान काफी कम होता है| यह  मान 40 kj/mol के क्रम का होता है|
(4) बहु परतीय प्रकृति-
 विशिष्ट प्रकृति के कारण भौतिक अधिशोषण बहु परतीय होता है|
(5) ताप का प्रभाव-
ताप में वृद्धि करने पर भौतिक अधिशोषण कम हो जाता है|
(6) दाब का प्रभाव-
 गैस के दाब में वृद्धि करने पर भौतिक अधिशोषण में वृद्धि होती है|

(B) रासायनिक अधिशोषण या रसोवशोषण(Chemical adsorption or chemisorption)-
 जब गैस के अणु अधिशोषक की सतह से प्रबल संयोजकता बंध बलों द्वारा आबद्ध होते हैं तो इस प्रकार के अधिशोषण को रासायनिक अधिशोषण या रसोवशोषण कहा जाता है|
         रासायनिक अधिशोषण के प्रमुख लक्षण निम्न है-
(1) अत्यधिक विशिष्ट प्रकृति-
 रासायनिक अधिशोषण की प्रकृति अत्यधिक विशिष्ट होती है|
(2) अनुत्क्रमणीय प्रकृति-
 चूँकि रासायनिक अधिशोषण में एक रासायनिक परिवर्तन निहित होता है इसलिए इसकी प्रकृति अधिकतर प्रकरणों में अनुत्क्रमणीय होती है|
(3) अधिशोषण की ऊष्मा-
 रासायनिक अधिशोषण भी ऊष्माक्षेपी होता है और इसमें निहित अधिशोषण ऊष्मा का मान भौतिक अधिशोषण की तुलना में काफी अधिक, लगभग 400 kj/mol  के क्रम का होता है|
(4) एकल परतीय प्रकृति-
 रासायनिक अधिशोषण एकल परतीय प्रकृति का होता है| 
(5) ताप का प्रभाव- 
ऊष्माक्षेपी प्रकृति के कारण रासायनिक अधिशोषण का ताप में वृद्धि करने पर पहले वृद्धि होता है और इसके पश्चात यह कम होता जाता है|

Sunday, September 27, 2020

अधिशोषण(Adsorption)

       अधिशोषण(Adsorption)

एक पदार्थ की सतह पर किसी अन्य पदार्थ के एकत्र होने की घटना को अधिशोषण कहा जाता है|
       एक पदार्थ का किसी अन्य पदार्थ की सतह पर अस्थाई रूप से एकत्रित होना एक सामान्य घटना है| कपड़ों पर धूल का जमा होना, वस्त्रों का किसी रंग में रंगना, सक्रिय चारकोल की सतह पर अमोनिया या ब्रोमीन का जमा होना, प्लैटिनम या पैलेडियम धातु सतह पर हाइड्रोजन का जमा होना इस प्रकार के कुछ उदाहरण हैं|
     अधिशोषण एक पृष्ठीय घटना है| यह ठोस तथा द्रव पदार्थों की सतहों पर उपस्थित असंतुलित आणविक बलों के कारण उत्पन्न होती है|
       जिस पदार्थ की सतह पर कोई अन्य पदार्थ जमा होता है उसे अधिशोषक(adsorbent) कहा जाता है और जमा होने वाले पदार्थ को अधिशोषित(adsorbate) कहा जाता है| 
जैसे - यदि अमोनिया गैस चारकोल की सतह पर जमा होती है तो चारकोल को अधिशोषक तथा अमोनिया गैस को अधिशोषित कहा जाएगा|

 अवशोषण(Absorption)-
जब एक अधिशोषक को एक अधिशोषित के संपर्क में लाया जाता है तो अधिशोषित अणु अधिशोषक के अभ्यंतर में प्रवेश कर सकते हैं| इस घटना को अवशोषण कहा जाता है| इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-
   वह घटना जिसमें अधिशोषित अधिशोषक के अभ्यंतर में प्रवेश कर अधिशोषक के संपूर्ण जालक में वितरित हो जाता है अवशोषण कहलाता है|
जैसे-  सोख्ता कागज द्वारा स्याही का अवशोषण 

अधिशोषण व अवशोषण में अंतर-
अधिशोषण-
(1) यह एक पृष्ठ घटना है| अधिशोषित केवल अधिशोषक की सतह पर ही एकत्रित होता है|
(2) अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित  का सांद्रण अभ्यंतर सांद्रण से भिन्न होता है|
(3) प्रारंभ में अधिशोषण दर अधिक होती हैै तथा साम्य स्थापित होने तक धीरे-धीरे कम होती जाती है|
अवशोषण-
(1) यह एक अंतरंग घटना है| इसमें अधिशोषित अधिशोषक के अभ्यंतर में प्रवेश कर समान रूप से वितरित हो जाता है|
(2) अधिशोषण के अभ्यंतर में अधिशोषित का सांद्रण सर्वत्र समान होता है|
(3) अवशोषण समान दर से संपन्न होता है|

