Advance Chemistry

Saturday, December 26, 2020

मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन (Measurement of standard electrode potential)

मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन (Measurement of standard electrode potential)
किसी एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव को मापने के लिए उसे एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़कर एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण किया जाता है और दोनों इलेक्ट्रोडो के मध्य के विभांतर को मापा जाता है| चूँकि मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड का इलेक्ट्रोड विभव 0 माना जाता है| अतः मापा गया विभवांतर ही प्रयुक्त एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव के संख्यात्मक मान के बराबर होता है|
         विभवांतर को बाह्य परिपथ में जुड़े वोल्टमीटर या विभवमापी से माप लिया जाता है| मापा गया मान ही प्रयुक्त अर्द्ध सेल के विभव के संख्यात्मक मान के बराबर होता है, क्योंकि परिपाटी के अनुसार मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के विभव को 0 माना जाता है|
     उपरोक्त विधि से मापे गए इलेक्ट्रोड के चिन्ह (+या -) को विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा सुनिश्चित कर निर्धारित किया जा सकता है| एक गैलवेनिक सेल में इलेक्ट्रॉन एनोड (ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड) से कैथोड (अपचयन इलेक्ट्रोड) की ओर गति करते हैं| विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत मानी जाती है| मानक अवस्था में एक गेलवेनिक सेल का एनोड तथा कैथोड के मध्य स्थित विभवांतर को E°cell से निरूपित किया जाता है तथा इसे निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
    E°cell = E°cathode - E°anode 
 जहां E°cathode तथा E°anode क्रमशः कैथोड तथा एनोड के मानक अपचयन विभव हैं|
जैसे -
Zn2+/Zn इलेक्ट्रोड के मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
जब 1mol/L सांद्रण के Zn2+ आयन  विलयन में आंशिक रूप से डूबी एक Zn छड़ से निर्मित इलेक्ट्रोड को एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़ा जाता है तो विद्युत धारा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड से Zn  इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होती है तथा वोल्टमीटर 0.76 V के विभवांतर को इंगित करता है| स्पष्ट है कि इस सैल में  इलेक्ट्रॉन Zn इलेक्ट्रोड से हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं| अतः इस सेल में जिंक इलेक्ट्रोड एनोड है तथा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड कैथोड है| अतः, 
  E°cell = E°cathode - E°anode 
या, 0. 76 = E°H+/1/2H2 - E°Zn2+/Zn 
या, 0.76 = 0 - E°Zn2+/Zn 
या, E°Zn2+/Zn = -0. 76
इस प्रकार Zn2+/Zn इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव ऋणात्मक है तथा इसका मान -0.76V  है|

Cu2+/Cu इलेक्ट्रोड के मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
जब 1mol/L सांद्रण के Cu2+ आयन  विलयन में आंशिक रूप से डूबी एक Cu  छड़ से निर्मित इलेक्ट्रोड को एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़ा जाता है तो विद्युत धारा कॉपर इलेक्ट्रोड से हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होती है तथा वोल्टमीटर 0.34 V के विभवांतर को इंगित करता है| स्पष्ट है कि इस सैल में  इलेक्ट्रॉन H इलेक्ट्रोड से Cu  इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं| अतः इस सेल में H इलेक्ट्रोड एनोड है तथा Cu  इलेक्ट्रोड कैथोड है| अतः, 
  E°cell = E°cathode - E°anode 
या, 0.34 = E°Cu2+/Cu -E°H+/1/2H2 
या, 0.34 = E°Cu2+/Cu - 0 
या, E°Cu2+/Cu = +0.34
इस प्रकार Cu2+/Cu इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव धनात्मक है तथा इसका मान +0.34V  है|



मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (Standard Hydrogen Electrode)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (Standard Hydrogen Electrode)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को प्राप्त करने के लिए शुद्ध हाइड्रोजन गैस को 1 वायुमंडलीय दाब पर 1mol/L  सांद्रण के एक H+ आयन विलयन में प्लैटिनीकृत प्लैटिनम पर्णिका के संपर्क में प्रवाहित किया जाता है| एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को निम्न प्रकार से निरूपित किया जाता है-
Pt,H2(g)(1atm) / H+(1mol/L)
 मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड एक एनोड तथा एक कैथोड दोनों की भांति व्यवहार कर सकता है| संबंधित अर्द्ध सेल अभिक्रियाएं निम्न हैं-
 जब इलेक्ट्रोड एनोड की भांति कार्य करता है, 
1/2 H2(g)----> H+(aq) + e´
       E°1/2 H2/H+
जब इलेक्ट्रोड कैथोड की भांति कार्य करता है, 
H+(aq) + e´----> 1/2 H2(g)
       E°H+/1/2 H2
परिपाटी के अनुसार एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के विभव को 0 माना जाता है| इस प्रकार, 
E°1/2 H2/H+ = E°H+/1/2 H2 = 0

