Advance Chemistry

Wednesday, September 23, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के भौतिक गुण(Physical properties of Carboxylic acid )

कार्बोक्सिलिक अम्लों के भौतिक गुण(Physical properties of Carboxylic acid )
इनके महत्वपूर्ण भौतिक गुण निम्नलिखित हैं-
(1) भौतिक अवस्था रंग तथा गंध-
एलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के प्रथम 3 सदस्य अर्थात HCOOH, CH3COOH तथा CH3CH2COOH  रंगहीन तथा तीक्ष्ण गंध वाले द्रव होते हैं| इन से आगे के 6 सदस्य(C4 से C9 ) रंगहीन, तैलीय द्रव तथा हल्की दुर्गंधयुक्त होते हैं| ब्यूटाइरिक अम्ल (C4) में  सड़े मक्खन जैसी गंध होती है| उच्च सदस्य (C10 से आगे) रंगहीन तथा मोम की तरह ठोस पदार्थ होते हैं| कम वाष्पशीलता के कारण इनकी विशिष्ट गंध नहीं होती| बेंजोइक अम्ल तथा अन्य एरोमेटिक अम्ल विशिष्ट गंध रहित रंगहीन ठोस होते हैं|

(2) विलेयता -
एेलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के निम्न सदस्य (C4 तक) जल में विलेय होते हैं| C4 के पश्चात विलेयता अणु भार बढ़ने के साथ-साथ तेजी से कम होती है| सात या अधिक कार्बन परमाणु वाले अम्ल जल में लगभग अविलेय होते हैं| बेंजोइक अम्ल ठंडे जल में लगभग अविलेय होता है, परंतु गर्म जल में काफी मात्रा में विलेय होता है|
            कार्बोक्सिलिक अम्लों की विलेयता -COOH समूह तथा जल के अणुओं के बीच हाइड्रोजन बंध बनने के कारण होती है|

---H-O-----H-O-C=O------H-O
        |               |                 |
       H              R               H 

(3) क्वथनांक-
कार्बोक्सिलिक अम्लों के क्वथनांक संगत अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन की अपेक्षा अधिक होते हैं| इनके क्वथनांक संगत ऐल्कोहल से भी अधिक होते हैं| कार्बोक्सिलिक अम्लों के क्वथनांक अणुभार बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते हैं|
           तुलनीय अणुभार वाले एल्केन तथा ऐल्कोहल की अपेक्षा कार्बोक्सिलिक अम्लों के उच्च क्वथनांक का कारण प्रबल अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंधों की उपस्थिति है|

R-C=O-----------H-O-C-R 
    |                          | |
   O-H------------------- O 

(4) गलनांक-
कार्बोक्सिलिक अम्लों के गलनांक नियमित रूप से परिवर्तित नहीं होते हैं| ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल परिवार के प्रथम 10 सदस्यों के गलनांक दोलनात्मक रूप में परिवर्तित होते हैं| वे  अम्ल  जिनमें सम कार्बन परमाणु होते हैं, उनके गलनांक अगले अम्ल जिनमें विषम कार्बन परमाणु पाए जाते हैं, से अधिक होते हैं| इसका कारण यह होता है कि सम कार्बन परमाणु युक्त अम्लों में -COOH  समूह तथा अंतिम CH3 समूह दोनों परस्पर टेढ़ी-मेढ़ी कार्बन श्रृंखला के विपरीत ओर स्थित होते हैं जबकि विषम कार्बन युक्त में यह दोनों समूह टेढ़ी-मेढ़ी कार्बन श्रृंखला के एक ही ओर स्थित होते हैं| जिस कारण इनके अणुओं की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होती है|

Monday, September 21, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों के निर्माण की सामान्य विधियां-

कार्बोक्सिलिक अम्लों  के निर्माण की सामान्य विधियां-

(1) प्राथमिक अल्कोहल तथा एल्डिहाइड से-
प्राथमिक अल्कोहल तथा एल्डिहाइड को ऑक्सीकारकों जैसे- अम्लीय या क्षारीय माध्यम में KMnO4 या अम्लीय माध्यम में K2Cr2O7 के द्वारा संगत कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकृत किया जा सकता है|

                  KMnO4
                   [O]                          [O]
RCH2OH ---------------> RCHO ---------->RCOOH 
जैसे -
                       KMnO4
                          [O]
CH3CH2OH --------------->CH3CHO ---------->CH3COOH 


(2) एल्किल बेंजीन से -
एल्किल बेंजीन का क्षारीय KMnO4, सांद्रHNO3 या अम्लीय K2Cr2O7 से ऑक्सीकरण करने पर ऐरोमैटिक कार्बोक्सीलिक अम्ल प्राप्त किए जा सकते हैं|
               KMnO4/OH´
C6H5-H -------------------> C6H5COOH 

(3) नाइट्राइल व एमाइड से-
सायनाइड समूह युक्त यौगिक नाइट्राइल कहलाते हैं| जब इनका अम्ल और क्षार के साथ जल अपघटन किया जाता है तब  कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं|
                        H+/ OH´
RCN + 2H2O ---------------> RCOOH + NH3 

(4) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक से-
ग्रिगनार्ड अभिकर्मक ईथरीय विलयन में CO2 के साथ क्रिया कर तथा बाद में योगात्मक उत्पाद का जल अपघटन तनु खनिज अम्ल के द्वारा कराने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल  प्रदान करते हैं|
                               शुष्क ईथर 
RMgX + O=C=O --------------------->
                     H2O/H+ 
RCOOMgX ---------------> RCOOH + Mg(OH)X 