शोषण(Sorption)-
शोषण उस घटना को कहा जाता है जिसमें अधिशोषण तथा अवशोषण दोनों प्रक्रियायें  एक साथ संपन्न होती हैं| 
जैसे- जब पैलेडियम को हाइड्रोजन के संपर्क में लाया जाता है तो अधिशोषण तथा अवशोषण प्रक्रियाएं एक साथ संपन्न होती हैं|

धनात्मक तथा ऋणात्मक अधिशोषण-
इन शब्दों का प्रयोग शोषण के प्रकरण में किया जाता है अर्थात जब अधिशोषण तथा अवशोषण एक साथ संपन्न होते हैं| जब अधिशोषित का सांद्रण अधिशोषक के अभ्यंतर की अपेक्षा उसकी सतह पर अधिक होता है तो घटना को धनात्मक अधिशोषण कहा जाता है| इसके विपरीत यदि अधिशोषित का सांद्रण अधिशोषक के अभ्यंतर की तुलना में इसकी सतह पर कम है तो घटना को ऋणात्मक अधिशोषण कहा जाता है|

विशोषण(Desorption)-
किसी अधिशोषक की सतह से किसी अधिशोषित को अलग करने की प्रक्रिया को विशोषण कहा जाता है| यह अधिशोषण प्रक्रिया का उत्क्रम होता है|

Thursday, September 24, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुण(Chemical properties of Carboxylic acids)

कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुण(Chemical properties of Carboxylic acids)
कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुणों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
(A) कार्बोक्सिल समूह के -H परमाणु के कारण अभिक्रियाएं 
(B) कार्बोक्सिल समूह के -OH परमाणु के कारण अभिक्रियाएं 
(C) सम्पूर्ण -COOH समूह की अभिक्रियाएं 
(D) अम्ल के एल्किल समूह की अभिक्रियाएं 
(E) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों मे उपस्थित बेंजीन नाभिक की अभिक्रियाएं 

(A) कार्बोक्सिल समूह के -H परमाणु के कारण अभिक्रियाएं -
कार्बोक्सिल समूह का -H परमाणु कार्बोक्सिलिक अम्लों को विशिष्ट अम्लीय गुण प्रदान करता है| कार्बोक्सिलिक अम्ल ऐल्कोहल तथा फिनॉल से अधिक अम्लीय होते हैं परंतु यह खनिज अम्ल जैसे- HCl, H2SO4, HNO3 आदि से कम अम्लीय होते हैं| 
(1) कार्बोक्सिलिक अम्लों की अम्लीय प्रकृति -
कार्बोक्सिलिक अम्ल आयनित होकर निम्न प्रकार कार्बोक्सीलेट आयन तथा हाइड्रोनियम आयन देते हैं -
RCOOH + H2O ------> RCOO´   + H3O+
विलयन मे हाइड्रोनियम आयन की उपस्थिति के कारण ये अम्लीय गुण प्रदर्शित करते हैं |
      कार्बोक्सिलिक अम्लों की अम्लीय प्रकृति विशेष रूप से अनुनाद के द्वारा आवेश के विस्थानीकरण के कारण होती है| किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल  को निम्न दो रूपों का अनुनाद संकर माना जा सकता है-

कार्बोक्सिलिक अम्लों की प्रबलता पर प्रतिस्थापियों का प्रभाव -
कार्बोक्सिलिक अम्ल की प्रबलता H+ आयन मुक्त करने की सुगमता तथा कार्बोक्सीलेट आयन के स्थायित्व पर निर्भर करती है| अतः वह प्रतिस्थापी,जो  H+ आयन के मुक्त होने को सरल बना देते हैं तथा कार्बोक्सीलेट आयन के स्थायित्व की वृद्धि करने में सहायता करता है, अम्ल की प्रबलता में वृद्धि करता है| इसके विपरीत वह प्रतिस्थापी जो H+ आयन के मुक्त करने को कठिन बना देता है वह अम्ल की प्रबलता को कम करता है|
(1) इलेक्ट्रॉन निर्गत करने वाले प्रतिस्थापी की उपस्थिति अम्ल की प्रबलता को कम करती है|
जैसे - एल्किल समूह 
              O->-H 
               |
CH3-->--C=O 
अम्लों की प्रबलता का घटता क्रम निम्न प्रकार है-
HCOOH > CH3COOH >
CH3CH2COOH >(CH3)2CHCOOH 

(2) इलेक्ट्रॉन खींचने वाले प्रतिस्थापी की उपस्थिति अम्ल की प्रबलता में वृद्धि करते हैं|
जैसे - हैलोजन, -CN, -NO2 आदि 
                            O-<-H 
                             |
       Cl-<-CH2--<--C=O 
अम्लों की प्रबलता का घटता क्रम निम्न प्रकार है-
CCl3COOH >
CHCl2COOH > CH2ClCOOH 

  (2) धातुओं के साथ क्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल  सक्रिय धातुओं जैसे- Na, K, Mg, आदि के साथ क्रिया कर लवण बनाते हैं तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं-             
          
