ग्लूकोज (Glucose)प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ग्लूकोस -D-ग्लूकोज होता है| यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस(m.p. 419K) है| यह जल में अत्यधिक विलेय है परंतु इथर में अविलेय है| ग्लूकोज का जलीय विलयन दक्षिण घूर्णक है| इस कारण इसे डेक्सट्रोज भी कहते हैं| यह पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है|
ग्लूकोज का निर्माण -
(1) सुक्रोज (गन्ने की चीनी )से -
सुक्रोज के एल्कोहलिक विलयन को तनु HCl या H2SO4 के साथ गर्म करने पर यह जल अपघटित होकर ग्लूकोज व फ्रक्टोज की समअणुक मात्रा बनाता है|
C12H22O11 + H2O ------> C6H12O6 + C6H12O6
(2) स्टार्च से -
व्यवसायिक रूप से ग्लूकोज को स्टार्च के जल अपघटन द्वारा प्राप्त किया जाता है|
(C6H10O5)n + nH2O -------> nC6H12O6
ग्लूकोज की संरचना -
ग्लूकोस एक एल्डोहैक्सोज है| इसकी संरचना का अध्ययन निम्न तीन भागों में किया जा सकता है-
(a) ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना-
ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना निम्न प्राप्त की गई है-
ग्लूकोज की उपरोक्त संरचना निम्नलिखित साक्ष्यों पर आधारित है-
(i) अणुसूत्र - C6H12O6
(ii) 6 कार्बन परमाणुओं की सीधी श्रृंखला की उपस्थिति -
ग्लूकोज को HI के साथ लंबे समय तक गर्म करने पर यह n- हैक्सेन बनाता है| इससे यह प्रमाणित होता है कि सभी 6 कार्बन परमाणु सीधी श्रृंखला में जुड़े होते हैं|
(iii) कार्बोनिल (>C=O) समूह की उपस्थिति -
ग्लूकोस हाइड्रॉक्सिल ऐमीन के साथ क्रिया करके एक ऑक्साइम बनाता है तथा हाइड्रोजन सायनाइड के एक अणु के योग द्वारा सायनोहाड्रिन बनाता है| यह कार्बोनिल समूह की उपस्थिति को प्रमाणित करता है|
(iv) एल्डिहाइड (-CHO) समूह की उपस्थिति -
ग्लूकोस ब्रोमीन जल जैसे दुर्बल ऑक्सीकारक द्वारा भी सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत होकर ग्लूकॉनिक अम्ल बनाता है| यह प्रमाणित करता है कि ग्लूकोज में एक एल्डिहाइड समूह भी है|
(v) 5 हाइड्रॉक्सिल (-OH) समूह की उपस्थिति -
जब ग्लूकोज का एसिटिक ऐनहाइड्राइड के साथ ऐसीटीलीकरण किया जाता है तो ग्लूकोज पेंटाएसिटेट प्राप्त होता है| इससे स्पष्ट होता है कि ग्लूकोज में पांच -OH समूह उपस्थित हैं|
(vi) 1°एल्कोहॉलिक (-CH2OH) समूह की उपस्थिति -
नाइट्रिक अम्ल के साथ ऑक्सीकरण पर ग्लूकोस व ग्लुकोनिक अम्ल दोनों एक ही डाई कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं, जिसे सैकेरिक अम्ल कहते हैं| इससे स्पष्ट होता है कि ग्लूकोज में एक प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह उपस्थित है|
(b) ग्लूकोज का विन्यास -
ग्लूकोज का विन्यास उसमें उपस्थित -OH समूह की उचित त्रिविमीय व्यवस्था प्रदर्शित करता है| फिशर ने ग्लूकोज के गुणों के आधार पर इसका विन्यास दिया जो निम्न है-
(c) ग्लूकोज की विवृत श्रृंखला संरचना-
ग्लूकोज कई गुणों में हेमीएसिटल से समानता प्रदर्शित करता है| यह अनुमान लगाया गया कि ग्लूकोज में अंतराअणुक हेमिऐसिटल का निर्माण होता है एवं इसकी संरचना चक्रीय है| हेमिऐसिटल के निर्माण में -CHO समूह, -OH समूह से C5 (अर्थात पांचवे कार्बन परमाणु पर) संयोग करता है| जिससे एक 6 सदस्य चक्रीय संरचना निर्मित होती है| इसके कारण C1 (अर्थात प्रथम कार्बन परमाणु) असममित हो जाता है तथा इसके चारों ओर H एवं OH की दो सम्भाव्य व्यवस्थाएं संभव हो जाती हैं| इस प्रकार दो त्रिविम समावयवियों की प्राप्ति होती है| इन्हें अल्फा-d-glucose एवं बीटा-D- ग्लूकोज कहा जाता है|
पायरानोज संरचनाएं -
ग्लूकोज के दोनों समावयवियों में पायरॉन के समान 6 सदस्यीय रिंग उपस्थित होती है | अतः इन्हे पायरानोज संरचना द्वारा सुविधापूर्वक प्रदर्शित किया जा सकता है| यह संरचनाएं हैवर्थ द्वारा प्रतिपादित की गई थी| अतः इन्हे हैवर्थ प्रक्षेपण सूत्र भी कहा जाता है| D- ग्लूकोज की पायरानोज संरचनाएं निम्न हैं -
ग्लूकोज के गुण -
(1) ऑक्सीकरण -
जब ग्लूकोज को मंद ऑक्सीकारक पदार्थ जैसे- ब्रोमीन जल द्वारा ऑक्सीकृत किया जाता है तो -CHO समूह -COOH समूह में बदल जाता है तथा ग्लूकॉनिक अम्ल बनता है|
परंतु यदि ग्लूकोज को प्रबल ऑक्सीकारक पदार्थ जैसे सांद्र HNO3 द्वारा ऑक्सीकृत किया जाता है तो -CHO एवं -CH2OH समूह ऑक्सीकृत होकर सैकेरिक अम्ल बनाता है|
(2) अपचायक क्रिया -
ग्लूकोज सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत हो जाता है| अतः यह एक अपचायक पदार्थ का कार्य करता है और टॉलन अभिकर्मक एवं फेहलिंग विलयन को अपचयित कर देता है|
(3) अपचयन -
जब ग्लूकोज की सोडियम एमलगम तथा जल के साथ क्रिया कराई जाती है तो यह अपचयित होकर एक हैक्साहाइड्रिक ऐल्कोहल D-सॉर्बिटोल बनाता है|
HI एवं लाल फास्फोरस के साथ प्रबल अपचयन पर यह n- हैक्सेन का निर्माण करता है|
(4) हाइड्रॉक्सिलऐमीन से क्रिया-
यह हाइड्रॉक्सिलऐमीन से क्रिया करके ऑक्जाइम देता है, जिसे D- ग्लूकोज ऑक्जाइम कहते हैं |
ग्लूकोज, HCN से क्रिया करके सायनोहाइड्रिन या ग्लुकोनाइट्राइल देता है|