(5) ऐसिल हैलाइड तथा ऐनहाइड्राइड से-
अम्ल क्लोराइड तथा अम्ल ऐनहाइड्राइड का जल के द्वारा जल अपघटन करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं|

RCOCl + H2O --------> RCOOH + HCl 

(C6H5CO)2O + H2O -------> 2C6H5COOH 

(6) एस्टर से-
एस्टर तनु खनिज अम्ल के द्वारा जल अपघटन पर संगत कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं|

CH3COOC2H5 + H2O -----------> CH3COOH + C2H5OH 



Thursday, September 17, 2020

ऐल्डिहाइडों व कीटोनो के रासायनिक गुण(Chemical properties of Aldehydes and Ketons)

ऐल्डिहाइडों व कीटोनो के रासायनिक गुण(Chemical properties of Aldehydes and Ketons)

एल्डिहाइडों और कीटोनों के मुख्य रासायनिक गुण निम्न प्रकार हैं-

(A) नाभिकरागी योगात्मक अभिक्रियायें-
 एल्डिहाइडों और कीटोनों में उपस्थित कार्बोनिल समूह का कार्बन परमाणु इलेक्ट्रॉन न्यून होता है तथा उस पर आंशिक धन आवेश होता है इसलिए यह किसी नाभिक स्नेही अभिकर्मक से सरलता से क्रिया कर लेता है| यही कारण है कि एल्डिहाइड और कीटोन नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये देते हैं|
      एल्डिहाइड कीटोन से अधिक क्रियाशील होते हैं इसके मुख्य कारण निम्न है-
👉 प्रेरणिक प्रभाव-  एक एल्किल समूह इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव या +I  प्रभाव प्रदर्शित करता है| इसलिए कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर एक या अधिक एल्किल समूह की उपस्थिति धन आवेश के परिमाण को कम कर देगी तथा इस प्रकार नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रिया के प्रति कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता कम हो जाएगी|
👉 त्रिविम प्रभाव-  एल्डिहाइड तथा कीटोन में कार्बोनिल समूह से लगे एल्किल समूह कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर नाभिक स्नेही अभिकर्मक के पहुंचने में रुकावट उत्पन्न करते हैं यह कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता को कम कर देता है इसे त्रिविम प्रभाव कहते हैं|

नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं के कुछ मुख्य उदाहरण निम्न है-
(1) HCN का योग -
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों HCN  के एक अणु का क्षारीय उत्प्रेरक की उपस्थिति में योग करते हैं|

(2) सोडियम बाईसल्फाइट का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड तथा कुछ मेथिल कीटोन सोडियम बाईसल्फाइट के संतृप्त जलीय विलियन से क्रिया कर क्रिस्टलीय बाईसल्फाइट योगात्मक यौगिक बनाते हैं|

(3) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड और कीटोन ग्रिगनार्ड अभिकर्मक को से अभिक्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं यह योगात्मक उत्पाद जल अपघटन पर एल्कोहल उत्पन्न करते हैं|

(4) ऐल्कोहल का योग-
एल्डिहाइड ( न कि कीटोन) शुष्क HCl  गैस की उपस्थिति में एल्कोहल से क्रिया करके ऐसीटल बनाते हैं|
          जब एक एल्डिहाइड अल्कोहल के साथ क्रिया करता है तो अल्कोहल का अणु एल्डिहाइड के कार्बोनिल समूह से योग करता है तथा योगात्मक यौगिक बनाता है जिसे हेमिऐसिटल कहते हैं| हेमिऐसिटल अस्थाई होने के कारण तुरंत एल्कोहल के दूसरे अणु के साथ क्रिया करता है तथा स्थाई ऐसीटल बनाता है|
     
   एल्डिहाइड डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय ऐसीटल बनाते हैं|
    कीटोन भी इस प्रकार की क्रियाएं देते हैं तथा उपरोक्त परिस्थितियों में डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय कीटल बनाते हैं|

(B) जल निष्कासन सन्निहित नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये -

(1) अमोनिया का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों अमोनिया के साथ नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाएं देते हैं-

(2) अमोनिया के व्युत्पन्नों का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन अमोनिया के कुछ व्युत्पन्नों जैसे हाइड्रोकसिल ऐमीन, हाइड्राजीन, फेनिल हाइड्रजीन आदि के साथ दुर्बल अम्लीय माध्यम में क्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं|


(C) अपचयन -

(1) एल्कोहल में अपचयन-
एल्डिहाइड और कीटोन को अल्कोहल में Ni, Pt, Pd  आदि की उपस्थिति में उत्प्रेरकीय  हाइड्रोजनीकरण के द्वारा या अपचायकों के प्रयोग द्वारा अपचयित करने पर एल्डिहाइड प्राथमिक अल्कोहल देते हैं जबकि कीटोन द्वितीयक अल्कोहल देते हैं| जैसे-

(2) हाइड्रोकार्बन में अपचयन-

(a) क्लेमैन्सन अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को जिंक एमलगम व सांद्र HCl  के साथ अभिकृत करते हैं तो वे अपने संगत हाइड्रोकार्बन में अपचयित हो जाते हैं यह क्लेमैन्सन अपचयन कहलाता है|
(b) वुल्फ - किशनर अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को एथिलीन ग्लाइकॉल विलायक में 453- 473 K  ताप पर हाइड्राजीन तथा KOH के मिश्रण के साथ गर्म करते हैं तो इनके संगत हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं|
(D) ऑक्सीकरण अभिक्रियाये-
(1) कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड और कीटोन दोनों को कार बॉक्स लिक अम्लों में ऑक्सिक्रेट किया जा सकता है परंतु इनका ऑक्सीकरण व्यवहार भिन्न होता है|