2CH3COOH + Na ----> 2CH3COONa + H2 
(3) क्षारों के साथ क्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल क्षारों  के साथ क्रिया करके लवण व जल बनाते हैं|
CH3COOH + NaOH  ----> CH3COONa + H2O 
(3) कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट को अपघटित कर देते हैं तथा CO2 गैस बुदबुदाहट के साथ निकलती है|
 2CH3COOH + Na2CO3 ----> 2CH3COONa + H2O + CO2 

 CH3COOH + NaHCO3 ----> CH3COONa + H2O + CO2
 
(B) कार्बोक्सिल समूह के -OH परमाणु के कारण अभिक्रियाएं-

(1) PCl5 के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड व फास्फोरस ऑक्सीक्लोराइड का निर्माण होता है|

CH3COOH + PCl5 ----> CH3COCl + POCl3 + HCl 
(2) PCl3 के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड व फास्फोरस एसिड  का निर्माण होता है|

CH3COOH + PCl3 ----> CH3COCl + H3PO3 

(3) थायोनिल क्लोराइड  के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड, सल्फर डाइऑक्साइड व HCl  का निर्माण होता है|

CH3COOH + SOCl2 ----> CH3COCl + SO2 + HCl 

(4) एल्कोहॉल  के साथ क्रिया -
जब इनको ऐल्कोहल के साथ सांद्र H2SO4 या शुष्क HCl  गैस की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तब एस्टर प्राप्त होते हैं यह अभिक्रिया एस्टरीकरण कहलातीहै|
CH3COOH + C2H5OH  ----> CH3COOC2H5  + H2O 
(5) ऐसिड ऐनहाइड्राइड का निर्माण-
जब कार्बोक्सिलिक को प्रबल निर्जलीकारक जैसे- P2O5 की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तब संगत एसिड ऐनहाइड्राइड प्राप्त होते हैं| निर्जलीकरण में अम्ल के दो अणुओं से जल के एक अणु का निष्कासन होता है|
                       P2O5/ गर्म 
2CH3COOH -------------------> (CH3CO)2O  +  H2O 


(C) सम्पूर्ण -COOH समूह की अभिक्रियाएं-

(1) विकार्बोक्सीलीकरण-
कार्बोक्सिल  समूह से CO2 का निष्कासन विकार्बोक्सीलिकरण कहलाता है|
👉 जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल के सोडियम लवण को सोडा लाइम(NaOH+CaO) के साथ गर्म किया जाता है तब अम्ल के विकार्बोक्सीलीकरण के फलस्वरूप एक एल्केन या एरिन प्राप्त होता है जिसमें मूल अम्ल की अपेक्षा एक कार्बन परमाणु कम होता है|
                                 CaO 
RCOONa + NaOH ----------> R-H + Na2CO3 

(2) अपचयन -
कार्बोक्सिलिक अम्लों को निम्न दो प्रकार से अपचयित किया जा सकता है-
(a) आंशिक अपचयन-
जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल को LiAlH4 या हाइड्रोजन के साथ अपचयित किया जाता है तब आंशिक अपचयन के फल स्वरुप एक ऐल्कोहल प्राप्त होता है|
                               LiAlH4
CH3COOH + 4H2 -----------> CH3CH2OH + H2O 
(b) संपूर्ण अपचयन-
जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल को HI  या लाल फास्फोरस के साथ अपचयित किया जाता है तब सम्पूर्ण अपचयन के फल स्वरुप समान कार्बन परमाणु युक्त एल्केन  प्राप्त होता है|
                               Red P 
CH3COOH + 6HI  -----------> CH3CH3 + 2H2O + 3I2 

(D) अम्ल के एल्किल समूह की अभिक्रियाएं -
(1) हैलोजनीकरण-
कार्बोक्सिलिक अम्ल क्लोरीन या ब्रोमीन के साथ फास्फोरस की अल्प मात्रा की उपस्थिति में क्रिया कर ऐल्फा हैलोजनीकृत कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं| यह अभिक्रिया हैल-वोलहार्ड जेलेंस्की(HVZ) अभिक्रिया कहलाती है|
                     Cl2,Red P 
CH3COOH -----------------> 
                      (-HCl)
CH2ClCOOH --------------> CHCl2COOH -----------------> CCl3COOH  

(E) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों मे उपस्थित बेंजीन नाभिक की अभिक्रियाएं -
बेंजीन नाभिक की उपस्थिति के कारण एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाये देते हैं| कार्बोक्सिल समूह एक इलेक्ट्रॉन खींचने वाला समूह है तथा मेटा निर्देशक होता है| अतः इन अम्लों  में इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन मेटा स्थान पर होता है|
(1) हैलोजनीकरण-
बेंजोइक अम्ल क्लोरीन या ब्रोमीन से क्रिया कर मेटा व्युत्पन्न बनाता है|
(2) नाइट्रीकरण-
बेंजोइक अम्ल सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में सांद्र HNO3 के साथ क्रिया कर मेटा स्थान पर नाइट्रीकरण क्रिया प्रदर्शित करता है|
(3) सल्फोनीकरण-
सधूम्र H2SO4 के साथ क्रिया कर बेंजोइक अम्ल सल्फोनीकरण के फल- स्वरुप मेटा सल्फोबेंजोइक अम्ल देता है|

