Advance Chemistry

Monday, September 14, 2020

कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण

कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण 

(1) ऐलिफैटिक मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -

(a) सामान्य विधि -
मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लों के सामान्य नाम प्रकृति में उनकी प्राप्ति के स्रोत पर आधारित होते हैं जैसे HCOOH  को फार्मिक अम्ल कहा जाता है, क्योंकि यह सर्वप्रथम लाल चीटियों (लैटिन में फॉरमिका का अर्थ लाल चींटी होता है) से प्राप्त किया गया था| ऐसीटिक (CH3COOH)  को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह सिरके (लैटिन में एसिटम का अर्थ सिरका होता है) से प्राप्त किया गया था| इसी प्रकार CH3CH2CH2COOH को ब्यूटाइरिक अम्ल नाम दिया गया क्योंकि इसकी उत्पत्ति मक्खन (लैटिन में ब्यूटाइरम का अर्थ मक्खन होता है) से हुई थी|
           सामान्य विधि में श्रृंखला में उपस्थित प्रतिस्थापनों का स्थान ग्रीक अक्षर अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है| कार्बोक्सिलिक समूह से अगले कार्बन परमाणु को अल्फा तथा इसके बाद के कार्बन परमाणु को बीटा,गामा, डेल्टा आदि नाम निम्न प्रकार दिए जाते हैं-

(b) I. U. P. A. C. पद्धति -
इस पद्धति में मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों को एल्केनोइक अम्ल नाम दिया जाता है| किसी अम्ल का नाम संगत मूल एल्केन के नाम से अंतिम 'e' को अनुलग्न 'ओइक अम्ल' के द्वारा प्रतिस्थापित कर लिखा जाता है|
                 -e 
Alkane ------------> Alkanoic acid
                +al  

जैसे -
HCOOH   Methanoic acid 
CH3COOH   Ethanoic acid 
CH3CH2CH2COOH   Butanoic acid 
(2) ऐलिफैटिक डाईकार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -
डाईकार्बोक्सिलिक अम्लों के सामान्य नाम उनकी उत्पत्ति के स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं|
 आईयूपीएसी पद्धति में डाईकार्बोक्सिलिक  का नाम एल्केनडाईओइक अम्ल (alkanedioic acid) दिया जाता है|
जैसे -
COOH 
 |             Ethane-1,2-dioic acid 
COOH 

CH2COOH 
 |               Butane-1,4-dioic acid 
CH2COOH 

(3) ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्लों का नामकरण -
सरलतम मोनोकार्बोक्सिलिक ऐरोमैटिक अम्ल C6H5COOH है | सामान्य तथा I. U. P. A. C. पद्धति में इसे बेंजोइक अम्ल के नाम से पुकारा जाता है| यह उन अन्य  मोनोकार्बोक्सिलिक ऐरोमैटिक अम्ल का जनक माना जाता है, जिनमें -COOH  समूह बेंजीन रिंग से सीधा जुड़ा होता है| प्रतिस्थापित अम्लों का नाम लिखने के लिए मूल अम्ल के नामों में प्रतिस्थापन के नामों को पूर्व लग्न के रूप में लिखा जाता है तथा उनके स्थान को उचित अंकों या अनुलग्न ऑर्थ्रो (o-, स्थान 1व 2  के लिए), मेटा(m-, स्थान 1 व 3 के लिए) या पैरा(p-, स्थान 1 व 4 के लिए) के द्वारा व्यक्त करते हैं|

Sunday, September 13, 2020

ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड व कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड व कीटोन के निर्माण की सामान्य विधियां

(1) एल्कोहॉल से -
(a) ऑक्सीकरण के द्वारा -
अल्कोहल का अम्लीय K2Cr2O7 या KMnO4  के द्वारा नियंत्रित ऑक्सीकरण करने पर एल्डिहाइड व कीटोन बनते हैं|
  👉  एल्डिहाइड प्राथमिक अल्कोहल के नियंत्रित ऑक्सीकरण के द्वारा बनते हैं जैसे-
                          K2Cr2O7/H2SO4
CH3CH2OH +O  ---------------------->  CH3CHO + H2O 
इस प्रकार बने एल्डिहाइडों को कार्बोक्सिलिक अम्लों में ऑक्सीकृत होने से पहले ही आसवन विधि द्वारा अलग कर लिया जाता है|
👉 द्वितीयक अल्कोहल का अम्लीय K2Cr2O7 या KMno4 के द्वारा ऑक्सीकरण करने पर कीटोन प्राप्त होते हैं जैसे-
                          K2Cr2O7/H2SO4
CH3CHOHCH3 +O  ----------------->  CH3COCH3 + H2O 