(a) एल्डिहाइड का ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड को साधारण ऑक्सीकारक, जैसे- KMnO4, K2Cr2O7, आदि की क्रिया द्वारा कार्बोक्सिलिक अम्लों में सरलता से ऑक्सीकृत किया जा सकता है| प्राप्त कार्बोक्सिलिक अम्ल में मूल एल्डिहाइड के बराबर कार्बन परमाणु होते हैं|

CH3CHO + O ----> CH3COOH 
चूँकि एल्डिहाइड सरलता से ऑक्सीकृत हो जाते हैं इसलिए यह प्रबल अपचायक की तरह कार्य करते हैं तथा अनेक ऑक्सीकारको, जैसे- टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन, बैनेडिक्ट विलयन, आदि को अपचयित कर सकते हैं| एल्डिहाइड की  इन अभिकर्मकों के साथ क्रिया निम्न प्रकार हैं-
👉टॉलन अभिकर्मक के साथ क्रिया -
टॉलन अभिकर्मक सिल्वर नाइट्रेट का अमोनियामय विलयन होता है|
         जब किसी एल्डिहाइड को टॉलन  अभिकर्मक के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है, जो अमोनिया के साथ संयोग कर अमोनियम लवण बनाता है, जबकि टॉलन अभिकर्मक धात्विक सिल्वर में अपचयित हो जाता है| सिल्वर परखनली की आंतरिक दीवार में एकत्रित होकर रजत दर्पण बनाती है|

CH3CHO + 2[Ag(NH3)2]OH ----> CH3COONH4 + 2Ag + 3NH3 + H2O

👉 फेहलिंग विलयन के साथ अभिक्रिया-
फेहलिंग विलयन क्यूप्रिक आयन (Cu++) का टारट्रेट आयन के साथ बने संकर यौगिक का क्षारीय विलयन होता है| इसे बनाने के लिए फेहलिंग विलयन A(CuSO4 का जलीय विलयन) को फेहलिंग विलयन B (NaOH तथा रोशैल  लवण अर्थात सोडियम पोटैशियम टारट्रेट विलयन) में तब तक मिलाते हैं जब तक गहरा नीला विलयन प्राप्त नहीं हो जाता है|
    जब किसी एलिफेटिक एल्डिहाइड को फेहलिंग विलयन के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड अपने संगत कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि फेहलिंग विलयन में उपस्थित क्यूप्रिक आयन (Cu++) का      क्यूप्रस आयन (Cu+) मे अपचयन हो जाता है, जो लाल ऑक्साइड(Cu2O) के रूप में अवक्षेपित हो जाता है|

RCHO + 2Cu++  + 5OH-  ------> RCOO-  + Cu2O + 3H2O 
(b) कीटोन का ऑक्सीकरण-
कीटोन में कार्बोनिल समूह से संबंधित कोई हाइड्रोजन परमाणु संलग्नित नहीं होता है इसलिए कीटोन कठिनता से ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन तथा बेनेडिक्ट विलयन को अपचयित नहीं करते हैं|
          कीटोन प्रबल ऑक्सीकारकों जैसे- HNO3, KMnO4, K2Cr2O7 आदि के द्वारा विशेष परिस्थिति में ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन के ऑक्सीकरण में कार्बोनिल समूह के किसी एक ओर स्थित अल्फा कार्बन तथा कार्बोनिल कार्बन के बीच कार्बन- कार्बन बंध टूट जाता है जिसके कारण मूल कीटोन की तुलना में कम कार्बन परमाणु युक्त कार्बोक्सिलिक अम्लों का मिश्रण प्राप्त होता है जैसे-
                          [O]
CH3COCH3 ---------------> HCOOH + CH3COOH 

(2) सोडियम हाइपोहैलाइट के साथ ऑक्सीकरण  (हैलोफॉर्म अभिक्रिया)-
एल्डिहाइड और कीटोन,जिनमे CH3-CO- समूह पाया जाता है, सोडियम हाइपोहैलाइट(NaOX) के द्वारा भी ऑक्सीकृत होकर हैलोफॉर्म तथा कार्बोक्सिलिक  अम्ल का लवण देते हैं| यह हैलोफॉर्म अभिक्रिया कहलाती है |
R-CO-CH3 + 3NaOX ------> R-CO-CX3 + 3NaOH 

R-CO-CX3 + NaOH ------> CHX3 + R-COONa 
जैसे -
CH3-CO-CH3 + 3NaOCl ------> CH3-CO-CCl3 + 3NaOH 

CH3-CO-CCl3 + NaOH ------> CHCl3 + CH3-COONa 
👉 जब अभिक्रिया सोडियम हाइपोआयोडाइट के द्वारा होती है तो बसंती पीला आयोड़ोंफार्म अवक्षेप के रूप में प्राप्त होता है| इस अभिक्रिया को आयोड़ोंफार्म परीक्षण कहा जाता है|

(E) एल्फा - H के कारण होने वाली अभिक्रियाएं-

(1) ऐल्डॉल संघनन -
एल्डिहाइड और कीटोन जिनमें कम से कम एक एल्फा- हाइड्रोजन परमाणु पाया जाता है,तनु क्षार जैसे- NaOH, Ba(OH)2 आदि की उपस्थिति में संघनन कर बीटा- हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड या कीटोन देते हैं| चूँकि बीटा-हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड में एल्डिहाइड तथा एल्कोहल दोनों समूह पाए जाते हैं इसलिए यह सामान्यतः ऐल्डॉल कहलाते हैं| अतः यह  अभिक्रिया एल्डोल  संघनन कहलाती है|
 
