फिनॉल की अभिक्रियाएं तीन वर्गों में बांटी जा सकती हैं-
(A) फिनॉलिक समूह के कारण अभिक्रियाएं
(B) बेंजीन वलय की अभिक्रियाएं
(C) विशिष्ट अभिक्रियाये
(A) फिनॉलिक समूह के कारण अभिक्रियाएं -
(1) फिनॉल की अम्लीय प्रकृति-
फिनॉल अम्लीय प्रवृत्ति प्रकट करते हैं| यह नीले लिटमस को लाल कर देते हैं तथा क्षारों से क्रिया करके फिनॉक्साइड या फिनेट बनाते हैं|
फिनॉल क्षारों से क्रिया करके लवण और जल बनाते हैं
C6H5OH + NaOH -------> C6H5ONa + H2O
फिनॉल एल्कोहल से प्रबल अम्ल होते हैं क्योंकि फिनॉल में अनुनाद संरचनाये पाई जाती है|
(2) अमोनिया के साथ क्रिया-
फिनॉल 673 K पर निर्जल जिंक क्लोराइड की उपस्थिति में अमोनिया से क्रिया करके ऐनिलीन बनाती है|
ZnCl2
C6H5OH + NH3 ---------------> C6H5NH2 + H2O
(3) जिंक के साथ क्रिया-
फिनॉल को जिंक चूर्ण के साथ गर्म करने से ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन बनता है|
गर्म
C6H5OH + Zn ---------------> C6H6 + ZnO
(4) अम्ल क्लोराइड से क्रिया (ऐसिलीकरण)-
फिनॉल एसिटिल क्लोराइड (पिरीडीन की उपस्थिति में) से क्रिया करके एस्टर बनाते हैं|
पिरीडीन
C6H5OH + CH3COCl -------------> C6H5COOCH3 + HCl
(5) बेंज़ोइल क्लोराइड से क्रिया (बेंजोइलीकरण)-
फिनॉल को जलीय NaOH की उपस्थिति में बेंज़ोइल क्लोराइड से क्रिया कराके फेनिल बेंजोएट प्राप्त करते हैं |
NaOH
C6H5OH + C6H5COCl ------------> C6H5COOC6H5 + HCl
* यह क्रिया शॉटन बमन अभिक्रिया कहलाती है |
(B) बेंजीन वलय की अभिक्रियाएं-
फिनॉल इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाए देता है| -OH समूह आर्थ्रों तथा पैरा निर्देशक समूह होता है|अतः -OH समूह एरोमेटिक वलय को इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन के लिए आर्थ्रों तथा पैरा स्थानों पर सक्रिय करता है|
(1) हैलोजनीकरण -
फिनॉल हैलोजनीकरण अभिक्रिया के फलस्वरूप पॉली हैलोजन व्युत्पन्न बनाते हैं| फिनॉल की जलीय ब्रोमीन विलयन के आधिक्य से क्रिया के बाद 2,4,6 ट्राइब्रोमोफिनॉल बनता है|
(2) सल्फोनीकरण -
अभिक्रिया ताप के आधार पर फिनॉल के सल्फोनीकरण से ऑर्थो(o ) समावयवी या पैरा समावयवी (p) प्राप्त होते हैं| सामान्यतः निम्न ताप पर o-समावयवी तथा उच्च ताप पर p-समावयवी प्राप्त होते हैं|
(3) नाइट्रीकरण -
अभिक्रिया परिस्थितियों के आधार पर फिनॉल विविध नाइट्रो प्रतिस्थापित उत्पाद बनाते हैं| फिनॉल 293 क पर HNO3 के साथ 2 तथा 4 नाइट्रो फिनॉल बनाता है| यह सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में सांद्र HNO3 के साथ 2,4,6- ट्राई नाइट्रो फिनॉल बनाता है|
(4) फ्रीडल - क्राफ्ट्स एल्किलीकरण -
फिनॉल की निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में एल्किल हैलाइडों से क्रिया कराने पर एल्किल प्रतिस्थापित फिनॉल प्राप्त होते हैं| जिनमें सामान्यता p- समावयवी मुख्य उत्पाद होता है| इस क्रिया को फ्रिडल क्राफ्ट्स एल्किलीकरण कहते हैं|
(C) फिनॉलों की विशिष्ट अभिक्रियाएं-
(1) कोल्बे - श्मिट अभिक्रिया -
इस अभिक्रिया में CO2 गैस को 400 K तथा 4 से 7 वायुमंडल दाब पर सोडियम फीनेट पर प्रभावित करते हैं तथा तनु HCl से हम अम्लीकृत करते हैं जिससे सैलिसिलिक अम्ल बनता है| इस विधि का प्रयोग सैलिसिलिक अम्ल के औद्योगिक उत्पादन में किया जाता है|
सैलिसिलिक अम्ल, 2- एसिटॉक्सीबेंजोइक अम्ल (एस्प्रिन) निर्माण के लिए प्रारंभिक पदार्थ है| एस्प्रिन पीड़ाहारी तथा ज्वरनाशी औषधि है|
(2) राइमर - टीमन अभिक्रिया -
340 K पर जलीय सोडियम या पोटैशियम हाइड्रोक्साइड की उपस्थिति में फिनॉल तथा क्लोरोफॉर्म की क्रिया करा कर जल अपघटन कराने पर 2- हाइड्रोक्सी बेन्ज़ेलडिहाईड (सैलिसिलैलडिहाईड) मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है| इस अभिक्रिया को राइमर - टीमन अभिक्रिया कहते हैं|
(3) हाइड्रोजनीकरण -
फिनॉल Ni उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजनीकरण द्वारा 423-427 K पर संगत साइक्लोहेक्सेनॉल देता है|
(4) ऑक्सीकरण -
फिनॉल सरलता से ऑक्सीकृत हो जाते हैं| वायु व प्रकाश की उपस्थिति में फिनॉल p-benzoquinone में ऑक्सीकृत हो जाता है| जो पुनः फिनॉल के आधिक्य से क्रिया करके लाल रंग का योग उत्पाद बनाता है जिसे फिनोक्विनॉन कहते हैं|
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