(b) ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा-
एल्डिहाइड तथा कीटोन को ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है| इसके अंतर्गत उचित ऐल्कोहल की वाष्प को अपचयित कॉपर के ऊपर 573K  पर प्रवाहित किया जाता है|
👉 एल्डिहाइड को प्राथमिक ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जाता है जैसे-
                   Cu 
CH3OH ---------------> HCHO + H2
                   573K 

                       Cu 
CH3CH2OH ------>CH3CHO+H2
                     573K 
 👉कीटोन को द्वितीयक ऐल्कोहल के उत्प्रेरकीय विहाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जैसे-
                                Cu 
CH3CHOHCH3 ---------------> CH3COCH3  + H2


(2) कार्बोक्सिलिक अम्लों से -
(a) कार्बोक्सिलिक अम्लों के कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा-
एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों को कार्बोक्सिलिक अम्लों के कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा बनाया जा सकता है|
👉 जब किसी कार्बोक्सिलिक अम्ल के कैल्शियम लवण तथा कैल्शियम फॉर्मेट के मिश्रण का शुष्क आसवन किया जाता है तो एक एल्डिहाइड प्राप्त होता है|
                       गर्म 
(HCOO)2Ca -----------> HCHO + CaCO3 

                                                  गर्म 
(CH3COO)2Ca + (HCOO)2Ca -----------> 2CH3CHO + 2CaCO3  

👉 सममित कीटोन को कार्बोक्सिलिक अम्लों के केवल कैल्शियम लवण के शुष्क आसवन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|जैसे -
                             गर्म 
(CH3COO)2Ca -----------> CH3COCH3 + CaCO3 

👉 असममित कीटोन को दो भिन्न कार्बोक्सिलिक अम्लों  (फार्मिक अम्ल के अतिरिक्त) के कैल्शियम लवणों के मिश्रण के आसवन के द्वारा बनाया जा सकता है जैसे-        


(CH3CH2COO)2Ca +(CH3COO)2Ca ----------------------> CH3CH2COCH3 + CaCO3 

(b) कार्बोक्सिलिक अम्लों के उत्प्रेरकीय अपघटन के द्वारा -
इस विधि में अम्लो की वाष्प को 573 K पर MnO  के ऊपर प्रवाहित करते हैं|
                                        MnO/573K 
CH3COOH + HCOOH -------------------> CH3CHO + CO2 + H2O 

CH3COOH + CH3CH2COOH -------------> CH3COCH2CH3 + CO2 + H2O 
👉 कीटोन बनाने के लिए फार्मिक अम्ल का प्रयोग नहीं करते हैं|


(3) एसिड क्लोराइड से -
(a) रोजेनमुंड अभिक्रिया द्वारा एल्डिहाइड का निर्माण-
एल्डिहाइड को एसिड क्लोराइड के उत्प्रेरकीय  हाइड्रोजनीकरण के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है| यह रोजेनमुंड अभिक्रिया कहलाती है| इस विधि में हाइड्रोजन गैस को उबलती हुई जाइलीन में निर्मित एसिड क्लोराइड के विलयन में बेरियम सल्फेट पर आधारित पैलेडियम उत्प्रेरक, जो क्यूनोलिन या सल्फर के द्वारा आंशिक रूप से विषाक्त होता है, की उपस्थिति में प्रवाहित करते हैं|
                        Pd/BaSO4, S 
CH3COCl + H2 -----------------> 
CH3CHO + HCl 
👉 यदि उत्प्रेरक को विषाक्त ना बनाया जाए तो अभिक्रिया में बना एल्डिहाइड सरलता से ऐल्कोहल में अपचयित हो जाएगा तथा एल्डिहाइड की जगह पर ऐल्कोहल प्राप्त होगा|
👉 इस विधि द्वारा फॉर्मेल्डिहाइड नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि कमरे के ताप पर फॉर्मिल क्लोराइड अस्थायी  होता है|
  (b)  कीटोन को रोजेनमुंड अभिक्रिया के द्वारा एसिड क्लोराइड सेेे प्राप्त नहीं किया जा सकता है फिर भी कीटोन को एसिड क्लोराइड  की  डाई मेथिल कैडमियम के साथ शुष्क ईथर  की उपस्थिति में अभिक्रिया करा कर प्राप्त किया जा सकता है | जैसे -
2CH3COCl + (CH3)2Cd ---------> 2CH3COCH3 + CdCl2 