👉यदि दो कीटोन आपस मे संघनन करे तो भी ऐल्डॉल बनते हैं |
(2) क्रॉस ऐल्डॉल संघनन -
यदि ऐल्डॉल संघनन अल्फा- हाइड्रोजन युक्त भिन्न एल्डिहाइड या भिन्न कीटोन या एक एल्डिहाइड तथा एक कीटोन के अणुओं के बीच होता है तो इस अभिक्रिया को क्रॉस एल्डोल संघनन या मिश्रित एल्डोल  संघनन कहा जाता है|
(E) अन्य अभिक्रियाएं-

(1) कैनिजारो अभिक्रिया-
यह अभिक्रिया वे एल्डिहाइड देते हैं जिनमें अल्फा- हाइड्रोजन परमाणु नहीं पाया जाता है, जैसे- फॉर्मेल्डिहाइड बेंजेल्डिहाइड आदि|
   जब अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड को सोडियम या पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के सांद्र विलयन के साथ गर्म किया जाता है तब विअनुपातीकरण के फल स्वरुप स्वतः ऑक्सीकरण- अपचयन हो जाता है| अभिक्रिया में एल्डिहाइड के दो अणु भाग लेते हैं| इनमें से एक कार्बोक्सिलिक अम्ल मे ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि दूसरा एल्कोहल में अपचयित हो जाता है| अभिक्रिया में बना कार्बोक्सिलिक अम्ल क्षार के साथ संयोग कर लवण बनाता है| अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड का एक साथ ऑक्सीकरण तथा अपचयन कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है|
जैसे -
                          सांद्र NaOH 
HCHO + HCHO ---------------> CH3OH + HCOONa 


                                     सांद्र NaOH 
C6H5CHO + C6H5CHO --------------->C6H5CH2OH + C6H5COONa 

(2) क्रॉस्ड कैनिजारो अभिक्रिया-
जब अल्फा-H  रहित दो भिन्न-भिन्न एल्डिहाइड के बीच कैनिजारो अभिक्रिया होती है तब वह क्रॉस्ड  कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है | जैसे-

                                  सांद्र NaOH 
C6H5CHO + HCHO --------------->C6H5CH2OH + HCOONa 

(3) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
ऐरोमेटिक एल्डिहाइड का -CHO समूह मेटा निर्देशक(m-) होता है| अतः यह इलेक्ट्रॉनरागी  को मेटा स्थिति पर प्रतिस्थापन अभिक्रिया कराता है|

Tuesday, September 15, 2020

ऐल्डिहाइड व कीटोन के भौतिक गुण (Physical proerties of aldehydes and ketones )

ऐल्डिहाइड व कीटोन के भौतिक गुण (Physical proerties of aldehydes and ketones )

ऐल्डिहाइड व कीटोन के कुछ महत्वपूर्ण भौतिक गुण निम्न है-
(1) भौतिक अवस्था -
फॉर्मेल्डिहाइड साधारण ताप पर गैस होता है जबकि एसिटेल्डिहाइड द्रव होता है| इनके अतिरिक्त C11 तक के अन्य सभी एल्डिहाइड रंगहीन द्रव होते हैं, जबकि उच्च सदस्य ठोस होते हैं|
       C11 तक के सभी कीटोन रंगहीन द्रव होते हैं, जबकि उच्च सदस्य ठोस होते हैं|

(2) गंध -
निम्न एल्डिहाइड की अरुचिकर गंध होती है परंतु अणुभार बढ़ने के साथ-साथ गंध रुचिकर होती जाती है| कीटोन की सामान्यत: रुचिकर गंध होती है| उच्च कीटोन  की गंध इतनी रुचिकर होती है कि इनमें से कुछ कीटोन का प्रयोग गंध द्रव्य के रूप में किया जाता है|

(3) ध्रुवीय प्रकृति-
एल्डिहाइड तथा कीटोन में उपस्थित कार्बोनिल समूह ध्रुवीय होता है| इसलिए एल्डिहाइड व कीटोन ध्रुवीय यौगिक होते हैं|

(4) विलेयता-
चार कार्बन परमाणु तक के निम्न एल्डिहाइड तथा कीटोन जल में विलेय होते हैं| कार्बोनिल समूह से लगे एल्किल समूह का आकार बढ़ने के साथ-साथ इनकी जल में विलेयता  तीव्रता से घटती है| 5 या अधिक कार्बन परमाणु युक्त एल्डिहाइड व कीटोन जल में या तो बहुत कम विलेय होते हैं या अविलेय होते हैं|
          निम्न एल्डिहाइड तथा कीटोंन की जल में विलेयता का कारण जल के अणुओं के साथ इन यौगिकों का हाइड्रोजन बंध बनाना है| प्रकृति में ध्रुवीय होने के कारण निम्न एल्डिहाइड व कीटोन जल के साथ हाइड्रोजन बंध बनाते हैं तथा विलेय हो जाते हैं|