एक मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड में एक छोटी प्लैटिनम पर्णिका का प्रयोग किया जाता है| हाइड्रोजन गैस को अवशोषित करने के लिए इस पर प्लैटिनम ब्लैक की एक परत चढ़ा दी जाती है| यह पर्णिका एक प्लैटिनम के तार से जुड़ी रहती है जिसके दूसरे सिरे को एक कांच की नली में सील कर दिया जाता है| कांच की नली में थोड़ा सा पारा भर दिया जाता है| तांबे के एक तार के एक सिरे को पारे में डूबा दिया जाता है| इस तार के दूसरे सिरे का उपयोग विद्युत संपर्क के लिए किया जाता है| कांच की नली को एक अन्य कांच की नली में स्थिर कर दिया जाता है| यह नली तली में खुली होती है| इस संपूर्ण निकाय को एक बड़े कांच के बीकर में रखें 1M HCl  विलयन में रखा जाता है| बाह्य नली से हाइड्रोजन गैस को 1 वायुमंडलीय दाब पर प्रवाहित किया जाता है, जो विलयन में बुलबुलों के रूप में विसरित होती रहती है| इस गैस का एक भाग प्लैटिनिकृत इलेक्ट्रोड द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है| शेष गैस नली के निम्न भाग में बने छिद्रों से बाहर निकल जाती है|
     मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को संक्षेप में SHE ( Standard hydrogen electrode) या NHE (Normal hydrogen electrode)  के रूप में व्यक्त किया जाता है|

Wednesday, December 23, 2020

मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential)

मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential) 
किसी इलेक्ट्रोड विभव को उस समय मानक इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है जबकि निम्न शर्तों का पूर्ण रुप से पालन हो-
(1)  इलेक्ट्रोड निकाय का ताप 298 K  (25°C) हो|
(2) इलेक्ट्रोड निकाय में उपस्थित विलयन का सांद्रण एक मोल प्रति लीटर(1mol/L) हो|
(3) यदि इलेक्ट्रोड निकाय में किसी गैस का प्रयोग किया गया है तो उसका दाब एक वायुमंडल (1atm) हो|
         मानक इलेक्ट्रोड विभव को E° से निरूपित किया जाता है| जब मानक अवस्थाओं में एक इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा विभव उत्पन्न होता है तो उसे मानक ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है तथा इसे E°oxi या E°M/Mn+ से निरूपित किया जाता है| इसी प्रकार मानक अवस्थाओं में अपचयन की प्रक्रिया से उत्पन्न विभव को मानक अपचयन विभव कहा जाता है तथा इसे E°red या E°Mn+/M  से निरूपित किया जाता है| एक इलेक्ट्रोड विशेष के लिए इन दोनों प्रकार के विभव के संख्यात्मक मान समान होते हैं लेकिन उनके चिन्ह विपरीत होते हैं अर्थात 
E°M/Mn+ =   -E°Mn+/M
जैसे, E°Zn/Zn2+ =   -E°Zn2+/Zn 
I.U.P.A.C. के अनुसार पद मानक विभव का प्रयोग अपचयन अभिक्रियाओं के लिए किया जाना चाहिए| इसलिए पद मानक विभव या मानक इलेक्ट्रोड विभव का प्रयोग मानक अपचयन विभव को इंगित करने के लिए किया जाता है|
मानक इलेक्ट्रोड विभव का मापन-
एक एकल इलेक्ट्रोड पर या तो कोई ऑक्सीकरण या अपचयन अभिक्रिया संपन्न होती है जो उसे विभव प्रदान करती है| चूँकि ऑक्सीकरण तथा अपचयन अभिक्रियाएं एक दूसरे के पूरक है| अतः किसी एकल इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रोड विभव का निरपेक्ष मान मापना संभव नहीं है| लेकिन दो इलेक्ट्रोडो के मध्य स्थित विभवांतर को आसानी से मापा जा सकता है| अतः किसी एकल इलेक्ट्रोड के विभव को केवल एक मानक संदर्भ इलेक्ट्रोड के सापेक्ष ही मापा जा सकता है| मानक संदर्भ इलेक्ट्रोड के रूप में मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है और उसके सापेक्ष ही अन्य इलेक्ट्रोडो के इलेक्ट्रोड विभव को मापा जाता है|

Sunday, December 20, 2020

इलेक्ट्रोड विभव (Electrode potential )