(4) एल्कीन से -

कुछ एल्डिहाइड तथा कीटोन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाए जा सकते हैं|
👉 एल्डिहाइड को उन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है जिनमें द्वि- बंध  निर्माण में भाग लेने वाले कार्बन परमाणु पर श्रृंखला नहीं होते हैं|
👉 कीटोन को उन एल्कीन के अपचयनात्मक ओजोनीकरण के द्वारा बनाया जा सकता है जिनमें द्वि बंध युक्त एक या दोनों कार्बन परमाणुओं पर श्रृंखला होती हैं|
(5) ऐल्काइन से -
एल्डिहाइड तथा कीटोन को एल्काइन के जलयोजन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|
👉जब ऐसीटिलीन को 333 K  पर 1% HgSO4  युक्त तनु H2SO4 में प्रवाहित किया जाता है तो यह जलयोजन के कारण ऐसीटेल्डिहाइड बनाती है|
      -                      तनु H2SO4
CH=CH + H2O ------------------>
                           HgSO4 
[CH2=CHOH] --------> CH3CHO 
 एसिटिलीन के अतिरिक्त किसी अन्य एल्काइन की  जब 1% HgSO4 युक्त तनु H2SO4 के साथ क्रिया कराई जाती है तो जल के एक अणु (मारकोनिकॉफ के नियमानुसार) का योग होता है तथा एक कीटोन प्राप्त होता है जैसे-


          -                        तनु H2SO4
CH3C=CH + H2O ------------------>
                                 HgSO4 
[CH3COH=CH2] --------> CH3COCH3
         

Thursday, September 10, 2020

एल्डिहाइडों,कीटोनों व कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण

एल्डिहाइडों,कीटोनों व कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण 

(A) एल्डिहाइडों का वर्गीकरण -
एल्डिहाइडों को उनमें उपस्थित कार्बन की श्रृंखला के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है-
(a) ऐलिफैटिक एल्डिहाइड  
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड  

(a) ऐलिफैटिक एल्डिहाइड -
 ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO समूह ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला से जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2CHO 
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड-
ऐसे एल्डिहाइड जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक एल्डिहाइड कहा जाता है|
 एरोमेटिक एल्डिहाइड निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह सीधे बेंजीन रिंग से जुड़ा होता है|
(2) ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह बेंजीन रिंग कि किसी पार्श्व श्रृंखला से जुड़ा होता है| इन्हे एरिल एल्किल एल्डिहाइड भी कहा जाता है|  
--------------------------------------------------

(B) कीटोनो  का वर्गीकरण -
कीटोनों में -CO  समूह से लगे एल्किल या एरिल समूहों के आधार पर निम्न दो भागों में बांटा जाता है-
 (1)सममित कीटोन या सरल कीटोन 
(2)असममित कीटोन या मिश्रित कीटोन 

 (1)सममित कीटोन या सरल कीटोन -
सममित कीटोन वे कीटोन होते हैं जिनमें  -CO से समान मात्रा में दोनों तरफ एल्किल या एरिल समूह जुड़े होते हैं| 
जैसे - 
CH3-CO-CH3 
C6H5-CO-C6H5
(2)असममित कीटोन या मिश्रित कीटोन -
 असममित कीटोन वे कीटोन होते हैं जिनमें -CO  समूह के दोनों तरफ अलग - अलग एरिल या एल्किल समूह जुड़े होते हैं|
जैसे -
CH3-CO-C2H5
--------------------------------------------------

 कीटोनों को उनमें उपस्थित एलिफेटिक श्रृंखला या एरोमेटिक श्रृंखला के आधार पर भी निम्न दो प्रकार से बांटा जा सकता है-
(a) ऐलिफैटिक कीटोन   
(b)ऐरोमैटिक कीटोन   

(a) ऐलिफैटिक कीटोन  -
 ऐसे कीटोन  जिनमें -CO समूह के दोनों ओर केवल ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक कीटोन कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2-CO-CH3
(b)ऐरोमैटिक कीटोन -
ऐसे कीटोन  जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक कीटोन  कहा जाता है|
 एरोमेटिक कीटोन निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) एरिल एल्किल कीटोन -
ऐसे कीटोन  जिनमें -CO  समूह के एक ओर  बेंजीन रिंग व दूसरी ओर एल्किल समूह  होता है|
जैसे - 
CH3CH2-CO-C6H5
(2) डाई एरिल कीटोन -
ऐसे एल्डिहाइड जिनमें -CO समूह के दोनों ओर केवल बेंजीन रिंग जुड़ा होता है| इन्हे डाई एरिल कीटोन कहा जाता है|  
जैसे -
C6H5-CO-C6H5