Wednesday, September 23, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के भौतिक गुण(Physical properties of Carboxylic acid )

कार्बोक्सिलिक अम्लों के भौतिक गुण(Physical properties of Carboxylic acid )
इनके महत्वपूर्ण भौतिक गुण निम्नलिखित हैं-
(1) भौतिक अवस्था रंग तथा गंध-
एलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के प्रथम 3 सदस्य अर्थात HCOOH, CH3COOH तथा CH3CH2COOH  रंगहीन तथा तीक्ष्ण गंध वाले द्रव होते हैं| इन से आगे के 6 सदस्य(C4 से C9 ) रंगहीन, तैलीय द्रव तथा हल्की दुर्गंधयुक्त होते हैं| ब्यूटाइरिक अम्ल (C4) में  सड़े मक्खन जैसी गंध होती है| उच्च सदस्य (C10 से आगे) रंगहीन तथा मोम की तरह ठोस पदार्थ होते हैं| कम वाष्पशीलता के कारण इनकी विशिष्ट गंध नहीं होती| बेंजोइक अम्ल तथा अन्य एरोमेटिक अम्ल विशिष्ट गंध रहित रंगहीन ठोस होते हैं|

(2) विलेयता -
एेलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के निम्न सदस्य (C4 तक) जल में विलेय होते हैं| C4 के पश्चात विलेयता अणु भार बढ़ने के साथ-साथ तेजी से कम होती है| सात या अधिक कार्बन परमाणु वाले अम्ल जल में लगभग अविलेय होते हैं| बेंजोइक अम्ल ठंडे जल में लगभग अविलेय होता है, परंतु गर्म जल में काफी मात्रा में विलेय होता है|
            कार्बोक्सिलिक अम्लों की विलेयता -COOH समूह तथा जल के अणुओं के बीच हाइड्रोजन बंध बनने के कारण होती है|

---H-O-----H-O-C=O------H-O
        |               |                 |
       H              R               H 

(3) क्वथनांक-
कार्बोक्सिलिक अम्लों के क्वथनांक संगत अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन की अपेक्षा अधिक होते हैं| इनके क्वथनांक संगत ऐल्कोहल से भी अधिक होते हैं| कार्बोक्सिलिक अम्लों के क्वथनांक अणुभार बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते हैं|
           तुलनीय अणुभार वाले एल्केन तथा ऐल्कोहल की अपेक्षा कार्बोक्सिलिक अम्लों के उच्च क्वथनांक का कारण प्रबल अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंधों की उपस्थिति है|

R-C=O-----------H-O-C-R 
    |                          | |
   O-H------------------- O 

(4) गलनांक-
कार्बोक्सिलिक अम्लों के गलनांक नियमित रूप से परिवर्तित नहीं होते हैं| ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के प्रथम 10 सदस्यों के गलनांक दोलनात्मक रूप में परिवर्तित होते हैं| वे  अम्ल  जिनमें सम कार्बन परमाणु होते हैं, उनके गलनांक अगले अम्ल जिनमें विषम कार्बन परमाणु पाए जाते हैं, से अधिक होते हैं| इसका कारण यह होता है कि सम कार्बन परमाणु युक्त अम्लों में -COOH  समूह तथा अंतिम CH3 समूह दोनों परस्पर टेढ़ी-मेढ़ी कार्बन श्रृंखला के विपरीत ओर स्थित होते हैं जबकि विषम कार्बन युक्त में यह दोनों समूह टेढ़ी-मेढ़ी कार्बन श्रृंखला के एक ही ओर स्थित होते हैं| जिस कारण इनके अणुओं की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होती है|

Monday, September 21, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के निर्माण की सामान्य विधियां-

कार्बोक्सिलिक अम्लों  के निर्माण की सामान्य विधियां-

(1) प्राथमिक अल्कोहल तथा एल्डिहाइड से-
प्राथमिक अल्कोहल तथा एल्डिहाइड को ऑक्सीकारकों जैसे- अम्लीय या क्षारीय माध्यम में KMnO4 या अम्लीय माध्यम में K2Cr2O7 के द्वारा संगत कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकृत किया जा सकता है|

                  KMnO4
                   [O]                          [O]
RCH2OH ---------------> RCHO ---------->RCOOH 
जैसे -
                       KMnO4
                          [O]
CH3CH2OH --------------->CH3CHO ---------->CH3COOH 


(2) एल्किल बेंजीन से -
एल्किल बेंजीन का क्षारीय KMnO4, सांद्रHNO3 या अम्लीय K2Cr2O7 से ऑक्सीकरण करने पर ऐरोमैटिक कार्बोक्सीलिक अम्ल प्राप्त किए जा सकते हैं|
               KMnO4/OH´
C6H5-H -------------------> C6H5COOH 

