Advance Chemistry : कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुण(Chemical properties of Carboxylic acids)

Thursday, September 24, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुण(Chemical properties of Carboxylic acids)

कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुण(Chemical properties of Carboxylic acids)
कार्बोक्सिलिक अम्लों के रासायनिक गुणों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
(A) कार्बोक्सिल समूह के -H परमाणु के कारण अभिक्रियाएं 
(B) कार्बोक्सिल समूह के -OH परमाणु के कारण अभिक्रियाएं 
(C) सम्पूर्ण -COOH समूह की अभिक्रियाएं 
(D) अम्ल के एल्किल समूह की अभिक्रियाएं 
(E) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों मे उपस्थित बेंजीन नाभिक की अभिक्रियाएं 

(A) कार्बोक्सिल समूह के -H परमाणु के कारण अभिक्रियाएं -
कार्बोक्सिल समूह का -H परमाणु कार्बोक्सिलिक अम्लों को विशिष्ट अम्लीय गुण प्रदान करता है| कार्बोक्सिलिक अम्ल ऐल्कोहल तथा फिनॉल से अधिक अम्लीय होते हैं परंतु यह खनिज अम्ल जैसे- HCl, H2SO4, HNO3 आदि से कम अम्लीय होते हैं| 
(1) कार्बोक्सिलिक अम्लों की अम्लीय प्रकृति -
कार्बोक्सिलिक अम्ल आयनित होकर निम्न प्रकार कार्बोक्सीलेट आयन तथा हाइड्रोनियम आयन देते हैं -
RCOOH + H2O ------> RCOO´   + H3O+
विलयन मे हाइड्रोनियम आयन की उपस्थिति के कारण ये अम्लीय गुण प्रदर्शित करते हैं |
      कार्बोक्सिलिक अम्लों की अम्लीय प्रकृति विशेष रूप से अनुनाद के द्वारा आवेश के विस्थानीकरण के कारण होती है| किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल  को निम्न दो रूपों का अनुनाद संकर माना जा सकता है-

कार्बोक्सिलिक अम्लों की प्रबलता पर प्रतिस्थापियों का प्रभाव -
कार्बोक्सिलिक अम्ल की प्रबलता H+ आयन मुक्त करने की सुगमता तथा कार्बोक्सीलेट आयन के स्थायित्व पर निर्भर करती है| अतः वह प्रतिस्थापी,जो  H+ आयन के मुक्त होने को सरल बना देते हैं तथा कार्बोक्सीलेट आयन के स्थायित्व की वृद्धि करने में सहायता करता है, अम्ल की प्रबलता में वृद्धि करता है| इसके विपरीत वह प्रतिस्थापी जो H+ आयन के मुक्त करने को कठिन बना देता है वह अम्ल की प्रबलता को कम करता है|
(1) इलेक्ट्रॉन निर्गत करने वाले प्रतिस्थापी की उपस्थिति अम्ल की प्रबलता को कम करती है|
जैसे - एल्किल समूह 
              O->-H 
               |
CH3-->--C=O 
अम्लों की प्रबलता का घटता क्रम निम्न प्रकार है-
HCOOH > CH3COOH >
CH3CH2COOH >(CH3)2CHCOOH 

(2) इलेक्ट्रॉन खींचने वाले प्रतिस्थापी की उपस्थिति अम्ल की प्रबलता में वृद्धि करते हैं|
जैसे - हैलोजन, -CN, -NO2 आदि 
                            O-<-H 
                             |
       Cl-<-CH2--<--C=O 
अम्लों की प्रबलता का घटता क्रम निम्न प्रकार है-
CCl3COOH >
CHCl2COOH > CH2ClCOOH 

  (2) धातुओं के साथ क्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल  सक्रिय धातुओं जैसे- Na, K, Mg, आदि के साथ क्रिया कर लवण बनाते हैं तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं-             
          
2CH3COOH + Na ----> 2CH3COONa + H2 
(3) क्षारों के साथ क्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल क्षारों  के साथ क्रिया करके लवण व जल बनाते हैं|
CH3COOH + NaOH  ----> CH3COONa + H2O 
(3) कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया-
कार्बोक्सिलिक अम्ल कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट को अपघटित कर देते हैं तथा CO2 गैस बुदबुदाहट के साथ निकलती है|
 2CH3COOH + Na2CO3 ----> 2CH3COONa + H2O + CO2 

 CH3COOH + NaHCO3 ----> CH3COONa + H2O + CO2
 
(B) कार्बोक्सिल समूह के -OH परमाणु के कारण अभिक्रियाएं-

(1) PCl5 के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड व फास्फोरस ऑक्सीक्लोराइड का निर्माण होता है|