--------------------------------------------------
(C) कार्बोक्सिलिक अम्लों का वर्गीकरण -

कार्बोक्सिलिक अम्लों  को उनमें उपस्थित कार्बन की श्रृंखला के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है-
(a) ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल 
(b)ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल 

(a) ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल -
 ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें            -COOH समूह ऐलिफैटिक कार्बन श्रृंखला से जुड़ा होता है, उन्हें ऐलिफैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2COOH  
(b)ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल- 
ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें कम से कम एक बेंजीन रिंग अवश्य उपस्थित होती है उन्हें एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
 एरोमेटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल  निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें      -COOH  समूह सीधे बेंजीन रिंग से जुड़ा होता है|
(2) ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें       -COOH  समूह बेंजीन रिंग कि किसी पार्श्व श्रृंखला से जुड़ा होता है|
 ------------------------------------------------

 कार्बोक्सिलिक अम्लों को उनमें उपस्थित -COOH की संख्या के आधार पर निम्न भागों में बांटा जा सकता है -
(1) मोनो कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल  जिनमें केवल एक ही -COOH समूह होता है उन्हें  मोनो कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH3CH2-COOH

(2) डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल जिनमें दो -COOH समूह होता है उन्हें डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH2-COOH
 |
CH2-COOH 

(3) ट्राई कार्बोक्सिलिक अम्ल-  ऐसे कार्बोक्सिलिक अम्ल जिनमें तीन -COOH समूह होता है उन्हें  ट्राई  कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाता है|
जैसे -
CH2-COOH
 |
CH2-COOH 
 |
CH2-COOH 


Saturday, September 5, 2020

कीटोनों का नामकरण ( Nomenclature of Ketones)

कीटोनों का नामकरण  -(Nomenclature of Ketones)-
कीटोनों के नामकरण की मुख्यतः दो विधियाँ हैं -
(1) साधारण पद्धति 
(2) I. U. P. A. C. पद्धति 

(1) साधारण पद्धति -
साधारण पद्धति में कीटोनो का नामकरण कीटो समूह से जुड़े एल्किल या एरिल  समूहों के नामों में कीटोन शब्द जोड़कर करते हैं| सरल या सममित कीटोनों का नामकरण डाई एल्किल (या एरिल) कीटोन के रूप में किया जाता है| असममित या मिश्रित कीटोनों के नामकरण में एल्किल या ऐरील समूहों को अंग्रेजी वर्णमाला क्रम में लिखकर कीटोन शब्द जोड़ते हैं| प्रथम सदस्य को एसीटोन कहते हैं|
जैसे -
CH3COCH3   डाईमेथिल कीटोन 
CH3COC2H5   एथिल  मेथिल कीटोन 

C2H5COC2H5   डाईएथिल कीटोन 


(2) I. U. P. A. C. पद्धति -
इस पद्धति में कीटोनों का नामकरण एल्केनोन(alkanone)  के रूप में किया जाता है|
                    -e
Alkane ------------------> Alkanone 
                 +one 

जैसे -
 CH3-CO-CH3   प्रोपेन -2-ओन 

Cl-CH2-CO-CH3                           1-क्लोरोप्रोपेन -2-ओन
 कुछ एलिफैटिक तथा एरोमैटिक कीटोनों के सामान्य तथा आईयूपीएसी नाम निम्नलिखित हैं-
 

एरोमेटिक कीटोन जिनमें कार्बोनिल समूह बेंजीन वलय से सीधे जुड़ा होता है, साधारण पद्धति में फीनोन कहलाते हैं|
 किसी विशेष यौगिक जिसमें एल्डिहाइड तथा कीटोन दोनों समूह उपस्थित हैं तब एल्डिहाइड समूह को वरीयता दी जाती है|
जैसे -

Friday, September 4, 2020

एल्डिहाइडों का नामकरण ( Nomenclature of Aldehydes )

एल्डिहाइडों का नामकरण  (Nomenclature of Aldehydes )
एल्डिहाइड निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं- 
(1) ऐलिफेैटिक एल्डिहाइड तथा 
(2) एेरोमेैटिक एल्डिहाइड