(5) क्वथनांक-
एल्डिहाइड और कीटोन के क्वथनांक तुलनात्मक अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन तथा इथर से अधिक होते हैं| इसका कारण भी पुनः एल्डिहाइड तथा कीटोन में उपस्थित कार्बोनिल समूह की ध्रुवीय प्रकृति है|
          एल्डिहाइड तथा कीटोन में हाइड्रोजन परमाणु सीधे कार्बन परमाणुओं से संबंधित होता है न कि ऑक्सीजन परमाणु से| इसलिए एल्डिहाइड व कीटोन अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंध बनाने में असमर्थ होते हैं| क्योंकि द्विध्रुव- द्विध्रुव अंतः क्रिया अंतरा आणविक हाइड्रोजन बंध से दुर्बल होती है, इसलिए एल्डिहाइड तथा कीटोन के क्वथनांक उनके संगत एल्कोहल तथा कार्बोक्सिलिक अम्लों से बहुत कम होते हैं|

ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड और कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड और कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

(A) ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड का निर्माण-
ऐरोमेटिक ऐल्डिहाइड के निर्माण की निम्न विधियाँ हैं -
(1) ऐल्किल बेंजीन के ऑक्सीकरण द्वारा -

👉एसिटिक ऐनहाइड्राइड की उपस्थिति में CrO3 के द्वारा ऑक्सीकरण -

एल्किल बेंजीन का एसिटिक ऐनहाइड्राइड की उपस्थिति में CrO3 के द्वारा ऑक्सीकरण से ऐरोमैटिक एल्डीहाइड प्राप्त होते हैं |
👉 CCl4 की उपस्थिति में CrO2Cl2 के द्वारा ऑक्सीकरण -
 बैन्जेल्डीहाइड को CCl4 या CS2 में CrO2Cl2 के द्वारा टॉलूईन के ऑक्सीकरण द्वारा बनाया जा सकता है|
यह अभिक्रिया इटार्ड अभिक्रिया कहलाती है |

(2) रीमर - टीमन अभिक्रिया द्वारा -
यह विधि फिनॉलिक एल्डिहाइड के बनाने के लिए प्रयोग की जाती है तथा इसमें किसी फिनॉल की अभिक्रिया क्लोरोफॉर्म के साथ जलीय क्षार  की उपस्थिति में 340 K पर कराई जाती है इसके पश्चात तनु अम्ल के द्वारा जल अपघटन कराया जाता है जैसे-
(3) गैटरमैन- कोच अभिक्रिया द्वारा -
जब बेंजीन की CO तथा HCl गैस के साथ निर्जल AlCl3 या CuCl  की उपस्थिति में अभिक्रिया कराई जाती है तो बेन्ज़ेलडिहाइड प्राप्त होता है|
(B) ऐरोमेटिक कीटोन का निर्माण-
ऐरोमेटिक कीटोन  को सामान्यतः फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया के द्वारा बनाया जाता है| इसमें एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन की अभिक्रिया निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में किसी एसिड क्लोराइड के साथ कराते हैं| 

Monday, September 14, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण

कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण 

(1) ऐलिफैटिक मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -

(a) सामान्य विधि -
मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लों के सामान्य नाम प्रकृति में उनकी प्राप्ति के स्रोत पर आधारित होते हैं जैसे HCOOH  को फार्मिक अम्ल कहा जाता है, क्योंकि यह सर्वप्रथम लाल चीटियों (लैटिन में फॉरमिका का अर्थ लाल चींटी होता है) से प्राप्त किया गया था| ऐसीटिक (CH3COOH)  को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह सिरके (लैटिन में एसिटम का अर्थ सिरका होता है) से प्राप्त किया गया था| इसी प्रकार CH3CH2CH2COOH को ब्यूटाइरिक अम्ल नाम दिया गया क्योंकि इसकी उत्पत्ति मक्खन (लैटिन में ब्यूटाइरम का अर्थ मक्खन होता है) से हुई थी|
           सामान्य विधि में श्रृंखला में उपस्थित प्रतिस्थापनों का स्थान ग्रीक अक्षर अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है| कार्बोक्सिलिक समूह से अगले कार्बन परमाणु को अल्फा तथा इसके बाद के कार्बन परमाणु को बीटा,गामा, डेल्टा आदि नाम निम्न प्रकार दिए जाते हैं-

(b) I. U. P. A. C. पद्धति -
इस पद्धति में मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों को एल्केनोइक अम्ल नाम दिया जाता है| किसी अम्ल का नाम संगत मूल एल्केन के नाम से अंतिम 'e' को अनुलग्न 'ओइक अम्ल' के द्वारा प्रतिस्थापित कर लिखा जाता है|
                 -e 
Alkane ------------> Alkanoic acid
                +al  

जैसे -
HCOOH   Methanoic acid 
CH3COOH   Ethanoic acid 
CH3CH2CH2COOH   Butanoic acid 
(2) ऐलिफैटिक डाईकार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -
डाईकार्बोक्सिलिक अम्लों के सामान्य नाम उनकी उत्पत्ति के स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं|
 आईयूपीएसी पद्धति में डाईकार्बोक्सिलिक  का नाम एल्केनडाईओइक अम्ल (alkanedioic acid) दिया जाता है|
जैसे -
COOH 
 |             Ethane-1,2-dioic acid 
COOH 

