एल्डिहाइडों और कीटोनों के मुख्य रासायनिक गुण निम्न प्रकार हैं-
(A) नाभिकरागी योगात्मक अभिक्रियायें-
एल्डिहाइडों और कीटोनों में उपस्थित कार्बोनिल समूह का कार्बन परमाणु इलेक्ट्रॉन न्यून होता है तथा उस पर आंशिक धन आवेश होता है इसलिए यह किसी नाभिक स्नेही अभिकर्मक से सरलता से क्रिया कर लेता है| यही कारण है कि एल्डिहाइड और कीटोन नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये देते हैं|
एल्डिहाइड कीटोन से अधिक क्रियाशील होते हैं इसके मुख्य कारण निम्न है-
👉 प्रेरणिक प्रभाव- एक एल्किल समूह इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव या +I प्रभाव प्रदर्शित करता है| इसलिए कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर एक या अधिक एल्किल समूह की उपस्थिति धन आवेश के परिमाण को कम कर देगी तथा इस प्रकार नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रिया के प्रति कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता कम हो जाएगी|
👉 त्रिविम प्रभाव- एल्डिहाइड तथा कीटोन में कार्बोनिल समूह से लगे एल्किल समूह कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर नाभिक स्नेही अभिकर्मक के पहुंचने में रुकावट उत्पन्न करते हैं यह कार्बोनिल समूह की क्रियाशीलता को कम कर देता है इसे त्रिविम प्रभाव कहते हैं|
नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं के कुछ मुख्य उदाहरण निम्न है-
(1) HCN का योग -
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों HCN के एक अणु का क्षारीय उत्प्रेरक की उपस्थिति में योग करते हैं|
(2) सोडियम बाईसल्फाइट का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड तथा कुछ मेथिल कीटोन सोडियम बाईसल्फाइट के संतृप्त जलीय विलियन से क्रिया कर क्रिस्टलीय बाईसल्फाइट योगात्मक यौगिक बनाते हैं|
(3) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक का योग-
लगभग सभी एल्डिहाइड और कीटोन ग्रिगनार्ड अभिकर्मक को से अभिक्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं यह योगात्मक उत्पाद जल अपघटन पर एल्कोहल उत्पन्न करते हैं|
(4) ऐल्कोहल का योग-
एल्डिहाइड ( न कि कीटोन) शुष्क HCl गैस की उपस्थिति में एल्कोहल से क्रिया करके ऐसीटल बनाते हैं|
जब एक एल्डिहाइड अल्कोहल के साथ क्रिया करता है तो अल्कोहल का अणु एल्डिहाइड के कार्बोनिल समूह से योग करता है तथा योगात्मक यौगिक बनाता है जिसे हेमिऐसिटल कहते हैं| हेमिऐसिटल अस्थाई होने के कारण तुरंत एल्कोहल के दूसरे अणु के साथ क्रिया करता है तथा स्थाई ऐसीटल बनाता है|
एल्डिहाइड डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय ऐसीटल बनाते हैं|
कीटोन भी इस प्रकार की क्रियाएं देते हैं तथा उपरोक्त परिस्थितियों में डाईहाइड्रिक एल्कोहल के साथ क्रिया कर चक्रीय कीटल बनाते हैं|
(B) जल निष्कासन सन्निहित नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाये -
(1) अमोनिया का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों अमोनिया के साथ नाभिक स्नेही योगात्मक अभिक्रियाएं देते हैं-
(2) अमोनिया के व्युत्पन्नों का योग-
एल्डिहाइड तथा कीटोन अमोनिया के कुछ व्युत्पन्नों जैसे हाइड्रोकसिल ऐमीन, हाइड्राजीन, फेनिल हाइड्रजीन आदि के साथ दुर्बल अम्लीय माध्यम में क्रिया कर योगात्मक उत्पाद बनाते हैं|
(C) अपचयन -
(1) एल्कोहल में अपचयन-