इलेक्ट्रोड विभव (Electrode potential )
एक विलयन में उपस्थित स्वयं के आयनों के संपर्क में स्थित एक इलेक्ट्रोड की इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की या इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने की प्रवृत्ति को उस इलेक्ट्रोड का इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है|
       जब एक धातु को उसके स्वयं के आयनों के संपर्क में रखा जाता है तो उसमें प्रायः इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की या ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है| माना कि एक धातु M अपने आयनों Mn+ के संपर्क में है| इस प्रकरण में निम्न तीन संभावनाएं हो सकती हैं-
संभावना 1- एक धातु आयन, Mn+ इलेक्ट्रोड से टकराये और किसी में कोई परिवर्तन न हो, अर्थात इलेक्ट्रोड पर न तो ऑक्सीकरण और न ही अपचयन अभिक्रियाएं संपन्न होती हैंं तो उस पर कोई विभव उत्पन्न नहीं होता है| उस इलेक्ट्रोड को शून्य इलेक्ट्रोड या नल इलेक्ट्रोड कहा जाता है| 
संभावना 2 - इलेक्ट्रोड पर उपस्थित एक धातु परमाणु n इलेक्ट्रॉनों को त्यागकर Mn+ आयन के रूप में विलयन में चला जाए अर्थात धातु परमाणु ऑक्सीकृत हो जाए|
M(s) ----> Mn+(aq) + ne´
इस प्रकरण में इलेक्ट्रोड पर एक ऋणात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है| इस प्रकार उत्पन्न विभव को ऑक्सीकरण विभव कहा जाता है तथा इलेक्ट्रोड निकाय को एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड कहा जाता है|
ऑक्सीकरण विभव को Eoxi या EM/Mn+ से प्रदर्शित किया जाता है|
 संभावना 3 - एक धातु आयन इलेक्ट्रोड से टकराकर उससे n इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करें तथा एक उदासीन धातु परमाणु M  में परिवर्तित हो जाए अर्थात धातु आयन अपचयित हो जाए|
Mn+(aq) + ne´------> M(s)
       इस प्रकरण में इलेक्ट्रोड पर एक धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है| इस प्रकार उत्पन्न विभव को अपचयन विभव कहा जाता है तथा इलेक्ट्रोड निकाय को एक अपचयन इलेक्ट्रोड कहा जाता है|
        अपचयन विभव को Ered या EMn+/M से प्रदर्शित किया जाता है|

सेल अभिक्रिया एवं गिब्स मुक्त ऊर्जा (Cell reaction and Gibbs free energy )

सेल अभिक्रिया एवं गिब्स मुक्त ऊर्जा (Cell reaction and Gibbs free energy )-
एक गैल्वेनिक सेल में विद्युत धारा की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी रासायनिक अभिक्रिया एक रेडॉक्स अभिक्रिया होती है| इस रेडॉक्स अभिक्रिया को ही उस सेल की सेल अभिक्रिया कहा जाता है|
 जैसे -
इस सेल में 
ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल अभिक्रिया 
Zn ----> Zn2+  +  2e´
अपचयन अर्द्ध सेल अभिक्रिया 
Cu2+  +  2e´ ---->  Cu 
इस सेल की सेल अभिक्रिया निम्न होगी- 
Zn + Cu2+  ----> Zn2+  +  Cu 
उपरोक्त रेडॉक्स अभिक्रिया ही डेनियल सेल द्वारा विद्युत धारा की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी है|
 
एक गैल्वेनिक सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है| कार्य करने की दशा में अर्थात सेल अभिक्रिया के संपन्न होने की दशा में सेल विद्युत आवेश को बाह्य परिपथ में प्रेषित कर एक विद्युत कार्य संपन्न करता है| सेल में किया गया वैद्युत कार्य सेल की मुक्त ऊर्जा में कमी के संगत होता है| सेल अभिक्रिया में निहित मुक्त ऊर्जा परिवर्तन तथा सेल के सेल विभव ( EMF) के मध्य एक निश्चित संबंध है|
 जब सेल उत्क्रमणीय रूप में विद्युत कार्य करता है अर्थात सेल से एक अनंत अल्प विद्युत धारा ली जाती है तो मुक्त ऊर्जा परिवर्तन सेल के द्वारा किए गए वैद्युत कार्य के बराबर होता है| अतः
        ∆rG = w elect
माना कि गैल्वेनिक सेल में संपन्न होने वाली सेल अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉनों के  n मोलों  का स्थानांतरण होता है तथा सेल का सेल विभव(EMF) E है तो
  सेल अभिक्रिया में निहित कुल आवेश = nF 
 जहां F  फैराडे स्थिरांक है|
 अतः सेल द्वारा संपन्न वैद्युत कार्य,
      w elect = आवेश × EMF
या, 
          w elect = -nFEcell
या, 
          ∆rG =  -nFEcell
चूँकि तंत्र द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक माना जाता है|
यदि सेल मानक अवस्थाओं में कार्य कर रहा है तो
        ∆rG° =  -nFE°cell


गैल्वेनिक सेल( Galvanic cell)