CH3COOH + PCl5 ----> CH3COCl + POCl3 + HCl 
(2) PCl3 के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड व फास्फोरस एसिड  का निर्माण होता है|

CH3COOH + PCl3 ----> CH3COCl + H3PO3 

(3) थायोनिल क्लोराइड  के साथ क्रिया -
एसिड क्लोराइड, सल्फर डाइऑक्साइड व HCl  का निर्माण होता है|

CH3COOH + SOCl2 ----> CH3COCl + SO2 + HCl 

(4) एल्कोहॉल  के साथ क्रिया -
जब इनको ऐल्कोहल के साथ सांद्र H2SO4 या शुष्क HCl  गैस की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तब एस्टर प्राप्त होते हैं यह अभिक्रिया एस्टरीकरण कहलातीहै|
CH3COOH + C2H5OH  ----> CH3COOC2H5  + H2O 
(5) ऐसिड ऐनहाइड्राइड का निर्माण-
जब कार्बोक्सिलिक को प्रबल निर्जलीकारक जैसे- P2O5 की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तब संगत एसिड ऐनहाइड्राइड प्राप्त होते हैं| निर्जलीकरण में अम्ल के दो अणुओं से जल के एक अणु का निष्कासन होता है|
                       P2O5/ गर्म 
2CH3COOH -------------------> (CH3CO)2O  +  H2O 


(C) सम्पूर्ण -COOH समूह की अभिक्रियाएं-

(1) विकार्बोक्सीलीकरण-
कार्बोक्सिल  समूह से CO2 का निष्कासन विकार्बोक्सीलिकरण कहलाता है|
👉 जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल के सोडियम लवण को सोडा लाइम(NaOH+CaO) के साथ गर्म किया जाता है तब अम्ल के विकार्बोक्सीलीकरण के फलस्वरूप एक एल्केन या एरिन प्राप्त होता है जिसमें मूल अम्ल की अपेक्षा एक कार्बन परमाणु कम होता है|
                                 CaO 
RCOONa + NaOH ----------> R-H + Na2CO3 

(2) अपचयन -
कार्बोक्सिलिक अम्लों को निम्न दो प्रकार से अपचयित किया जा सकता है-
(a) आंशिक अपचयन-
जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल को LiAlH4 या हाइड्रोजन के साथ अपचयित किया जाता है तब आंशिक अपचयन के फल स्वरुप एक ऐल्कोहल प्राप्त होता है|
                               LiAlH4
CH3COOH + 4H2 -----------> CH3CH2OH + H2O 
(b) संपूर्ण अपचयन-
जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल को HI  या लाल फास्फोरस के साथ अपचयित किया जाता है तब सम्पूर्ण अपचयन के फल स्वरुप समान कार्बन परमाणु युक्त एल्केन  प्राप्त होता है|
                               Red P 
CH3COOH + 6HI  -----------> CH3CH3 + 2H2O + 3I2 

(D) अम्ल के एल्किल समूह की अभिक्रियाएं -
(1) हैलोजनीकरण-
कार्बोक्सिलिक अम्ल क्लोरीन या ब्रोमीन के साथ फास्फोरस की अल्प मात्रा की उपस्थिति में क्रिया कर ऐल्फा हैलोजनीकृत कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं| यह अभिक्रिया हैल-वोलहार्ड जेलेंस्की(HVZ) अभिक्रिया कहलाती है|
                     Cl2,Red P 
CH3COOH -----------------> 
                      (-HCl)
CH2ClCOOH --------------> CHCl2COOH -----------------> CCl3COOH  

(E) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों मे उपस्थित बेंजीन नाभिक की अभिक्रियाएं -
बेंजीन नाभिक की उपस्थिति के कारण एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाये देते हैं| कार्बोक्सिल समूह एक इलेक्ट्रॉन खींचने वाला समूह है तथा मेटा निर्देशक होता है| अतः इन अम्लों  में इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन मेटा स्थान पर होता है|
(1) हैलोजनीकरण-
बेंजोइक अम्ल क्लोरीन या ब्रोमीन से क्रिया कर मेटा व्युत्पन्न बनाता है|
(2) नाइट्रीकरण-
बेंजोइक अम्ल सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में सांद्र HNO3 के साथ क्रिया कर मेटा स्थान पर नाइट्रीकरण क्रिया प्रदर्शित करता है|
(3) सल्फोनीकरण-
सधूम्र H2SO4 के साथ क्रिया कर बेंजोइक अम्ल सल्फोनीकरण के फल- स्वरुप मेटा सल्फोबेंजोइक अम्ल देता है|

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