(3) नाइट्राइल व एमाइड से-
सायनाइड समूह युक्त यौगिक नाइट्राइल कहलाते हैं| जब इनका अम्ल और क्षार के साथ जल अपघटन किया जाता है तब  कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं|
                        H+/ OH´
RCN + 2H2O ---------------> RCOOH + NH3 

(4) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक से-
ग्रिगनार्ड अभिकर्मक ईथरीय विलयन में CO2 के साथ क्रिया कर तथा बाद में योगात्मक उत्पाद का जल अपघटन तनु खनिज अम्ल के द्वारा कराने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल  प्रदान करते हैं|
                               शुष्क ईथर 
RMgX + O=C=O --------------------->
                     H2O/H+ 
RCOOMgX ---------------> RCOOH + Mg(OH)X 


(5) ऐसिल हैलाइड तथा ऐनहाइड्राइड से-
अम्ल क्लोराइड तथा अम्ल ऐनहाइड्राइड का जल के द्वारा जल अपघटन करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं|

RCOCl + H2O --------> RCOOH + HCl 

(C6H5CO)2O + H2O -------> 2C6H5COOH 

(6) एस्टर से-
एस्टर तनु खनिज अम्ल के द्वारा जल अपघटन पर संगत कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं|

CH3COOC2H5 + H2O -----------> CH3COOH + C2H5OH 



Thursday, September 17, 2020

ऐल्डिहाइडों व कीटोनो के रासायनिक गुण(Chemical properties of Aldehydes and Ketons)

ऐल्डिहाइडों व कीटोनो के रासायनिक गुण(Chemical properties of Aldehydes and Ketons)

एल्डिहाइडों और कीटोनों के मुख्य रासायनिक गुण निम्न प्रकार हैं-

(A) नाभिकरागी योगात्मक अभिक्रियायें-
 एल्डिहाइडों और कीटोनों में उपस्थित कार्बोनिल समूह का कार्बन परमाणु इलेक्ट्रॉन न्यून होता है तथा उस पर आंशिक धन आवेश होता है इसलिए यह किसी नाभिक स्नेही अभिकर्मक से सरलता से क्रिया कर लेता है| यही कारण है कि एल्डिहाइड और कीटोन नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये देते हैं|
      एल्डिहाइड कीटोन से अधिक क्रियाशील होते हैं इसके मुख्य कारण निम्न है-
👉 प्रेरणिक प्रभाव-  एक एल्किल समूह इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव या +I  प्रभाव प्रदर्शित करता है| इसलिए कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर एक या अधिक एल्किल समूह की उपस्थिति धन आवेश के परिमाण को कम कर देगी तथा इस प्रकार नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रिया के प्रति कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता कम हो जाएगी|
👉 त्रिविम प्रभाव-  एल्डिहाइड तथा कीटोन में कार्बोनिल समूह से लगे एल्किल समूह कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर नाभिक स्नेही अभिकर्मक के पहुंचने में रुकावट उत्पन्न करते हैं यह कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता को कम कर देता है इसे त्रिविम प्रभाव कहते हैं|

नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं के कुछ मुख्य उदाहरण निम्न है-
(1) HCN का योग -
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों HCN  के एक अणु का क्षारीय उत्प्रेरक की उपस्थिति में योग करते हैं|

(2) सोडियम बाईसल्फाइट का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड तथा कुछ मेथिल कीटोन सोडियम बाईसल्फाइट के संतृप्त जलीय विलियन से क्रिया कर क्रिस्टलीय बाईसल्फाइट योगात्मक यौगिक बनाते हैं|

(3) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड और कीटोन ग्रिगनार्ड अभिकर्मक को से अभिक्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं यह योगात्मक उत्पाद जल अपघटन पर एल्कोहल उत्पन्न करते हैं|

(4) ऐल्कोहल का योग-
एल्डिहाइड ( न कि कीटोन) शुष्क HCl  गैस की उपस्थिति में एल्कोहल से क्रिया करके ऐसीटल बनाते हैं|
          जब एक एल्डिहाइड अल्कोहल के साथ क्रिया करता है तो अल्कोहल का अणु एल्डिहाइड के कार्बोनिल समूह से योग करता है तथा योगात्मक यौगिक बनाता है जिसे हेमिऐसिटल कहते हैं| हेमिऐसिटल अस्थाई होने के कारण तुरंत एल्कोहल के दूसरे अणु के साथ क्रिया करता है तथा स्थाई ऐसीटल बनाता है|
     
   एल्डिहाइड डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय ऐसीटल बनाते हैं|
    कीटोन भी इस प्रकार की क्रियाएं देते हैं तथा उपरोक्त परिस्थितियों में डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय कीटल बनाते हैं|

(B) जल निष्कासन सन्निहित नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये -

(1) अमोनिया का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों अमोनिया के साथ नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाएं देते हैं-