(1) एेलिफेैटिक एल्डिहाइडों की नाम पद्धति -
 एेलिफेैटिक एल्डिहाइडों का नाम रखने की निम्नलिखित दो पद्धतियां हैं-
(a) साधारण पद्धति-  साधारण पद्धति में एल्डिहाइडों के नाम उन अम्लों से प्राप्त होते हैं, जिनमें ये ऑक्सीकरण के दौरान परिवर्तित होते हैं| नामकरण में अम्ल के नाम से -इक अम्ल  हटाकर एेल्डिहाइड जोड़ते हैं|

                    -इक अम्ल 
CH3COOH --------------> CH3CHO 
                   + एेल्डिहाइड 
प्रतिस्थापी एल्डिहाइड के नामकरण में जनक श्रृंखला पर उपस्थित प्रतिस्थापियों  की स्थिति ग्रीक अक्षर अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि से प्रदर्शित करते हैं| एल्डिहाइड में कार्बोनिल समूह के समीपस्थ कार्बन परमाणु अल्फा कार्बन परमाणु तथा श्रृंखला में अगला परमाणु बीटा कार्बन परमाणु कहलाता है|
 

(B) I.U.P.A.C.पद्धति -
इस पद्धति में एल्डिहाइडों को एल्केनल(alkanal) कहते हैं| इनका नामकरण संगत एल्केन के नाम के अंत से -e हटाकर तथा -अल (-al) जोड़कर करते हैं |
                 -e 
Alkane -------------> Alkanal 
                 + al 

जैसे-
HCHO       मेथेनल 
CH3CHO  एथेनल 
C2H5CHO प्रोपेनल 

(1) एेरोमैटिक एल्डिहाइडों की नाम पद्धति -
एरोमेटिक एल्डिहाइड निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(a) एरोमेटिक एल्डिहाइड जिनमें -CHO  समूह सीधे बेंजीन वलय से जुड़ा रहता है| इस परिवार का सरलतम सदस्य बेन्जेल्डिहाइड कहलाता है| बेंजीन वलय  पर -CHO समूह के सापेक्ष प्रतिस्थापियों की स्थिति ऑर्थ्रो या o-(1,2के लिए ), मेटा या m-(1,3के लिए ) तथा पैरा या p-(1,4 के लिए ) पूर्व लग्नो द्वारा प्रदर्शित की जाती है|
(b)ऐरोमैटिक एल्डिहाइड जिनमे -CHO समूह पार्श्व श्रृंखला मे पाया जाता हैं| 
जैसे -
 कुछ सरल एलिफेटिक तथा एरोमेटिक एल्डिहाइड के सामान्य तथा I.U.P.A.C. नाम निम्न प्रकार है-

Saturday, August 29, 2020

फिनॉल के रासायनिक गुण (Chemical properties of Phenol)

फिनॉल के रासायनिक गुण ( Chemical properties of  Phenols )-
फिनॉल की अभिक्रियाएं तीन वर्गों में बांटी जा सकती हैं-
(A) फिनॉलिक समूह के कारण अभिक्रियाएं 
(B) बेंजीन वलय की अभिक्रियाएं
(C) विशिष्ट अभिक्रियाये 


(A) फिनॉलिक समूह के कारण अभिक्रियाएं -
(1) फिनॉल की अम्लीय प्रकृति-
फिनॉल अम्लीय  प्रवृत्ति प्रकट करते हैं| यह नीले लिटमस को लाल कर देते हैं तथा क्षारों से क्रिया करके फिनॉक्साइड या फिनेट  बनाते हैं|
फिनॉल क्षारों से क्रिया करके लवण और जल बनाते हैं
C6H5OH + NaOH -------> C6H5ONa + H2O 
फिनॉल  एल्कोहल से प्रबल अम्ल होते हैं क्योंकि फिनॉल में अनुनाद संरचनाये पाई जाती है|

(2) अमोनिया के साथ क्रिया-
फिनॉल 673 K पर निर्जल जिंक क्लोराइड की उपस्थिति में अमोनिया से क्रिया करके ऐनिलीन बनाती है|
                                ZnCl2
C6H5OH + NH3 ---------------> C6H5NH2 + H2O 

(3) जिंक के साथ क्रिया-
फिनॉल को   जिंक चूर्ण के साथ गर्म करने से ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन  बनता  है|
                               गर्म 
C6H5OH + Zn  ---------------> C6H6 + ZnO 