एल्डिहाइड और कीटोन को अल्कोहल में Ni, Pt, Pd आदि की उपस्थिति में उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण के द्वारा या अपचायकों के प्रयोग द्वारा अपचयित करने पर एल्डिहाइड प्राथमिक अल्कोहल देते हैं जबकि कीटोन द्वितीयक अल्कोहल देते हैं| जैसे-
(2) हाइड्रोकार्बन में अपचयन-
(a) क्लेमैन्सन अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को जिंक एमलगम व सांद्र HCl के साथ अभिकृत करते हैं तो वे अपने संगत हाइड्रोकार्बन में अपचयित हो जाते हैं यह क्लेमैन्सन अपचयन कहलाता है|
(b) वुल्फ - किशनर अपचयन -
जब एल्डिहाइड और कीटोन को एथिलीन ग्लाइकॉल विलायक में 453- 473 K ताप पर हाइड्राजीन तथा KOH के मिश्रण के साथ गर्म करते हैं तो इनके संगत हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं|
(D) ऑक्सीकरण अभिक्रियाये-
(1) कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड और कीटोन दोनों को कार बॉक्स लिक अम्लों में ऑक्सिक्रेट किया जा सकता है परंतु इनका ऑक्सीकरण व्यवहार भिन्न होता है|
(a) एल्डिहाइड का ऑक्सीकरण-
एल्डिहाइड को साधारण ऑक्सीकारक, जैसे- KMnO4, K2Cr2O7, आदि की क्रिया द्वारा कार्बोक्सिलिक अम्लों में सरलता से ऑक्सीकृत किया जा सकता है| प्राप्त कार्बोक्सिलिक अम्ल में मूल एल्डिहाइड के बराबर कार्बन परमाणु होते हैं|
CH3CHO + O ----> CH3COOH
चूँकि एल्डिहाइड सरलता से ऑक्सीकृत हो जाते हैं इसलिए यह प्रबल अपचायक की तरह कार्य करते हैं तथा अनेक ऑक्सीकारको, जैसे- टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन, बैनेडिक्ट विलयन, आदि को अपचयित कर सकते हैं| एल्डिहाइड की इन अभिकर्मकों के साथ क्रिया निम्न प्रकार हैं-
👉टॉलन अभिकर्मक के साथ क्रिया -
टॉलन अभिकर्मक सिल्वर नाइट्रेट का अमोनियामय विलयन होता है|
जब किसी एल्डिहाइड को टॉलन अभिकर्मक के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है, जो अमोनिया के साथ संयोग कर अमोनियम लवण बनाता है, जबकि टॉलन अभिकर्मक धात्विक सिल्वर में अपचयित हो जाता है| सिल्वर परखनली की आंतरिक दीवार में एकत्रित होकर रजत दर्पण बनाती है|
CH3CHO + 2[Ag(NH3)2]OH ----> CH3COONH4 + 2Ag + 3NH3 + H2O
👉 फेहलिंग विलयन के साथ अभिक्रिया-
फेहलिंग विलयन क्यूप्रिक आयन (Cu++) का टारट्रेट आयन के साथ बने संकर यौगिक का क्षारीय विलयन होता है| इसे बनाने के लिए फेहलिंग विलयन A(CuSO4 का जलीय विलयन) को फेहलिंग विलयन B (NaOH तथा रोशैल लवण अर्थात सोडियम पोटैशियम टारट्रेट विलयन) में तब तक मिलाते हैं जब तक गहरा नीला विलयन प्राप्त नहीं हो जाता है|
जब किसी एलिफेटिक एल्डिहाइड को फेहलिंग विलयन के साथ गर्म किया जाता है तो एल्डिहाइड अपने संगत कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि फेहलिंग विलयन में उपस्थित क्यूप्रिक आयन (Cu++) का क्यूप्रस आयन (Cu+) मे अपचयन हो जाता है, जो लाल ऑक्साइड(Cu2O) के रूप में अवक्षेपित हो जाता है|
RCHO + 2Cu++ + 5OH- ------> RCOO- + Cu2O + 3H2O
(b) कीटोन का ऑक्सीकरण-
कीटोन में कार्बोनिल समूह से संबंधित कोई हाइड्रोजन परमाणु संलग्नित नहीं होता है इसलिए कीटोन कठिनता से ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन टॉलन अभिकर्मक, फेहलिंग विलयन तथा बेनेडिक्ट विलयन को अपचयित नहीं करते हैं|