(2) अमोनिया के व्युत्पन्नों का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन अमोनिया के कुछ व्युत्पन्नों जैसे हाइड्रोकसिल ऐमीन, हाइड्राजीन, फेनिल हाइड्रजीन आदि के साथ दुर्बल अम्लीय माध्यम में क्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं|


(C) अपचयन -

(1) एल्कोहल में अपचयन-
एल्डिहाइड और कीटोन को अल्कोहल में Ni, Pt, Pd  आदि की उपस्थिति में उत्प्रेरकीय  हाइड्रोजनीकरण के द्वारा या अपचायकों के प्रयोग द्वारा अपचयित करने पर एल्डिहाइड प्राथमिक अल्कोहल देते हैं जबकि कीटोन द्वितीयक अल्कोहल देते हैं| जैसे-

(2) हाइड्रोकार्बन में अपचयन-

(a) क्लेमैन्सन अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को जिंक एमलगम व सांद्र HCl  के साथ अभिकृत करते हैं तो वे अपने संगत हाइड्रोकार्बन में अपचयित हो जाते हैं यह क्लेमैन्सन अपचयन कहलाता है|
(b) वुल्फ - किशनर अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को एथिलीन ग्लाइकॉल विलायक में 453- 473 K  ताप पर हाइड्राजीन तथा KOH के मिश्रण के साथ गर्म करते हैं तो इनके संगत हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं|
(D) ऑक्सीकरण अभिक्रियाये-
(1) कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड और कीटोन दोनों को कार बॉक्स लिक अम्लों में ऑक्सिक्रेट किया जा सकता है परंतु इनका ऑक्सीकरण व्यवहार भिन्न होता है|

(a) एल्डिहाइड का ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड को साधारण ऑक्सीकारक, जैसे- KMnO4, K2Cr2O7, आदि की क्रिया द्वारा कार्बोक्सिलिक अम्लों में सरलता से ऑक्सीकृत किया जा सकता है| प्राप्त कार्बोक्सिलिक अम्ल में मूल एल्डिहाइड के बराबर कार्बन परमाणु होते हैं|

CH3CHO + O ----> CH3COOH 
चूँकि एल्डिहाइड सरलता से ऑक्सीकृत हो जाते हैं इसलिए यह प्रबल अपचायक की तरह कार्य करते हैं तथा अनेक ऑक्सीकारको, जैसे- टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन, बैनेडिक्ट विलयन, आदि को अपचयित कर सकते हैं| एल्डिहाइड की  इन अभिकर्मकों के साथ क्रिया निम्न प्रकार हैं-
👉टॉलन अभिकर्मक के साथ क्रिया -
टॉलन अभिकर्मक सिल्वर नाइट्रेट का अमोनियामय विलयन होता है|
         जब किसी एल्डिहाइड को टॉलन  अभिकर्मक के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है, जो अमोनिया के साथ संयोग कर अमोनियम लवण बनाता है, जबकि टॉलन अभिकर्मक धात्विक सिल्वर में अपचयित हो जाता है| सिल्वर परखनली की आंतरिक दीवार में एकत्रित होकर रजत दर्पण बनाती है|

CH3CHO + 2[Ag(NH3)2]OH ----> CH3COONH4 + 2Ag + 3NH3 + H2O

👉 फेहलिंग विलयन के साथ अभिक्रिया-
फेहलिंग विलयन क्यूप्रिक आयन (Cu++) का टारट्रेट आयन के साथ बने संकर यौगिक का क्षारीय विलयन होता है| इसे बनाने के लिए फेहलिंग विलयन A(CuSO4 का जलीय विलयन) को फेहलिंग विलयन B (NaOH तथा रोशैल  लवण अर्थात सोडियम पोटैशियम टारट्रेट विलयन) में तब तक मिलाते हैं जब तक गहरा नीला विलयन प्राप्त नहीं हो जाता है|
    जब किसी एलिफेटिक एल्डिहाइड को फेहलिंग विलयन के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड अपने संगत कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि फेहलिंग विलयन में उपस्थित क्यूप्रिक आयन (Cu++) का      क्यूप्रस आयन (Cu+) मे अपचयन हो जाता है, जो लाल ऑक्साइड(Cu2O) के रूप में अवक्षेपित हो जाता है|

RCHO + 2Cu++  + 5OH-  ------> RCOO-  + Cu2O + 3H2O 
(b) कीटोन का ऑक्सीकरण-
कीटोन में कार्बोनिल समूह से संबंधित कोई हाइड्रोजन परमाणु संलग्नित नहीं होता है इसलिए कीटोन कठिनता से ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन तथा बेनेडिक्ट विलयन को अपचयित नहीं करते हैं|
          कीटोन प्रबल ऑक्सीकारकों जैसे- HNO3, KMnO4, K2Cr2O7 आदि के द्वारा विशेष परिस्थिति में ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन के ऑक्सीकरण में कार्बोनिल समूह के किसी एक ओर स्थित अल्फा कार्बन तथा कार्बोनिल कार्बन के बीच कार्बन- कार्बन बंध टूट जाता है जिसके कारण मूल कीटोन की तुलना में कम कार्बन परमाणु युक्त कार्बोक्सिलिक अम्लों का मिश्रण प्राप्त होता है जैसे-
                          [O]
CH3COCH3 ---------------> HCOOH + CH3COOH 