गैल्वेनिक सेल ( Galvanic cell)
गैल्वेनिक सेल उस युक्ति को कहा जाता है जिसमें रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है| गैल्वेनिक सेल का निर्माण सर्वप्रथम एलिसांद्रो वोल्टा ने सन 1796 में किया था| इसलिए गैल्वेनिक सेलों को वोल्टाइक सेल भी कहा जाता है| एक गैल्वेनिक सेल स्वयं में संपन्न एक रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरुप विद्युत धारा उत्पन्न करता है| वोल्टा सेल,  डैनियल सेल, लेक्लांशे सेल, शुष्क सेल आदि इस प्रकार के सेलों के कुछ उदाहरण हैं |

एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण -
एक गैल्वेनिक सेल में विद्युत ऊर्जा की उत्पत्ति सदैव एक रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरुप ही होती है| अतः एक उपयुक्त ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड को एक उपयुक्त अपचयन इलेक्ट्रोड के साथ जोड़कर एक गैल्वेनिक सेल का निर्माण किया जा सकता है| दोनों इलेक्ट्रोडों में निहित विलयनों को या तो एक सरंध्र डायाफ्राम के माध्यम से या एक लवण सेतु के माध्यम से परस्पर विद्युत संपर्क में लाया जा सकता है| वाह्य परिपथ में दोनों इलेक्ट्रोडों को एक ऐसी युक्ति से जोड़ दिया जाता है जो विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर सकें|
         ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड पर संपन्न होने वाली ऑक्सीकरण क्रिया के फलस्वरुप इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं| यदि इन इलेक्ट्रॉनों को वहां से न हटाया जाए तो वे इलेक्ट्रोड पर एकत्रित होकर उसे ऋणात्मक विभव प्रदान करते हैं| अपचयन इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया के कारण एक धनात्मक विभव उत्पन्न होता है| जब दोनों इलेक्ट्रोडों को आंतरिक तथा बाह्य परिपथ में जोड़ा जाता है तो इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ में ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड से अपचयन इलेक्ट्रोड की ओर गति करने लगते हैं| इलेक्ट्रॉनों का यह प्रवाह दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य स्थित विभवांतर के कारण होता है| इस प्रकार एक विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है| वह इलेक्ट्रोड जिस पर ऑक्सीकरण प्रक्रिया संपन्न होती है एनोड कहलाता है तथा जिस इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया संपन्न होती है उसे कैथोड कहा जाता है| यह ध्यान देने योग्य बात है कि एक गैल्वेनिक सेल में एनोड की ध्रुवता ऋणात्मक तथा कैथोड की ध्रुवता धनात्मक होती है|
 जैसे-
 यदि एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड Zn/Zn2+ को एक अपचयन इलेक्ट्रोड Cu2+/Cu  के साथ जोड़ दिया जाए तो एक डेनियल सेल प्राप्त होता है|
       ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड(एनोड )  पर Zn परमाणु  Zn2+ आयनों के रूप में (Zn ----> Zn2+   +  2e´) विलयन में प्रवाहित होते हैं जबकि अपचयन इलेक्ट्रोड (कैथोड) पर Cu2+ आयन  Cu परमाणु में परिवर्तित होते हैं (Cu2+  + 2e´ -----> Cu) |
    विभवांतर के कारण Zn छड़ पर मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन धन आवेश युक्त Cu छड़  की ओर गति करते हैं और इस प्रकार बाह्य परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है|
 लवण सेतु तथा इसकी कार्यप्रणाली-
लवण सेतु U  के आकार की एक कांच की नली होती है जिसमें किसी निष्क्रिय विद्युत अपघट्य जैसे- KCl, KNO3, K2SO4 आदि का सांद्र विलयन या इनमें से किसी विद्युत अपघट्य का एगर-एगर तथा जिलेटिन में बना अर्द्ध ठोस विलयन भरा होता है| यहाँ निष्क्रिय विद्युत अपघटन से तात्पर्य एक ऐसे विद्युत अपघट्य से है जो न तो सेल में निहित रेडॉक्स अभिक्रिया में भाग लेता है और न ही दोनों इलेक्ट्रोड में उपस्थित विलयनों से क्रिया करता हो|
    लवण सेतु मुख्य रूप से निम्न दो कार्यों को संपन्न करता है-
(1) यह एक अर्द्ध सेल से दूसरे अर्द्ध सेल में आयनों के परिगमन को सुगम बनाकर विद्युत परिपथ को पूर्ण करता है|
(2)  यह दोनों अर्द्ध सेलों में उपस्थित विलयनों की विद्युतीय उदासीनता को अक्षुण्ण बनाए रखता है|

अर्द्ध सेल की धारणा-
एक गैल्वेनिक सेल को एक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड तथा एक अपचयन इलेक्ट्रोड को जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है| प्रत्येक इलेक्ट्रोड निकाय को एक अर्द्ध सेल कहा जाता है| इस प्रकार एक गैल्वेनिक सेल दो अर्द्ध सेलों से मिलकर बना होता है|
      जिस अर्द्ध सेल में ऑक्सीकरण क्रिया संपन्न होती है उसे ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल या एनोडिक अर्द्ध सेल कहा जाता है तथा जिसमें अपचयन अभिक्रिया संपन्न होती है उसे अपचयन अर्द्ध सेल या कैथोडिक अर्द्ध सेल कहा जाता है|
जैसे -
Zn -----> Zn2+  +  2e´ (ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल )

Cu2+  +  2e´ ---->  Cu (अपचयन अर्द्ध सेल )

एक गैल्वेनिक सेल का निरूपण -
IUPAC के अनुसार एक गैल्वेनिक सेल को निरूपित करने के लिए निम्न परिपाटी का प्रयोग किया जाता है-
(1) एक अर्द्ध सेल को इलेक्ट्रोड की भांति कार्य कर रही धातु के संकेत तथा धातु के संपर्क में स्थित विद्युत अपघट्य के आयन के संकेत के मध्य एक उर्ध्व रेखा खींचकर निरूपित किया जाता है| उर्ध्व रेखा प्रावस्था सीमा को निरूपित करती है| ऑक्सीकरण अर्द्ध सेल को निरूपित करते समय अपचयित अवस्था को बाईं ओर तथा अपचयन अर्द्ध सेल को निरूपित करते समय अपचयित अवस्था को निम्न प्रकार से दायीं ओर लिखा जाता है-
M/Mn+(aq)              Mn+(aq)/M ( Anode)                   (Cathode )   
जैसे -
Zn/Zn2+(aq)         Cu2+(aq)/Cu  (Anode)                   (Cathode ) 

(2) विलयन के मोलर सांद्रण को आयन के सूत्र के पश्चात कोष्ठक में व्यक्त किया जाता है| 
जैसे-  
Zn/Zn2+(c1)         Cu2+(c2)/Cu  

(3) एक गैल्वेनिक सेल को निरूपित करते समय ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड (एनोड) को सदैव बायीं ओर तथा अपचयन इलेक्ट्रोड (कैथोड) को सदैव दायीं ओर लिखा जाता है| दोनों इलेक्ट्रोडों में उपस्थित विलयनों के सीधे संपर्क (एक सरंध्र डायाफ्राम के माध्यम से) को एक उर्ध्व रेखा(|) से तथा दोनों विलयनों के लवण सेतु के माध्यम से संपर्क को दो समानांतर उर्ध्व रेखाओं (||)से निरूपित करते हैं|
 जैसे-
विलयन का सीधा सम्पर्क 
Zn/Zn2+(c1)   |   Cu2+(c2)/Cu  (Anode)                (Cathode ) 
लवण सेतु द्वारा सम्पर्क 
Zn/Zn2+(c1)  ||   Cu2+(c2)/Cu  (Anode)                (Cathode ) 

मोलर चालकता का सांद्रण के साथ परिवर्तन(Variation of Molar conductivity with concentration)

मोलर चालकता का सांद्रण के साथ परिवर्तन(Variation of Molar conductivity with concentration

(A) प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए मोलर चालकता का सांद्रण के साथ परिवर्तन-
एक प्रबल विद्युत अपघट्य (जैसे KCl, HCl आदि) की मोलर चालकता विलयन के सांद्रण में वृद्धि करने पर मंद गति से घटती है|
   विलयन के सांद्रण को कम करने पर (अर्थात तनुता को बढ़ाने पर) एक प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की मोलरता चालकता एक सीमांत मान की ओर अग्रसर होती है| सांद्रण के शून्य की ओर अग्रसर होने की दशा में प्राप्त मोलर चालकता का सीमांत मान को अनंत तनुता पर विलयन की मोलर चालकता कहा जाता है| इसे ^m°° से निरूपित किया जाता है|
     एक प्रबल विद्युत अपघट्य सभी तनुताओं पर लगभग पूर्णरूपेण आयनित होता है| जब किसी प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन के सांद्रण में वृद्धि (अर्थात तनुता में कमी) की जाती है तो प्रति इकाई आयतन में उपस्थित अणुओं की संख्या अधिक हो जाती है| इसके कारण विपरीत आवेश युक्त आयन एक दूसरे से अधिक निकट आ जाते हैं और अधिक अंतरआयनिक आकर्षण का अनुभव करते हैं| इसके फलस्वरुप विलयन की मोलर चालकता कम हो जाती है| यही कारण है कि सांद्रण में वृद्धि करने पर एक प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की मोलर चालकता में अल्प कमी दिखाई देती है| इसके विपरीत विलयन के सांद्रण में कमी (अर्थात तनुता में वृद्धि) करने पर प्रति इकाई आयतन में उपस्थित आयनों की संख्या कम हो जाती है जिससे अंतरआयनिक आकर्षण कम हो जाता है और मोलर चालकता में अल्प वृद्धि प्राप्त होती है| यही कारण है की सांद्रण में कमी (तनुता में वृद्धि) करने पर एक प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की चालकता में अल्प वृद्धि प्राप्त होती है|