कीटोन प्रबल ऑक्सीकारकों जैसे- HNO3, KMnO4, K2Cr2O7 आदि के द्वारा विशेष परिस्थिति में ऑक्सीकृत होते हैं| कीटोन के ऑक्सीकरण में कार्बोनिल समूह के किसी एक ओर स्थित अल्फा कार्बन तथा कार्बोनिल कार्बन के बीच कार्बन- कार्बन बंध टूट जाता है जिसके कारण मूल कीटोन की तुलना में कम कार्बन परमाणु युक्त कार्बोक्सिलिक अम्लों का मिश्रण प्राप्त होता है जैसे-
[O]
CH3COCH3 ---------------> HCOOH + CH3COOH
(2) सोडियम हाइपोहैलाइट के साथ ऑक्सीकरण (हैलोफॉर्म अभिक्रिया)-
एल्डिहाइड और कीटोन,जिनमे CH3-CO- समूह पाया जाता है, सोडियम हाइपोहैलाइट(NaOX) के द्वारा भी ऑक्सीकृत होकर हैलोफॉर्म तथा कार्बोक्सिलिक अम्ल का लवण देते हैं| यह हैलोफॉर्म अभिक्रिया कहलाती है |
R-CO-CH3 + 3NaOX ------> R-CO-CX3 + 3NaOH
R-CO-CX3 + NaOH ------> CHX3 + R-COONa
जैसे -
CH3-CO-CH3 + 3NaOCl ------> CH3-CO-CCl3 + 3NaOH
CH3-CO-CCl3 + NaOH ------> CHCl3 + CH3-COONa
👉 जब अभिक्रिया सोडियम हाइपोआयोडाइट के द्वारा होती है तो बसंती पीला आयोड़ोंफार्म अवक्षेप के रूप में प्राप्त होता है| इस अभिक्रिया को आयोड़ोंफार्म परीक्षण कहा जाता है|
(E) एल्फा - H के कारण होने वाली अभिक्रियाएं-
(1) ऐल्डॉल संघनन -
एल्डिहाइड और कीटोन जिनमें कम से कम एक एल्फा- हाइड्रोजन परमाणु पाया जाता है,तनु क्षार जैसे- NaOH, Ba(OH)2 आदि की उपस्थिति में संघनन कर बीटा- हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड या कीटोन देते हैं| चूँकि बीटा-हाइड्रोक्सी एल्डिहाइड में एल्डिहाइड तथा एल्कोहल दोनों समूह पाए जाते हैं इसलिए यह सामान्यतः ऐल्डॉल कहलाते हैं| अतः यह अभिक्रिया एल्डोल संघनन कहलाती है|
👉यदि दो कीटोन आपस मे संघनन करे तो भी ऐल्डॉल बनते हैं |
(2) क्रॉस ऐल्डॉल संघनन -
यदि ऐल्डॉल संघनन अल्फा- हाइड्रोजन युक्त भिन्न एल्डिहाइड या भिन्न कीटोन या एक एल्डिहाइड तथा एक कीटोन के अणुओं के बीच होता है तो इस अभिक्रिया को क्रॉस एल्डोल संघनन या मिश्रित एल्डोल संघनन कहा जाता है|
(E) अन्य अभिक्रियाएं-
(1) कैनिजारो अभिक्रिया-
यह अभिक्रिया वे एल्डिहाइड देते हैं जिनमें अल्फा- हाइड्रोजन परमाणु नहीं पाया जाता है, जैसे- फॉर्मेल्डिहाइड बेंजेल्डिहाइड आदि|
जब अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड को सोडियम या पोटैशियम हाइड्रोक्साइड के सांद्र विलयन के साथ गर्म किया जाता है तब विअनुपातीकरण के फल स्वरुप स्वतः ऑक्सीकरण- अपचयन हो जाता है| अभिक्रिया में एल्डिहाइड के दो अणु भाग लेते हैं| इनमें से एक कार्बोक्सिलिक अम्ल मे ऑक्सीकृत हो जाता है जबकि दूसरा एल्कोहल में अपचयित हो जाता है| अभिक्रिया में बना कार्बोक्सिलिक अम्ल क्षार के साथ संयोग कर लवण बनाता है| अल्फा- हाइड्रोजन रहित किसी एल्डिहाइड का एक साथ ऑक्सीकरण तथा अपचयन कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है|
जैसे -
सांद्र NaOH
HCHO + HCHO ---------------> CH3OH + HCOONa
सांद्र NaOH
C6H5CHO + C6H5CHO --------------->C6H5CH2OH + C6H5COONa
(2) क्रॉस्ड कैनिजारो अभिक्रिया-
जब अल्फा-H रहित दो भिन्न-भिन्न एल्डिहाइड के बीच कैनिजारो अभिक्रिया होती है तब वह क्रॉस्ड कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है | जैसे-
सांद्र NaOH
C6H5CHO + HCHO --------------->C6H5CH2OH + HCOONa
(3) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
ऐरोमेटिक एल्डिहाइड का -CHO समूह मेटा निर्देशक(m-) होता है| अतः यह इलेक्ट्रॉनरागी को मेटा स्थिति पर प्रतिस्थापन अभिक्रिया कराता है|