(2) सोडियम हाइपोहैलाइट के साथ ऑक्सीकरण  (हैलोफॉर्म अभिक्रिया)-
एल्डिहाइड और कीटोन,जिनमे CH3-CO- समूह पाया जाता है, सोडियम हाइपोहैलाइट(NaOX) के द्वारा भी ऑक्सीकृत होकर हैलोफॉर्म तथा कार्बोक्सिलिक  अम्ल का लवण देते हैं| यह हैलोफॉर्म अभिक्रिया कहलाती है |
R-CO-CH3 + 3NaOX ------> R-CO-CX3 + 3NaOH 

R-CO-CX3 + NaOH ------> CHX3 + R-COONa 
जैसे -
CH3-CO-CH3 + 3NaOCl ------> CH3-CO-CCl3 + 3NaOH 

CH3-CO-CCl3 + NaOH ------> CHCl3 + CH3-COONa 
👉 जब अभिक्रिया सोडियम हाइपोआयोडाइट के द्वारा होती है तो बसंती पीला आयोड़ोंफार्म अवक्षेप के रूप में प्राप्त होता है| इस अभिक्रिया को आयोड़ोंफार्म परीक्षण कहा जाता है|

(E) एल्फा - H के कारण होने वाली अभिक्रियाएं-

(1) ऐल्डॉल संघनन -
एल्डिहाइड और कीटोन जिनमें कम से कम एक एल्फा- हाइड्रोजन परमाणु पाया जाता है,तनु क्षार जैसे- NaOH, Ba(OH)2 आदि की उपस्थिति में संघनन कर बीटा- हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड या कीटोन देते हैं| चूँकि बीटा-हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड में एल्डिहाइड तथा एल्कोहल दोनों समूह पाए जाते हैं इसलिए यह सामान्यतः ऐल्डॉल कहलाते हैं| अतः यह  अभिक्रिया एल्डोल  संघनन कहलाती है|
 
👉यदि दो कीटोन आपस मे संघनन करे तो भी ऐल्डॉल बनते हैं |
(2) क्रॉस ऐल्डॉल संघनन -
यदि ऐल्डॉल संघनन अल्फा- हाइड्रोजन युक्त भिन्न एल्डिहाइड या भिन्न कीटोन या एक एल्डिहाइड तथा एक कीटोन के अणुओं के बीच होता है तो इस अभिक्रिया को क्रॉस एल्डोल संघनन या मिश्रित एल्डोल  संघनन कहा जाता है|
(E) अन्य अभिक्रियाएं-

(1) कैनिजारो अभिक्रिया-
यह अभिक्रिया वे एल्डिहाइड देते हैं जिनमें अल्फा- हाइड्रोजन परमाणु नहीं पाया जाता है, जैसे- फॉर्मेल्डिहाइड बेंजेल्डिहाइड आदि|
   जब अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड को सोडियम या पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के सांद्र विलयन के साथ गर्म किया जाता है तब विअनुपातीकरण के फल स्वरुप स्वतः ऑक्सीकरण- अपचयन हो जाता है| अभिक्रिया में एल्डिहाइड के दो अणु भाग लेते हैं| इनमें से एक कार्बोक्सिलिक अम्ल मे ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि दूसरा एल्कोहल में अपचयित हो जाता है| अभिक्रिया में बना कार्बोक्सिलिक अम्ल क्षार के साथ संयोग कर लवण बनाता है| अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड का एक साथ ऑक्सीकरण तथा अपचयन कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है|
जैसे -
                          सांद्र NaOH 
HCHO + HCHO ---------------> CH3OH + HCOONa 


                                     सांद्र NaOH 
C6H5CHO + C6H5CHO --------------->C6H5CH2OH + C6H5COONa 

(2) क्रॉस्ड कैनिजारो अभिक्रिया-
जब अल्फा-H  रहित दो भिन्न-भिन्न एल्डिहाइड के बीच कैनिजारो अभिक्रिया होती है तब वह क्रॉस्ड  कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है | जैसे-

                                  सांद्र NaOH 
C6H5CHO + HCHO --------------->C6H5CH2OH + HCOONa 

(3) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
ऐरोमेटिक एल्डिहाइड का -CHO समूह मेटा निर्देशक(m-) होता है| अतः यह इलेक्ट्रॉनरागी  को मेटा स्थिति पर प्रतिस्थापन अभिक्रिया कराता है|

Tuesday, September 15, 2020

ऐल्डिहाइड व कीटोन के भौतिक गुण (Physical proerties of aldehydes and ketones )

ऐल्डिहाइड व कीटोन के भौतिक गुण (Physical proerties of aldehydes and ketones )