(4) अम्ल क्लोराइड से क्रिया (ऐसिलीकरण)-
फिनॉल एसिटिल क्लोराइड (पिरीडीन  की उपस्थिति में) से क्रिया करके एस्टर बनाते हैं|
                                        पिरीडीन  
C6H5OH + CH3COCl  -------------> C6H5COOCH3 + HCl 

 (5) बेंज़ोइल  क्लोराइड से क्रिया (बेंजोइलीकरण)-
फिनॉल को जलीय NaOH की उपस्थिति में  बेंज़ोइल क्लोराइड से क्रिया कराके फेनिल बेंजोएट प्राप्त करते  हैं |
 
                                         NaOH 
C6H5OH + C6H5COCl  ------------> C6H5COOC6H5 + HCl 
* यह क्रिया शॉटन बमन अभिक्रिया कहलाती है |
(B) बेंजीन वलय की अभिक्रियाएं-
फिनॉल इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाए देता है| -OH समूह आर्थ्रों तथा पैरा निर्देशक समूह होता है|अतः       -OH समूह एरोमेटिक वलय को इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन के लिए आर्थ्रों तथा पैरा स्थानों पर सक्रिय करता है|
(1) हैलोजनीकरण -
फिनॉल हैलोजनीकरण अभिक्रिया के फलस्वरूप पॉली हैलोजन व्युत्पन्न बनाते हैं| फिनॉल  की जलीय  ब्रोमीन विलयन के आधिक्य  से क्रिया के बाद 2,4,6 ट्राइब्रोमोफिनॉल बनता है|

(2) सल्फोनीकरण -
अभिक्रिया ताप के आधार पर फिनॉल  के सल्फोनीकरण से ऑर्थो(o ) समावयवी  या पैरा समावयवी (p) प्राप्त होते हैं| सामान्यतः निम्न ताप पर o-समावयवी तथा उच्च ताप पर p-समावयवी  प्राप्त होते हैं|


(3) नाइट्रीकरण -
 अभिक्रिया परिस्थितियों के आधार पर फिनॉल विविध नाइट्रो प्रतिस्थापित उत्पाद बनाते हैं| फिनॉल  293 क पर HNO3 के साथ 2 तथा 4 नाइट्रो फिनॉल बनाता है| यह सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में सांद्र HNO3 के साथ 2,4,6- ट्राई नाइट्रो फिनॉल  बनाता है|

(4) फ्रीडल - क्राफ्ट्स एल्किलीकरण -
फिनॉल की निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में एल्किल हैलाइडों से क्रिया कराने पर एल्किल प्रतिस्थापित फिनॉल  प्राप्त होते हैं| जिनमें सामान्यता p- समावयवी  मुख्य उत्पाद होता है| इस क्रिया को फ्रिडल क्राफ्ट्स एल्किलीकरण कहते हैं|

(C) फिनॉलों की विशिष्ट अभिक्रियाएं-
(1) कोल्बे - श्मिट अभिक्रिया -
इस अभिक्रिया में CO2 गैस को 400 K  तथा 4 से 7 वायुमंडल दाब पर सोडियम फीनेट पर प्रभावित करते हैं तथा तनु HCl  से हम अम्लीकृत करते हैं जिससे सैलिसिलिक अम्ल बनता है| इस विधि का प्रयोग सैलिसिलिक अम्ल के औद्योगिक उत्पादन में किया जाता है|
सैलिसिलिक अम्ल,  2- एसिटॉक्सीबेंजोइक अम्ल (एस्प्रिन) निर्माण के लिए प्रारंभिक पदार्थ है| एस्प्रिन पीड़ाहारी तथा ज्वरनाशी औषधि है|

(2) राइमर - टीमन अभिक्रिया -
340 K  पर जलीय सोडियम या पोटैशियम हाइड्रोक्साइड की उपस्थिति में फिनॉल तथा क्लोरोफॉर्म की क्रिया करा कर जल अपघटन कराने पर 2- हाइड्रोक्सी बेन्ज़ेलडिहाईड (सैलिसिलैलडिहाईड) मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है| इस अभिक्रिया को राइमर - टीमन अभिक्रिया कहते हैं|

(3) हाइड्रोजनीकरण -
फिनॉल Ni उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजनीकरण द्वारा 423-427 K  पर संगत साइक्लोहेक्सेनॉल  देता है|

(4) ऑक्सीकरण -
 फिनॉल  सरलता से ऑक्सीकृत हो जाते हैं| वायु व प्रकाश की उपस्थिति में फिनॉल p-benzoquinone में  ऑक्सीकृत हो जाता है| जो पुनः फिनॉल  के आधिक्य से क्रिया करके लाल रंग का योग उत्पाद बनाता है जिसे फिनोक्विनॉन कहते हैं|