CH2COOH 
 |               Butane-1,4-dioic acid 
CH2COOH 

(3) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -
सरलतम मोनोकार्बोक्सिलिक ऐरोमैटिक अम्ल C6H5COOH है | सामान्य तथा I. U. P. A. C. पद्धति में इसे बेंजोइक अम्ल के नाम से पुकारा जाता है| यह उन अन्य  मोनोकार्बोक्सिलिक ऐरोमैटिक अम्ल का जनक माना जाता है, जिनमें -COOH  समूह बेंजीन रिंग से सीधा जुड़ा होता है| प्रतिस्थापित अम्लों का नाम लिखने के लिए मूल अम्ल के नामों में प्रतिस्थापन के नामों को पूर्व लग्न के रूप में लिखा जाता है तथा उनके स्थान को उचित अंकों या अनुलग्न ऑर्थ्रो (o-, स्थान 1व 2  के लिए), मेटा(m-, स्थान 1 व 3 के लिए) या पैरा(p-, स्थान 1 व 4 के लिए) के द्वारा व्यक्त करते हैं|

Sunday, September 13, 2020

ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड व कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड व कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

(1) एल्कोहॉल से -
(a) ऑक्सीकरण के द्वारा -
अल्कोहल का अम्लीय K2Cr2O7 या KMnO4  के द्वारा नियंत्रित ऑक्सीकरण करने पर एल्डिहाइड व कीटोन बनते हैं|
  👉  एल्डिहाइड प्राथमिक अल्कोहल के नियंत्रित ऑक्सीकरण के द्वारा बनते हैं जैसे-
                          K2Cr2O7/H2SO4
CH3CH2OH +O  ---------------------->  CH3CHO + H2O 
इस प्रकार बने एल्डिहाइडों को कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकृत होने से पहले ही आसवन विधि द्वारा अलग कर लिया जाता है|
👉 द्वितीयक अल्कोहल का अम्लीय K2Cr2O7 या KMno4 के द्वारा ऑक्सीकरण करने पर कीटोन प्राप्त होते हैं जैसे-
                          K2Cr2O7/H2SO4
CH3CHOHCH3 +O  ----------------->  CH3COCH3 + H2O 

(b) ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा-
एल्डिहाइड तथा कीटोन को ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है| इसके अंतर्गत उचित ऐल्कोहल की वाष्प को अपचयित कॉपर के ऊपर 573K  पर प्रवाहित किया जाता है|
👉 एल्डिहाइड को प्राथमिक ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जाता है जैसे-
                   Cu 
CH3OH ---------------> HCHO + H2
                   573K 

                       Cu 
CH3CH2OH ------>CH3CHO+H2
                     573K 
 👉कीटोन को द्वितीयक ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जैसे-
                                Cu 
CH3CHOHCH3 ---------------> CH3COCH3  + H2


(2) कार्बोक्सिलिक अम्लों से -
(a) कार्बोक्सिलिक अम्लों के कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा-
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों को कार्बोक्सिलिक अम्लों के कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा बनाया जा सकता है|
👉 जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल के कैल्शियम लवण तथा कैल्शियम फॉर्मेट के मिश्रण का शुष्क आसवन किया जाता है तो एक एल्डिहाइड प्राप्त होता है|
                       गर्म 
(HCOO)2Ca -----------> HCHO + CaCO3 

                                                  गर्म 
(CH3COO)2Ca + (HCOO)2Ca -----------> 2CH3CHO + 2CaCO3  

👉 सममित कीटोन को कार्बोक्सिलिक अम्लों के केवल कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|जैसे -
                             गर्म 
(CH3COO)2Ca -----------> CH3COCH3 + CaCO3 

👉 असममित कीटोन को दो भिन्न कार्बोक्सिलिक अम्लों  (फार्मिक अम्ल के अतिरिक्त) के कैल्शियम लवणों के मिश्रण के आसवन के द्वारा बनाया जा सकता है जैसे-        


(CH3CH2COO)2Ca +(CH3COO)2Ca ----------------------> CH3CH2COCH3 + CaCO3 

(b) कार्बोक्सिलिक अम्लों के उत्प्रेरकीय अपघटन के द्वारा -
इस विधि में अम्लो की वाष्प को 573 K पर MnO  के ऊपर प्रवाहित करते हैं|
                                        MnO/573K 
CH3COOH + HCOOH -------------------> CH3CHO + CO2 + H2O 

CH3COOH + CH3CH2COOH -------------> CH3COCH2CH3 + CO2 + H2O 
👉 कीटोन बनाने के लिए फार्मिक अम्ल का प्रयोग नहीं करते हैं|


(3) एसिड क्लोराइड से -
(a) रोजेनमुंड अभिक्रिया द्वारा एल्डिहाइड का निर्माण-
एल्डिहाइड को एसिड क्लोराइड के उत्प्रेरकीय  हाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है| यह रोजेनमुंड अभिक्रिया कहलाती है| इस विधि में हाइड्रोजन गैस को उबलती हुई जाइलीन में निर्मित एसिड क्लोराइड के विलयन में बेरियम सल्फेट पर आधारित पैलेडियम उत्प्रेरक, जो क्यूनोलिन या सल्फर के द्वारा आंशिक रूप से विषाक्त होता है, की उपस्थिति में प्रवाहित करते हैं|
                        Pd/BaSO4, S 
CH3COCl + H2 -----------------> 
CH3CHO + HCl 
👉 यदि उत्प्रेरक को विषाक्त ना बनाया जाए तो अभिक्रिया में बना एल्डिहाइड सरलता से ऐल्कोहल में अपचयित हो जाएगा तथा एल्डिहाइड की जगह पर ऐल्कोहल प्राप्त होगा|
👉 इस विधि द्वारा फॉर्मेल्डिहाइड नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि कमरे के ताप पर फॉर्मिल क्लोराइड अस्थायी  होता है|
  (b)  कीटोन को रोजेनमुंड अभिक्रिया के द्वारा एसिड क्लोराइड सेेे प्राप्त नहीं किया जा सकता है फिर भी कीटोन को एसिड क्लोराइड  की  डाई मेथिल कैडमियम के साथ शुष्क ईथर  की उपस्थिति में अभिक्रिया करा कर प्राप्त किया जा सकता है | जैसे -
2CH3COCl + (CH3)2Cd ---------> 2CH3COCH3 + CdCl2 

