कोलॉयडी विलयनों (सॉल) के गुणकोलाइडी विलयनों के मुख्य गुण निम्न हैं-
(1) सामान्य भौतिक गुण-
(a) विषमांग प्रकृति-
कोलाइडी विलयन विषमांग होते हैं|
(b) परिक्षिप्त कणों की दृश्यता-
कोलाइडी कणों को नेत्रों द्वारा नहीं देखा जा सकता है|
(c) छननता-
कोलाइडी कण सामान्य फिल्टर पेपर से पार हो जाते हैं| लेकिन जंतु झिल्ली या अतिसूक्ष्म फिल्टर से कोलॉइडी कण पार नहीं हो पाते हैं|
(d) स्थायित्व-
कोलाइड स्थिर होते हैं तथा इनके परिक्षिप्त कण कुछ समय तक रखने पर नीचे नहीं बैठते हैं|
(2) अणुसंख्य गुण -
कोलाइडी विलयन वास्तविक विलयनों की भांति अणुसंख्य गुण जैसे- वाष्प दाब में कमी, क्वथनांक में उन्नयन, हिमांक में अवनमन तथा परासरण दाब प्रदर्शित करते हैं|
(3) गतिज गुण या ब्राउनियन गति-
अति सूक्ष्मदर्शी के द्वारा देखने से कोलॉइडी कण टेढ़े मेढ़े मार्ग में लगातार गति करते हुए दिखाई देते हैं| इस गुण की खोज एक वनस्पति वैज्ञानिक रॉबर्ट ब्राउन ने सन 1827 में की थी| इसलिए इसे ब्राउनियन गति कहा जाता है|
(4) प्रकाशिक गुण (टिंडल प्रभाव)-
अंधेरे में रखे कोलाइडी विलयन में जब तीव्र प्रकाश पुंज को प्रवाहित किया जाता है तो इन किरणों का मार्ग नीले प्रकाश द्वारा दृश्य मान हो जाता है| इस घटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं, तथा दृश्य मान मार्ग को टिंडल शंकु कहा जाता है| इस घटना को सर्वप्रथम टिंडल ने सन 1869 में देखा था|
(5) वैद्युत गुण-
कोलाइडी विलयनों के मुख्य वैद्युत गुण निम्न हैं-
(a) कोलाइडी कणों पर विद्युत आवेश की उपस्थिति-
कोलाइडी विलयनों के कोलाइडी कणों पर एक निश्चित प्रकार का आवेश होता है, जबकि उसके परिक्षेपण माध्यम पर इसके बराबर तथा विपरीत आवेश होता है| कोलाइडी कणों पर उपस्थित आवेश की प्रकृति के आधार पर कोलाइडी सॉल को धन आवेशित सॉल तथा ऋण आवेशित सॉल में बांटा जा सकता है जैसे-
धन आवेशित सॉल- धात्विक हाइड्रोक्साइड सॉल जैसे- Fe(OH)3, Al(OH)3 आदि
ऋण आवेशित सॉल- धात्विक सॉल जैसे- Au, Ag, Cu आदि
(b) वैद्युत कण संचलन (Electrophoresis)-
वैद्युत क्षेत्र के प्रभाव में किसी इलेक्ट्रोड विशेष की ओर कोलाइडी कणों के गति करने की प्रवृत्ति को वैद्युत कण संचलन कहा जाता है|
इस प्रक्रिया में कोलाइडी विलयन को एक पात्र में भरकर उसमें दो इलेक्ट्रोड कैथोड व एनोड लगाकर यदि विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो परिक्षिप्त प्रावस्था के कण विपरीत आवेश के इलेक्ट्रोड की ओर गति करने लगते हैं|
(c) वैद्युत परासरण (Electro-osmosis)-
अर्ध पारगम्य झिल्ली के द्वारा कोलाइडी कणों की गति को स्थिर कर विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में परिक्षेपण माध्यम के गति करने के प्रक्रम को वैद्युत परासरण कहा जाता है|
(d) स्कंदन या फ्लोकुलेशन (Coagulation or Flocculation )-
कोलाइडी विलियन में विद्युत अपघटन मिलाए जाने पर उसका स्कंदन हो जाता है| अतः विद्युत अपघट्य मिलाए जाने पर कोलाइडी विलयन के अवक्षेपण के प्रक्रम को स्कंदन या फ्लोकुलेशन कहा जाता है|
जैसे- यदि खून बह रहा हो तो फिटकरी लगाने से खून का स्कंदन हो जाता है|
हार्डी-शुल्जे नियम-
कोलाइडी विलियन में मिलाए जाने वाले विपरीत आवेशित आयन की संयोजकता जितनी अधिक होगी कोलाइडी विलयन के लिए उसकी स्कंदन शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी|
जैसे - As2S3 के स्कंदन के लिए विभिन्न धनायनों की स्कंदन क्षमता का क्रम निम्न होगा-
Al3+ > Ba2+ > Na+
इसी प्रकार धन आवेशित सॉल जैसे- Fe(OH)3 के स्कंदन के लिए विभिन्न निर्णय की स्कंदन क्षमता का क्रम निम्न है-
[Fe(CN)6]4- > PO43- > SO42- > Cl-
फ्लोकुलेशन मान-
किसी सॉल के स्कंदन के लिए एक विद्युत अपघट्य की आवश्यक न्यूनतम मात्रा (मिलीमोल प्रति लीटर में) को उस विद्युत अपघट्य का फ्लोकुलेशन मान कहा जाता है|
रक्षी कोलॉयड (Protective colloids )-
किसी द्रव स्नेही कोलाइड का उपयोग कर विद्युत अपघट्य मिलाए जाने पर द्रव विरोधी कोलाइडी विलियनों की स्कंदन से रक्षा करने के प्रकरण को कोलाइडी विलयन का रक्षण कहा जाता है तथा इस उद्देश्य के लिए प्रयुक्त द्रव स्नेही कोलाइड को रक्षी कोलाइड कहा जाता है|
जैसे- गोल्ड सॉल (एक द्रव विरोधी सॉल) में जिलेटिन सॉल (एक द्रव स्नेही सॉल) को मिलाने पर सोडियम क्लोराइड विलयन के द्वारा गोल्ड साल का स्कंदन आसानी से नहीं होता है|
स्वर्ण संख्या (Gold Number )-
किसी रक्षी कोलाइड की स्वर्ण संख्या मिलीग्राम में व्यक्त उसकी वह न्यूनतम मात्रा है जो एक 10ml स्वर्ण सॉल में स्कंदन रोकने में उस समय ठीक पर्याप्त होती है जबकि स्वर्ण सॉल में 10% सोडियम क्लोराइड विलयन का 1 ml मिलाया जाता है|
स्वर्ण संख्या का मान कम होने पर रक्षी कोलाइड की रक्षण क्षमता अधिक होती है कुछ रक्षी कोलाइड ओं की स्वर्ण संख्याओं के मान निम्न हैं-
रक्षी कोलाइड स्वर्ण संख्या
जिलेटिन 0.005 - 0.01
हिमोग्लोबिन 0.03 - 0.07
स्टार्च 20 - 25