(B) दुर्बल विद्युत अपघट्यों के लिए मोलर चालकता का सांद्रण के साथ परिवर्तन-
दुर्बल विद्युत अपघट्य (जैसे- CH3COOH, NH4OH, HCN आदि) विलयन में बहुत कम मात्रा में वियोजित (आयनित) होते हैं| इसलिए समान सांद्रण के एक प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की तुलना में एक दुर्बल विद्युत अपघट्य विलयन में उपस्थित आयनों की संख्या बहुत कम होती है| अतः एक दुर्बल विद्युत अपघट्य विलयन की मोलर चालकता का मान प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की मोलर चालकता के मान से काफी कम पाया जाता है|

कोल्हराऊश का नियम (Kohlrausch's law)-
कोल्हराऊश ने सन 1875 में अनेक प्रबल विद्युत अपघट्यों की अनंत तनुता पर चालकताओं(^m°°) का गहन अध्ययन किया और एक नियम दिया जिसे  कोल्हराऊश का नियम कहा जाता है| इस नियम के अनुसार-
       किसी विद्युत अपघट्य की अनंत तनुता पर चालकता इसके धनायनों तथा ऋणायनों की मोलर चालकताओं के योग के बराबर होती है, यदि प्रत्येक चालकता पद को विद्युत अपघट्य के सूत्र में उपस्थित संगत आयनों की संख्या से गुणा किया जाए|
   यदि किसी विद्युत अपघट्य के धनायनों तथा ऋणायनों की अनंत तनुता पर मोलर चालकताओं को क्रमशः तथा से निरूपित किया जाए तो कोलराउश के नियमानुसार-
जैसे -

Friday, December 18, 2020

विद्युत अपघटनी चालकता का मापन( Measurement of electrolytic conductivity)

विद्युत अपघटनी चालकता का मापन (Measurement of electrolytic conductivity)-
एक विलयन की विद्युत चालकता उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रम के बराबर होती है| अतः किसी विलयन की विद्युत अपघटनी चालकता का मापन उसके प्रतिरोध को मापकर किया जा सकता है| एक विद्युत अपघट्य विलयन के प्रतिरोध को चालकता सेल तथा व्हीटस्टोन सेतु की सहायता से आसानी से मापा जा सकता है|
(a) चालकता सेल तथा सेल स्थिरांक-
किसी विलयन के एक निश्चित आयतन के प्रतिरोध को मापने के लिए एक विशेष प्रकार के सेल का प्रयोग किया जाता है, जिसे चालकता सेल कहा जाता है| यह सेल पायरेक्स कांच का बना होता है तथा इसमें दो प्लैटिनम इलेक्ट्रोड एक दूसरे से एक निश्चित दूरी पर स्थित होते हैं| अनेक प्रकार के चालकता सेल प्रयोग में लाए जाते हैं| एक चालकता सेल में दोनों इलेक्ट्रोड के मध्य की दूरी(l) तथा उनके क्षेत्रफल(A) नियत होते हैं| इसलिए, एक चालकता सेल विशेष के लिए l/A  का मान स्थिर रहता है| इस स्थिर राशि को सेल स्थिरांक कहा जाता है| इस प्रकार,              सेल स्थिरांक = l/A 
 सेल स्थिरांक का मात्रक cm-1 या m-1 हैं|
(b) व्हीटस्टोन सेतु-
इस सेतु की सहायता से किसी तार या विद्युत अपघट्य विलयन के प्रतिरोध को आसानी से मापा जा सकता है| इसमें प्रतिरोध R1,  R2,  R3 तथा X  युक्त चार भुजाएं परस्पर एक गैल्वेनोमीटर(G), एक बैटरी तथा एक कुंजी(K) के द्वारा चित्र में दर्शाए अनुसार एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं| प्रतिरोध R2 परिवर्तनीय होता है जबकि प्रतिरोध X वह अज्ञात प्रतिरोध है जिसका मान मापना है| प्रतिरोध R1 तथा R3 ज्ञात प्रतिरोध हैं|
     कुंजी K  की सहायता से परिपथ को पूर्ण करने के बाद परिवर्तनीय प्रतिरोध R2 को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि शून्य विक्षेप स्थिति प्राप्त हो जाए| यह  वह स्थिति है जबकि गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेप नहीं होता| इस स्थिति में व्हीटस्टोन सेतु सिद्धांत के अनुसार, 
     R1/R2 = X/R3
या,   X = R1R3 / R2
(c) विद्युत अपघटनी चालकता का मापन-
विद्युत अपघटनी चालकता के मापन के लिए चालकता सेल में विद्युत अपघट्य विलयन को भरकर उसे व्हीटस्टोन सेतु से X  प्रतिरोध की जगह पर जोड़ दिया जाता है और बैटरी से धारा प्रवाहित करके व्हीटस्टोन सिद्धांत के अनुसार X  का मान ज्ञात कर लिया जाता है|
    हमें यह पता है कि प्रतिरोध के व्युत्क्रम के बराबर उस विद्युत अपघट्य विलयन की चालकता होती है| अतः विद्युत अपघटन विलयन की चालकता को माप  लिया जाता है|
   विद्युत् चालकता C = 1/X 