(4) एल्कीन से -

कुछ एल्डिहाइड तथा कीटोन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाए जा सकते हैं|
👉 एल्डिहाइड को उन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है जिनमें द्वि- बंध  निर्माण में भाग लेने वाले कार्बन परमाणु पर श्रृंखला नहीं होते हैं|
👉 कीटोन को उन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है जिनमें द्वि बंध युक्त एक या दोनों कार्बन परमाणुओं पर श्रृंखला होती हैं|
(5) ऐल्काइन से -
एल्डिहाइड तथा कीटोन को एल्काइन के जलयोजन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|
👉जब ऐसीटिलीन को 333 K  पर 1% HgSO4  युक्त तनु H2SO4 में प्रवाहित किया जाता है तो यह जलयोजन के कारण ऐसीटेल्डिहाइड बनाती है|
      -                      तनु H2SO4
CH=CH + H2O ------------------>
                           HgSO4 
[CH2=CHOH] --------> CH3CHO 
 एसिटिलीन के अतिरिक्त किसी अन्य एल्काइन की  जब 1% HgSO4 युक्त तनु H2SO4 के साथ क्रिया कराई जाती है तो जल के एक अणु (मारकोनिकॉफ के नियमानुसार) का योग होता है तथा एक कीटोन प्राप्त होता है जैसे-


          -                        तनु H2SO4
CH3C=CH + H2O ------------------>
                                 HgSO4 
[CH3COH=CH2] --------> CH3COCH3
         

Thursday, September 10, 2020

एल्डिहाइडों,कीटोनों व कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण

एल्डिहाइडों,कीटोनों व कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण 

(A) एल्डिहाइडों का वर्गीकरण -
एल्डिहाइडों को उनमें उपस्थित कार्बन की श्रृंखला के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है-
(a) ऐलिफैटिक एल्डिहाइड  
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड  

(a) ऐलिफैटिक एल्डिहाइड -
 ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO समूह ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला से जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2CHO 
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड-
ऐसे एल्डिहाइड जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक एल्डिहाइड कहा जाता है|
 एरोमेटिक एल्डिहाइड निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह सीधे बेंजीन रिंग से जुड़ा होता है|
(2) ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह बेंजीन रिंग कि किसी पार्श्व श्रृंखला से जुड़ा होता है| इन्हे एरिल एल्किल एल्डिहाइड भी कहा जाता है|  
--------------------------------------------------

(B) कीटोनो  का वर्गीकरण -
कीटोनों में -CO  समूह से लगे एल्किल या एरिल समूहों के आधार पर निम्न दो भागों में बांटा जाता है-
 (1)सममित कीटोन या सरल कीटोन 
(2)असममित कीटोन या मिश्रित कीटोन 

 (1)सममित कीटोन या सरल कीटोन -
सममित कीटोन वे कीटोन होते हैं जिनमें  -CO से समान मात्रा में दोनों तरफ एल्किल या एरिल समूह जुड़े होते हैं| 
जैसे - 
CH3-CO-CH3 
C6H5-CO-C6H5
(2)असममित कीटोन या मिश्रित कीटोन -
 असममित कीटोन वे कीटोन होते हैं जिनमें -CO  समूह के दोनों तरफ अलग - अलग एरिल या एल्किल समूह जुड़े होते हैं|
जैसे -
CH3-CO-C2H5
--------------------------------------------------

 कीटोनों को उनमें उपस्थित एलिफेटिक श्रृंखला या एरोमेटिक श्रृंखला के आधार पर भी निम्न दो प्रकार से बांटा जा सकता है-
(a) ऐलिफैटिक कीटोन   
(b)ऐरोमैटिक कीटोन   

(a) ऐलिफैटिक कीटोन  -
 ऐसे कीटोन  जिनमें -CO समूह के दोनों ओर केवल ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक कीटोन कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2-CO-CH3
(b)ऐरोमैटिक कीटोन -
ऐसे कीटोन  जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक कीटोन  कहा जाता है|
 एरोमेटिक कीटोन निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) एरिल एल्किल कीटोन -
ऐसे कीटोन  जिनमें -CO  समूह के एक ओर  बेंजीन रिंग व दूसरी ओर एल्किल समूह  होता है|
जैसे - 
CH3CH2-CO-C6H5
(2) डाई एरिल कीटोन -
ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CO समूह के दोनों ओर केवल बेंजीन रिंग जुड़ा होता है| इन्हे डाई एरिल कीटोन कहा जाता है|  
जैसे -
C6H5-CO-C6H5

--------------------------------------------------
(C) कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण -

कार्बोक्सिलिक अम्लों  को उनमें उपस्थित कार्बन की श्रृंखला के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है-
(a) ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल 
(b)ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल 

(a) ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल -
 ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें            -COOH समूह ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला से जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2COOH  
(b)ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल- 
ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
 एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें      -COOH  समूह सीधे बेंजीन रिंग से जुड़ा होता है|
(2) ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें       -COOH  समूह बेंजीन रिंग कि किसी पार्श्व श्रृंखला से जुड़ा होता है|
 ------------------------------------------------