ऐल्डिहाइड व कीटोन के कुछ महत्वपूर्ण भौतिक गुण निम्न है-
(1) भौतिक अवस्था -
फॉर्मेल्डिहाइड साधारण ताप पर गैस होता है जबकि एसिटेल्डिहाइड द्रव होता है| इनके अतिरिक्त C11 तक के अन्य सभी एल्डिहाइड रंगहीन द्रव होते हैं, जबकि उच्च सदस्य ठोस होते हैं|
       C11 तक के सभी कीटोन रंगहीन द्रव होते हैं, जबकि उच्च सदस्य ठोस होते हैं|

(2) गंध -
निम्न एल्डिहाइड की अरुचिकर गंध होती है परंतु अणुभार बढ़ने के साथ-साथ गंध रुचिकर होती जाती है| कीटोन की सामान्यत: रुचिकर गंध होती है| उच्च कीटोन  की गंध इतनी रुचिकर होती है कि इनमें से कुछ कीटोन का प्रयोग गंध द्रव्य के रूप में किया जाता है|

(3) ध्रुवीय प्रकृति-
एल्डिहाइड तथा कीटोन में उपस्थित कार्बोनिल समूह ध्रुवीय होता है| इसलिए एल्डिहाइड व कीटोन ध्रुवीय यौगिक होते हैं|

(4) विलेयता-
चार कार्बन परमाणु तक के निम्न एल्डिहाइड तथा कीटोन जल में विलेय होते हैं| कार्बोनिल समूह से लगे एल्किल समूह का आकार बढ़ने के साथ-साथ इनकी जल में विलेयता  तीव्रता से घटती है| 5 या अधिक कार्बन परमाणु युक्त एल्डिहाइड व कीटोन जल में या तो बहुत कम विलेय होते हैं या अविलेय होते हैं|
          निम्न एल्डिहाइड तथा कीटोंन की जल में विलेयता का कारण जल के अणुओं के साथ इन यौगिकों का हाइड्रोजन बंध बनाना है| प्रकृति में ध्रुवीय होने के कारण निम्न एल्डिहाइड व कीटोन जल के साथ हाइड्रोजन बंध बनाते हैं तथा विलेय हो जाते हैं|

(5) क्वथनांक-
एल्डिहाइड और कीटोन के क्वथनांक तुलनात्मक अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन तथा इथर से अधिक होते हैं| इसका कारण भी पुनः एल्डिहाइड तथा कीटोन में उपस्थित कार्बोनिल समूह की ध्रुवीय प्रकृति है|
          एल्डिहाइड तथा कीटोन में हाइड्रोजन परमाणु सीधे कार्बन परमाणुओं से संबंधित होता है न कि ऑक्सीजन परमाणु से| इसलिए एल्डिहाइड व कीटोन अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंध बनाने में असमर्थ होते हैं| क्योंकि द्विध्रुव- द्विध्रुव अंतः क्रिया अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंध से दुर्बल होती है, इसलिए एल्डिहाइड तथा कीटोन के क्वथनांक उनके संगत एल्कोहल तथा कार्बोक्सिलिक अम्लों से बहुत कम होते हैं|

ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड और कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड और कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

(A) ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड का निर्माण-
ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड के निर्माण की निम्न विधियाँ हैं -
(1) ऐल्किल बेंजीन के ऑक्सीकरण द्वारा -

👉एसिटिक ऐनहाइड्राइड की उपस्थिति में CrO3 के द्वारा ऑक्सीकरण -

एल्किल बेंजीन का एसिटिक ऐनहाइड्राइड की उपस्थिति में CrO3 के द्वारा ऑक्सीकरण से ऐरोमैटिक एल्डीहाइड प्राप्त होते हैं |
👉 CCl4 की उपस्थिति में CrO2Cl2 के द्वारा ऑक्सीकरण -
 बैन्जेल्डीहाइड को CCl4 या CS2 में CrO2Cl2 के द्वारा टॉलूईन के ऑक्सीकरण द्वारा बनाया जा सकता है|
यह अभिक्रिया इटार्ड अभिक्रिया कहलाती है |

(2) रीमर - टीमन अभिक्रिया द्वारा -
यह विधि फिनॉलिक एल्डिहाइड के बनाने के लिए प्रयोग की जाती है तथा इसमें किसी फिनॉल की अभिक्रिया क्लोरोफॉर्म के साथ जलीय क्षार  की उपस्थिति में 340 K पर कराई जाती है इसके पश्चात तनु अम्ल के द्वारा जल अपघटन कराया जाता है जैसे-
(3) गैटरमैन- कोच अभिक्रिया द्वारा -
जब बेंजीन की CO तथा HCl गैस के साथ निर्जल AlCl3 या CuCl  की उपस्थिति में अभिक्रिया कराई जाती है तो बेन्ज़ेलडिहाइड प्राप्त होता है|
(B) ऐरोमेटिक कीटोन का निर्माण-
ऐरोमेटिक कीटोन  को सामान्यतः फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया के द्वारा बनाया जाता है| इसमें एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन की अभिक्रिया निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में किसी एसिड क्लोराइड के साथ कराते हैं|