गैस अणुओं को अधिशोषक सतह से आबद्ध करने वाले बलों की प्रकृति के आधार पर गैसों के ठोस सतहों पर अधिशोषण को निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है-
(A) भौतिक अधिशोषण(Physical adsorption)-
यदि अधिशोषण प्रक्रिया में निहित अणुओं को सतह से आबद्ध करने वाले बल दुर्बल वांडर वाल बल हैं तो अधिशोषण को भौतिक अधिशोषण या वांडर वाल अधिशोषण कहा जाता है|
भौतिक अधिशोषण के प्रमुख लक्षण निम्न हैं-
(1) अविशिष्ट प्रकृति-
भौतिक अधिशोषण की प्रकृति विशिष्ट नहीं होती है|
(2) उत्क्रमणीय प्रकृति-
इस प्रकार का अधिशोषण प्रायः उत्क्रमणीय होता है|
(3) अधिशोषण की ऊष्मा-
इस प्रकार के अधिशोषण में अधिशोषण ऊष्मा का मान काफी कम होता है| यह मान 40 kj/mol के क्रम का होता है|
(4) बहु परतीय प्रकृति-
विशिष्ट प्रकृति के कारण भौतिक अधिशोषण बहु परतीय होता है|
(5) ताप का प्रभाव-
ताप में वृद्धि करने पर भौतिक अधिशोषण कम हो जाता है|
(6) दाब का प्रभाव-
गैस के दाब में वृद्धि करने पर भौतिक अधिशोषण में वृद्धि होती है|
(B) रासायनिक अधिशोषण या रसोवशोषण(Chemical adsorption or chemisorption)-
जब गैस के अणु अधिशोषक की सतह से प्रबल संयोजकता बंध बलों द्वारा आबद्ध होते हैं तो इस प्रकार के अधिशोषण को रासायनिक अधिशोषण या रसोवशोषण कहा जाता है|
रासायनिक अधिशोषण के प्रमुख लक्षण निम्न है-
(1) अत्यधिक विशिष्ट प्रकृति-
रासायनिक अधिशोषण की प्रकृति अत्यधिक विशिष्ट होती है|
(2) अनुत्क्रमणीय प्रकृति-
चूँकि रासायनिक अधिशोषण में एक रासायनिक परिवर्तन निहित होता है इसलिए इसकी प्रकृति अधिकतर प्रकरणों में अनुत्क्रमणीय होती है|
(3) अधिशोषण की ऊष्मा-
रासायनिक अधिशोषण भी ऊष्माक्षेपी होता है और इसमें निहित अधिशोषण ऊष्मा का मान भौतिक अधिशोषण की तुलना में काफी अधिक, लगभग 400 kj/mol के क्रम का होता है|
(4) एकल परतीय प्रकृति-
रासायनिक अधिशोषण एकल परतीय प्रकृति का होता है|
(5) ताप का प्रभाव-
ऊष्माक्षेपी प्रकृति के कारण रासायनिक अधिशोषण का ताप में वृद्धि करने पर पहले वृद्धि होता है और इसके पश्चात यह कम होता जाता है|
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