 कार्बोक्सिलिक अम्लों को उनमें उपस्थित -COOH की संख्या के आधार पर निम्न भागों में बांटा जा सकता है -
(1) मोनो कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें केवल एक ही -COOH समूह होता है उन्हें  मोनो कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2-COOH

(2) डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल जिनमें दो -COOH समूह होता है उन्हें डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH2-COOH
 |
CH2-COOH 

(3) ट्राई कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल जिनमें तीन -COOH समूह होता है उन्हें  ट्राई  कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH2-COOH
 |
CH2-COOH 
 |
CH2-COOH 


Saturday, September 5, 2020

कीटोनों का नामकरण ( Nomenclature of Ketones)

कीटोनों का नामकरण  -(Nomenclature of Ketones)-
कीटोनों के नामकरण की मुख्यतः दो विधियाँ हैं -
(1) साधारण पद्धति 
(2) I. U. P. A. C. पद्धति 

(1) साधारण पद्धति -
साधारण पद्धति में कीटोनो का नामकरण कीटो समूह से जुड़े एल्किल या एरिल  समूहों के नामों में कीटोन शब्द जोड़कर करते हैं| सरल या सममित कीटोनों का नामकरण डाई एल्किल (या एरिल) कीटोन के रूप में किया जाता है| असममित या मिश्रित कीटोनों के नामकरण में एल्किल या ऐरील समूहों को अंग्रेजी वर्णमाला क्रम में लिखकर कीटोन शब्द जोड़ते हैं| प्रथम सदस्य को एसीटोन कहते हैं|
जैसे -
CH3COCH3   डाईमेथिल कीटोन 
CH3COC2H5   एथिल  मेथिल कीटोन 

C2H5COC2H5   डाईएथिल कीटोन 


(2) I. U. P. A. C. पद्धति -
इस पद्धति में कीटोनों का नामकरण एल्केनोन(alkanone)  के रूप में किया जाता है|
                    -e
Alkane ------------------> Alkanone 
                 +one 

जैसे -
 CH3-CO-CH3   प्रोपेन -2-ओन 

Cl-CH2-CO-CH3                           1-क्लोरोप्रोपेन -2-ओन
 कुछ एलिफैटिक तथा एरोमैटिक कीटोनों के सामान्य तथा आईयूपीएसी नाम निम्नलिखित हैं-
 

एरोमेटिक कीटोन जिनमें कार्बोनिल समूह बेंजीन वलय से सीधे जुड़ा होता है, साधारण पद्धति में फीनोन कहलाते हैं|
 किसी विशेष यौगिक जिसमें एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों समूह उपस्थित हैं तब एल्डिहाइड समूह को वरीयता दी जाती है|
जैसे -

Friday, September 4, 2020

एल्डिहाइडों का नामकरण ( Nomenclature of Aldehydes )

एल्डिहाइडों का नामकरण  (Nomenclature of Aldehydes )
एल्डिहाइड निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं- 
(1) ऐलिफेैटिक एल्डिहाइड तथा 
(2) एेरोमेैटिक एल्डिहाइड

(1) एेलिफेैटिक एल्डिहाइडों की नाम पद्धति -
 एेलिफेैटिक एल्डिहाइडों का नाम रखने की निम्नलिखित दो पद्धतियां हैं-
(a) साधारण पद्धति-  साधारण पद्धति में एल्डिहाइडों के नाम उन अम्लों से प्राप्त होते हैं, जिनमें ये ऑक्सीकरण के दौरान परिवर्तित होते हैं| नामकरण में अम्ल के नाम से -इक अम्ल  हटाकर एेल्डिहाइड जोड़ते हैं|

                    -इक अम्ल 
CH3COOH --------------> CH3CHO 
                   + एेल्डिहाइड 
प्रतिस्थापी एल्डिहाइड के नामकरण में जनक श्रृंखला पर उपस्थित प्रतिस्थापियों  की स्थिति ग्रीक अक्षर अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि से प्रदर्शित करते हैं| एल्डिहाइड में कार्बोनिल समूह के समीपस्थ कार्बन परमाणु अल्फा कार्बन परमाणु तथा श्रृंखला में अगला परमाणु बीटा कार्बन परमाणु कहलाता है|
 

(B) I.U.P.A.C.पद्धति -
इस पद्धति में एल्डिहाइडों को एल्केनल(alkanal) कहते हैं| इनका नामकरण संगत एल्केन के नाम के अंत से -e हटाकर तथा -अल (-al) जोड़कर करते हैं |
                 -e 
Alkane -------------> Alkanal 
                 + al 

जैसे-
HCHO       मेथेनल 
CH3CHO  एथेनल 
C2H5CHO प्रोपेनल 

(1) एेरोमैटिक एल्डिहाइडों की नाम पद्धति -
एरोमेटिक एल्डिहाइड निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(a) एरोमेटिक एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह सीधे बेंजीन वलय से जुड़ा रहता है| इस परिवार का सरलतम सदस्य बेन्जेल्डिहाइड कहलाता है| बेंजीन वलय  पर -CHO समूह के सापेक्ष प्रतिस्थापियों की स्थिति ऑर्थ्रो या o-(1,2के लिए ), मेटा या m-(1,3के लिए ) तथा पैरा या p-(1,4 के लिए ) पूर्व लग्नो द्वारा प्रदर्शित की जाती है|
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड जिनमे -CHO समूह पार्श्व श्रृंखला मे पाया जाता हैं| 
जैसे -
 कुछ सरल एलिफेटिक तथा एरोमेटिक एल्डिहाइड के सामान्य तथा I.U.P.A.C. नाम निम्न प्रकार है-