Friday, August 21, 2020

फिनॉलों के भौतिक गुण(Physical properties of Phenols)

फिनॉलों के भौतिक गुण(Physical properties of Phenols)

फिनॉलों के महत्वपूर्ण भौतिक गुण निम्नलिखित हैं-
(1) भौतिक अवस्था(Physical state)-
शुद्ध फिनॉल  रंगहीन द्रव या ठोस होते हैं लेकिन ये  सामान्यतः वायुमंडलीय ऑक्सीकरण द्वारा लाल- भूरे हो जाते हैं|  फिनॉल में लाक्षणिक गंध पाई जाती है जिसे फिनालीय  गंध कहते हैं|
(2) विलेयता(Solubility )-
फिनॉल जल में अल्प विलय होते हैं अधिकांश फिनॉल प्रायोगिक रूप में जल में अविलय होते हैं बेंजीन वलय की  जल विरागी प्रवृत्ति के कारण फिनॉल जल में अविलय होते हैं| जबकि फिनॉल अल्कोहल इथर आदि में विलय होते हैं|
(3) क्वथनांक(Boiling point )-
 फिनॉलों  के क्वथनांक संगत हाइड्रोकार्बनों  तथा हैलोएरिनों  से उच्च होते हैं|
जैसे - C6H5OH का क्वथनांक 455 K 
C6H5Cl का क्वथनांक 405 K 
C6H5Br का क्वथनांक 439 K 
C6H6 का क्वनांक 353 K 
 ऐसा फिनॉलों  में अंतराअणुक  हाइड्रोजन आबंधन  के कारण होता है| 



Thursday, August 20, 2020

एल्कोहॉलों के रासायनिक गुण

एल्कोहॉलों के रासायनिक गुण
(Chemical properties of alcohols )-
सामान्यतः एल्कोहॉलों  की क्रियाओं को निम्नलिखित दो  वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(A) अभिक्रियायें  जिनमें O-H आबंध का विदलन होता है
(B) अभिक्रियायें  हैं जिनमें C-OH आबंध का विदलन होता है


(A) अभिक्रियायें  जिनमें O-H आबंध का विदलन होता है
(1) धातुओं  के साथ क्रियायें -
ऐल्कोहॉल  सक्रिय धातु जैसे सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, एलुमिनियम आदि से क्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करता है तथा निर्मित योगिक ऐल्कॉक्साइड कहलाते हैं|
2CH3OH + 2Na ------> 2CH3ONa +H2

2CH3CH2OH + Mg  ------> (CH3CH2O)2Mg +H2


(2) धात्विक हाइड्राइडों से क्रिया-
अल्कोहल धात्विक  हाइड्राइडों  से क्रिया करके ऐल्कॉक्साइड बनाते हैं तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है|
CH3OH + NaH  ------> CH3ONa +H2

CH3CH2OH + NaH  ------> CH3CH2ONa +H2

(3) कार्बोक्सीलिक अम्लों के साथ क्रिया ( एस्टरीकरण )-
अल्कोहल कार्बोक्सीलिक  अम्ल से क्रिया करके एस्टर बनाते हैं| इस प्रक्रिया को एस्टरीकरण कहते हैं| यह उत्क्रमणीय क्रिया होती है तथा इसे उपयुक्त उत्प्रेरक (सांद्र H2SO4, शुष्क HCl गैस आदि) की उपस्थिति में कराते हैं|
CH3-COOH + HOC2H5 <====> CH3-COOC2H5
जब HCl गैस का प्रयोग उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है तब यह क्रिया फिशर-स्पीयर एस्टरीकरण कहलाती है|

(4) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक के साथ क्रिया-
अल्कोहल ग्रिगनार्ड अभिकर्मक से क्रिया करके एल्केन बनाते हैं|
CH3O-H + C2H5-MgBr -----> C2H6 + Mg(OCH3)Br 


(B) अभिक्रियायें  हैं जिनमें C-OH आबंध का विदलन होता है-
(1) हैलोजन अम्लों की क्रिया-
अल्कोहल हैलोजन अम्ल से क्रिया करके हैलोएल्केन तथा जल बनाते हैं| हैलोजन अम्लों  की क्रियाशीलता का क्रम निम्न है-
HI > HBr > HCl 
(A)  HCl के साथ क्रिया-
कम क्रियाशीलता के कारण 1° तथा 2°अल्कोहलों तथा HCl की क्रिया के लिए कुछ उत्प्रेरक (निर्जल ZnCl2) की आवश्यकता होती है लेकिन 3° अल्कोहलों  की क्रिया के लिए उत्प्रेरक की आवश्यकता नहीं होती है|