Wednesday, December 16, 2020

विद्युत अपघटनी विलयनों का चालकत्व( Electrolytic Conduction )

विद्युत अपघटनी विलयनों का चालकत्व (Electrolytic Conduction )-
किसी चालक से विद्युत धारा के प्रवाह की सहजता को उस चालक की विद्युत चालकता कहा जाता है| किसी विद्युत अपघट्य विलयन से विद्युत धारा के प्रवाह की सहजता को उसकी विद्युत अपघटनी चालकता कहा जाता है|

(1) ओम का नियम(Ohm's law )-
ओम के नियम के अनुसार, एक चालक पर स्थित विभवांतर उससे प्रवाहित होने  वाली विद्युत धारा के समानुपाती होती है| 
यदि किसी चालक पर स्थित विभवांतर (वोल्ट में) V हो तथा विद्युत धारा की शक्ति (एंपियर में) I हो तो ओम के नियम के अनुसार,
              V   {    I
या,  V  = R.I 
जहां, R  एक समानुपाती स्थिरांक है इसे चालक का प्रतिरोध कहा जाता है| इसका मात्रक ओम है|
(2) विशिष्ट प्रतिरोध(Specific resistance )-
किसी चालक का प्रतिरोध R चालक की लम्बाई l के समानुपाती होती है|
      R     {         l 
तथा किसी चालक का प्रतिरोध R चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है|
      R       {     1/A  
अतः, 
      R       {     l/A 
या,  R  = p l/A
जहाँ p(रो) एक नियतांक है| जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है|
यदि l = 1m, तथा A= 1m2,  हो तो 
      R= p 
अतः किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध उस चालक का वह प्रतिरोध होता है जब उस चालक की लम्बाई 1m तथा उसका अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1m2 हो|
 इसका मात्रक ओम मीटर है|

(3) विद्युत चालकता(Electrical conductance ) -
किसी चालक से विद्युत प्रवाहित करने की सहजता को उस चालक की विद्युत चालकता कहा जाता है| इसे चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम के बराबर माना जाता है तथा C से निरूपित किया जाता है| इस प्रकार,
          C = 1/R 
 जहां R चालक का प्रतिरोध है|
विद्युत चालकता का मात्रक ohm-1 है, जिसे mho  के रूप में भी व्यक्त किया जाता है| इसे साइमंस(S) इकाई में भी व्यक्त किया जाता है|
1S = 1ohm-1 = 1 mho 

(4) विशिष्ट चालकता या चालकता(Specific conductivity or conductivity)-
किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उस चालक की विशिष्ट चालकता या केवल चालकता कहा जाता है| इसे ग्रीक अक्षर k(कप्पा) से निरूपित किया जाता है| इस प्रकार,
          k = 1/p 
   जहाँ k=कप्पा तथा p= रो है |
 विशिष्ट चालकता की एक अन्य परिभाषा को निम्न प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है-
      k = 1/p × l/A 
  या, k = C × l/A 
यदि l=1cm तथा A= 1cm2 हो तो, 
        k = C 
 अतः यदि किसी चालक की लंबाई 1cm तथा अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल 1cm2 है तो उसकी विद्युत चालकता को विशिष्ट चालकता कहा जाता है|
विशिष्ट चालकता का मात्रक ohm-1cm-1  या S cm-1 है |

(5) मोलर चालकता( Molar conductivity )- (^m)
किसी विलयन के एक निश्चित आयतन में उपस्थित एक विद्युत अपघट्य पदार्थ के  एक मोल द्वारा उपलब्ध कराए गए आयनों की चालकता शक्ति को मोलर चालकता कहा जाता है| इसे ^m से प्रदर्शित करते हैं|
 मोलर चालकता तथा विशिष्ट चालकता में संबंध-
 मोलर चालकता(^m) तथा विशिष्ट चालकता(k) में संबंध निम्न है-
           ^m = k/Cm 
 जहां, Cm  मोल प्रति इकाई आयतन में विलयन का सांद्रण है|
 यदि विलयन के Vm cm3 में विद्युत अपघट्य पदार्थ का एक मोल घुलित हो तो
      Cm = 1/Vm  mol cm-3
अतः,   ^m = k × Vm 

या, 
  ^m = k ×1000/विलयन की मोलरता 

^m का  मात्रक ohm-1 cm2 mol-1है|

ऑक्सीकरण अपचयन अभिक्रियाएं या रेडॉक्स अभिक्रियाएं (Oxidation-Reduction reaction or Redox reaction)

ऑक्सीकरण अपचयन अभिक्रियाएं या रेडॉक्स अभिक्रियाएं (Oxidation-Reduction reaction or Redox reaction)
जिन अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण तथा अपचयन एक साथ संपन्न होते हैं उन अभिक्रियाओं को रेडॉक्स अभिक्रियाये या ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रियाए कहा जाता है|
 जैसे-
2HgCl2 + SnCl2 ----> Hg2Cl2 + SnCl4
इस अभिक्रिया में HgCl2 का अपचयन हो रहा है जबकि SnCl2 ऑक्सीकृत हो रहा है| इस प्रकार यह एक रेडॉक्स अभिक्रिया है|
ऑक्सीकरण तथा अपचयन की इलेक्ट्रॉनिक संकल्पना-

ऑक्सीकरण-
इस संकल्पना के अनुसार ऑक्सीकरण वह प्रक्रम है जिसमें कोई परमाणु अणु या आयन एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों का त्याग करता है| इलेक्ट्रॉनों का त्याग करने के बाद प्राप्त स्पीशीज में या तो धन आवेश की वृद्धि होती है या ऋण आवेश में कमी होती है|
 जैसे-
H    ---->  H+    +     e´
Cu   ---->  Cu2+    +   2e´
Fe2+    ---->  Fe3+    +   3e´
Sn2+    ---->  Sn4+    +   2e´
Cl´   ---->  Cl   +     e´

अपचयन -
इस संकल्पना के अनुसार अपचयन वह प्रक्रम है जिसमें कोई परमाणु अणु या आयन एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है| इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण  करने के बाद प्राप्त स्पीशीज में या तो धन आवेश की कमी होती है या ऋण आवेश में वृद्धि होती है|
 जैसे-
H+    +     e´ ----->  H 
Cu2+    +   2e´ -----> Cu 
 Fe3+    +   e´ ------> Fe2+
Sn4+    +   2e´ ----> Sn2+
Cl2 + 2e´   ---->  2Cl´


ऑक्सीकरण तथा अपचयन एक साथ संपन्न होते हैं और एक दूसरे के पूरक होते हैं जैसे-
2Mg  +  O2  ----->  2MgO 
इलेक्ट्रॉनिक संकल्पना के अनुसार इस अभिक्रिया में मैग्नीशियम ऑक्सीजन को इलेक्ट्रॉन दे रहा है, जबकि ऑक्सीजन मैग्नीशियम से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर रहा है| अतः मैग्नीशियम का ऑक्सीकरण हो रहा है, जबकि ऑक्सीजन का अपचयन हो रहा है|
Mg  ---->  Mg2+    +   2e´      
2Mg  ---->  2Mg2+    +   4e´

O  + 2e´  -----> O´´
O2  + 4e´  -----> 2O´´
एक रेडॉक्स अभिक्रिया को निम्न प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है-
         वह अभिक्रिया जिसमे एक अभिकारक से किसी दूसरे अभिकारक को इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण किया जाता है ऑक्सीकरण - अपचयन अभिक्रिया या रेडॉक्स अभिक्रिया कहलाती है| 
       जो पदार्थ ऑक्सीकृत होता है वह किसी अन्य पदार्थ को इलेक्ट्रॉन देकर उसे अपचयित होने के लिए बाध्य करता है| अतः स्वयं ऑक्सीकृत होने वाला कोई पदार्थ एक अपचायक की भांति कार्य करता है| इसी प्रकार जो पदार्थ अपचयित होता है वह किसी अन्य पदार्थ से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर उसे ऑक्सीकृत होने के लिए बाध्य करता है इस प्रकार अपचयित होने वाला पदार्थ एक ऑक्सीकारक की भांति कार्य करता है| दूसरे शब्दों में ऑक्सीकारक वह पदार्थ है जो इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है, एवं अपचायक वह पदार्थ है जो इलेक्ट्रॉनों को त्यागता है|

ऑक्सीकरण तथा अपचयन अर्द्धअभिक्रियाएं-
एक रेडॉक्स अभिक्रिया में ऑक्सीकरण तथा अपचयन प्रक्रम एक साथ संपन्न होते हैं| अतः रेडॉक्स अभिक्रिया को व्यक्त करने वाली रासायनिक समीकरण को दो अर्द्धसमीकरणों में विभाजित किया जा सकता है| एक अर्द्धसमीकरण ऑक्सीकरण प्रक्रम को तथा दूसरी अर्द्धसमीकरण अपचयन प्रक्रम को निरूपित करती है| इस प्रकार प्रत्येक समीकरण एक अर्द्धअभिक्रिया को निरूपित करती है|
जैसे -
एक रेडॉक्स अभिक्रिया, 
Zn(s) + Cu2+(aq) -----> Zn2+(aq) + Cu को निम्न प्रकार से दो अर्द्धसमीकरणों में विभाजित किया जा सकता है-
Zn(s) -----> Zn2+(aq) + 2e´ (ऑक्सीकरण अर्द्धअभिक्रिया)

Cu2+(aq) + 2e´ -----> Cu ( अपचयन अर्द्धअभिक्रिया)