CH3CH2OH + HCl   ------> CH3CH2Cl  +H2O 

(B)  HBr  के साथ क्रिया-
प्राथमिक अल्कोहलों के लिए उत्प्रेरक के रूप में सांद्र H2SO4 की सूक्ष्म मात्रा की आवश्यकता होती है जबकि द्वितीयक  तथा तृतीयक  अल्कोहलों  के लिए सांद्र H2SO4 की आवश्यकता नहीं होती है|
                                    सांद्र H2SO4
CH3CH2OH + HBr    ---------------> CH3CH2Br   +H2O 

(C)  HI के साथ क्रिया-
एल्किल आयोडाइड बनते हैं|
CH3CH2OH + HI   ------> CH3CH2I  +H2O 

(2) फास्फोरस हैलाइडों  के साथ क्रिया-
फास्फोरस हेलाइड जैसे- PCl5, PCl3, PBr3 अल्कोहलों  से क्रिया करके संगत हैलोएल्केन या एल्किल हैलाइड बनाते हैं|

CH3CH2OH + PCl5   ------> CH3CH2Cl  + POCl3 + HCl 

 3CH3OH + PCl3   ------> 3CH3Cl  +H3PO3 

(3) थायोनिल क्लोराइड  के साथ क्रिया-
थायोनिल क्लोराइड की पिरीडीन उपस्थिति में अल्कोहल से क्रिया कराने पर क्लोरो एल्केन बनते हैं|

CH3CH2OH + SOCl2   ------> CH3CH2Cl  +HCl + SO2 

(4) अमोनिया के साथ क्रिया-
अल्कोहल तथा अमोनिया की वाष्पों के मिश्रण को 633 K  पर गर्म एलुमिना (Al2O3) पर प्रवाहित करने पर प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक  ऐमीनों का मिश्रण प्राप्त होता है| 

CH3CH2OH + NH3   ------> CH3CH2NH2  +H2O 

CH3CH2NH2 +CH3CH2OH-----> (CH3CH2)2NH  +H2O 

 (CH3CH2)2NH +CH3CH2OH---> (CH3CH2)3N   +H2O 



Wednesday, August 5, 2020

Nomenclature of Alcohols

     Nomenclature of Alcohols

The naming of alcohols is takes place by several methods (systems) -

(1)Common system-

In this system the naming of alcohol is takes place by adding the word alcohol after the alkyl group.

For example-
 
CH3-OH ====> Methyl alcohol
CH3CH2-OH ====>Ethyl alcohol

Normal, iso , tertiary etc.  Prefixes are added in the nomenclature of isomer alcohols.

For example-

CH3CH2CH2OH ====> n- propyl alcohol

CH3CHOHCH3 =====> isopropyl alcohol


(2) I.U.P.A.C. system-

In this system the naming of alcohol is performed by the word "alkanol".
Rule of IUPAC are as follows-
(a) Choose the -OH bond containing longest Carbon chain.
(b) -e is replaced by the suffix -ol in the corresponding alkane chain.
(c) Numbering of Carbon chain is performed in that manner in which the -OH group containing carbon atom has minimum number.

For example-

CH3-OH ====> Methanol
CH3CH2-OH ====>Ethanol

CH3CH2CH2OH ==>Propane-1-ol

CH3CHOHCH3 ==> Propane-2-ol

Monday, August 3, 2020

Phenols

               Phenols
Phenols are the Hydroxy derivatives of aromatic hydrocarbon. 
When the hydrogen atom is replaced by a hydroxyl group    (-OH) from a benzene ring then phenol is formed.
                    -H
C6H5-H ---------------> C6H5-OH
                  +OH

Phenols are further classified into monohydric, dihydric, trihydric etc. on the basis of the number of hydroxyl group (-OH) which is attached to the benzene ring.
Classification of phenols-
(1) Monohydric phenol-
In this type of phenol only one hydroxyl group (-OH) is attached to the benzene ring.
For example-
C6H5-OH

(2) Dihydric phenol-
In this type of phenol two hydroxyl group (-OH) is attached to the benzene ring.
For example-
C6H4-(OH)2

(3) Trihydric phenol-
In this type of phenol three hydroxyl group (-OH) is attached to the benzene ring.
For example-
C6H3-(OH)3